भैरवी सोहन लाल द्विवेदी
पूजा-गीत
विंद के इन स्वरों में
एक स्वर मेरा मिला लो।
राग में जब मत्त झूलाओ
तो कभी माँ को न भूलो,
अभिषेक के रत्नकन में
एक कान मेरा मिला लो।
जब दिल का तार बोला,
शृंखला के बंद सुपरमार्केट;
होन जहाँ बाली शीश अगणित,
एक शेर मेरा मिला लो।
युगावतारगाँधी
चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग एक ही ओर,
एक नजर भी एक नजर से पढ़ी गई
गड़ गया कोटि दिग उसी ओर,
जो सिर पर निज धरा हाथ
उसका शिर-रक्षक कोटि हाथ,
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
उसी पर कोटि मठ झोक गया;
हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!
युग उन्नत वर्जिन लड़की देखें
युग हटाये गये अभिलेख भुकुटी देख,
तुम अचल मेखला बन जाओ की
खींचते काल पर अमित रेखा;
तुम बोल उठो, युग बोल उठो,
तुम मौन बने, युग मौन बने,
कुछ कर्मफल संग्रहित कर
युगकर्म जग, युगधर्म तना;
युग-परिवर्तक, युग-प्रवर्तक,
युग-संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! भाग
युग-युग तक युग का नमस्कार!
युग-युग की रूढ़ियाँ टूट गईं
रचतेरहते नित नई सृष्टि,
उठती नवजीवन की स्थापनाएँ
ले नवचेतन की दिव्य-दृष्टि;
धर्मादम्बर के खँडहर पर
कर पद-प्रहार, कर धराध्वस्त
मानव का पावन मंदिर
निर्माण करा रहे सृजनविस्त!
बढ़ती ही जाती अलाकी!
गिरते तुम अपना रामराज,
आत्माहुति के मनिमानिक से
महते जननी का स्वर्णताज!
तुम कालचक्र के रक्त से
दशनों को कर से गुप्त सूचना,
मानव को दानव के मुंह से
ला रह खींच बाहर वृद्धि वृद्धि;
पिसति कराहति जगति के
प्राणों में भरते अभय दान,
अधमरे देखते हैं तुमको,
यह क्या हुआ?
दृढ़ चरण, वार्ता करसंपुट से
तुम कालचक्र की चाल रोको,
नित महाकाल की छाती पर
करुणा के पुण्य श्लोक!
कुँपता असत्य, कुँपता मिथ्या,
हर्बता कप्ति है थरथर!
कपटे सिंहासन, राजमुकुट
काँपते, खिसके आते भू पर,
अस्त्र-शास्त्र कुंठित लुंठित,
सेनाये करती है गृह-प्रयाण!
रणभेरी तेरी बजती है,
उड़ता है टैग ध्वज चिह्न!
हे युग-दृष्टा, हे युग-दृष्टा,
मोक्ष-मंत्र कैसा है?
इस राजतंत्र के खंडहर में
उभरता अभिनव स्वतंत्र भारत!
खड़ी गीत
खादी के टुकड़े-टुकड़े में
अपनेपन का अभिमान भरा,
माता का मन भरा,
अन्याय का अपमान भरा।
खादी के रेशे-रेशे में
अपने भाई का प्यार भरा,
माँ-बहनों का सत्कार भरा,
बच्चों का मधुर दुलार भरा।
खादी की रजत चंद्रिका जब,
ज्ञान तन पर मुस्काती है,
जब नव-जीवन की नई ज्योति
अंतस्थल में जग जाता है।
खादी से दीन विपनों की
उत्तपन्न उसांस अनहोनी,
मानव क्या, पत्थर की
भी छाती केक पिघलाती है।
खादी में कितने ही आटे के
दग्धा हृदय की दाह मित्र,
कितनों की कसक कराह मित्र,
कितनों की प्यारी दोस्त है।
खादी में कितने ही नंगों
भिखमंगों की है आस विद्यार्थी,
कितनों की भूख में,
कितनों की इन पुतलियों में।
खादी तो कोई लड़ने का,
है भड़कीला रंगन नहीं,
खादी है तीर-कमान नहीं,
खादी है खड्ग-कृपाण नहीं।
खादी को देखो-देखो तो भी
दुश्मनों का दिल रुकता है,
खादी का झंडा सत्य, शुभ्र
अब सभी ओर की दुकानें हैं।
खादी की गंगा जब सिर से
आदिवासियों तक चलती है,
जीवन के कोने-कोने की,
तब सब कालीख ढोल जाती है।
खादी का ताज चाँद-सा जब,
मस्तक पर चमकती दुकानें हैं,
कितने ही तानाशाह तानाशाह
दीनों के त्रास मिटाता है।
खादी ही भर-भर देश-प्रेम
का प्याला प्यारी मधुरेगी,
खादी ही दे-दे संजीवन,
मुर्दों को पुनः आरंभ करें।
खादी ही बढ़ी, चरण पर पद
नुपुर-सी प्रसिद्ध अभिनेत्री,
खादी ही भारत से रूठी
उदाहरण को घर की तालगी।
गाँवों में
(ग्राम-जीवन का एक रेखा-चित्र)
जगमग नगरों से दूर दूर
हैं जहाँ न ऊँचे महल,
डीफ़-फूटे कुछ कच्चा घर
विचार विमर्श में बने रहें हल;
पुरई पाली, खपरैलों में
रहिमा रमुआ के नावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
नित फटे चिथड़े पहने जो
हड्डी-पसली के पुतलों में,
असली भारत है असली
नर-कंकालों की शकलों में;
आदिवासियों की फटी बिवाई में,
एंटास के गहना संयोजन में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
दिन-रात सदा पिसतेरहते
'साम्राज्यों में और' कैथोलिकों में,
वो न किस्मत नमक-रोटी
जीते उन शूरों में;
पति-पत्नी ही जो हैं पति-पत्नी
विधना के निथुर नियावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
उन रात-रात भर, दिन-दिन भर
अज्ञात में दो लंदन में,
दुपहर की चना-चबेनी में
बिरहा के अजीब बोलों में;
फिर भी, ओठों पर हँसी के लिए
मस्ती के मधुर प्यारों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह बसा हमारे में !
अपनी उन रूप कुमारी में
जहां नित रुके रहो केश,
अपने उन राजकुमारों में
जहां चिथड़ों से सजे वे;
अंजन को तेल नहीं घर में
कोरी आँखों के हावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
वह एक कुएँ के पनघट पर
जिसका नाम है अर्ध भाग,
सब सम्भल-सम्भल कर जल भारते
गिर जाय न कहीं भाग;
है जहां गदारी जुड़ती है न शोक
युग-युग के द्रव्य अभावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
यहाँ एक धोती है
वही दरी, उनका चक्र,
जिससे वह लाज संभल सदा
पता चलता है घर से बाहर,
पुर-वधुत्रों का क्या हो श्रृंगार?
जो बिका रईसों-रावों में !
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
सोने-आवश्यक का नाम न लो
पीट - काँसे के अस्सल-छड़े।
मिल जायँ बहुरानी को तो
समझो उनका सौभाग्य बड़ा!
रंगे की काली बिछुड़ियो में
पति के सुहाग के भावों में।
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
कर्ज-भरा हुआ स्थान सिर पर
बहुत ही बढ़ गया सद-ब्याज,
घर के पहले कर से
छिन्न-भिन्न होता है अनाज-पौधे;
उन टूटे दिल की साधों में
उन टूटे हुए हियाओं में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
उरपी ले जप लेटे घास
भारते कोचों की कोरों में,
लकड़ी का लोडा सिर पर
जो कैसा मूँज की डोरों में;
उनका अर्जन व्यापार यही है
ग़रीब उपायों में क्या करें?
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
नवीनतम श्रम करते रहें,
मुंह से ना सामांय कुछ भी कहा,
नित विपदा पर विपदा सहना
मन की बात मन में साधें धँसाना;
ये हैं वे, ये हैं आंखें वे
जो लिखा न कहीं बाहर में;
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
रामायण के दो-चार ग्रंथ
ग्रन्थालय ज्ञान-धाम,
पढ़ो-सुन लो जो कभी कभी
हो भक्ति-भाव-वश रामनाम;
जगगति युगगति को न जाना गया
उन अपढ़ अनारी भावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
क्यूटीप्रोडक्ट खपरैल सदा
बारिश की मूसलधारों में,
दहा जाता है सलमान दिवार
पुरवाई की बहारों में;
उन ठिठुर रहे, उन अनावृत रहे
थरथरा हाथों में पाँवों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह बसा हमारे में!
जो जन्म आसरे औरों के
युग-युग वास्तु शास्त्र,
प्रोटोकोल न कभी अपना ज़ोन
मर-मिट जाय जनरेशन-पीढ़ी;
मजदूर सदा दो पैसे के
मालिक के चतुर दुरावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
दो कौर न मुँह में अन्न पड़े
तब भूल जायें सारी तानें,
कवि पहचानेंगे रूप-परी
नर-कंकालों को क्या जाने ?
कल्पना सहम ने की
जाओ इन ठौर कुठाँवों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
हड्डी - हड्डी पसली - हड्डी पसली
एक-एक,
पढ़ लो इंसान, किस दानव ने
ये नर-हत्या के लिखित लेख !
पी गया रक्त, खा गया मांस
रे कौन नौकरों में!
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
यहाँ जा रुकी धंसी
कौन सा राउरव का बन गया रथ कूप?
लग गया पेट पिरानी से
मानव ? हड्डी का खड़ा स्तूप !
क्यों जला न देते मरघट पर
शव द्वार किन भावों में रखा गया?
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
जो एक प्रहर ही खा कर
कहते हैं कट दीर्घ जीवन,
जीवन भर फटी लंगोटी ही
फ़्रेज़ पीतांबर दिव्य वसन;
विश्व भरण पोषण पोषणदाता
नर-नारायण के चावों में,
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
सेगाँव सब गाँव आज
हममें से मोहन बने एक,
उजड़ा वृन्दावन बस जावे
फिर सुख की रानी पीएम नेक;
स्वतंत्रता दिवस की ताज़ा ख़बरें
गंगा के मधुर लहरों में।
अपना हिंदुस्तान कहाँ है ?
वह हमारे गाँवों में बसा!
झोपड़ियों की ओर
अस्थि-पंजरों की
नीवों पर ये प्रसाददाता,
जहां उष्ण रक्त के गरारे से
गढ़ स्थापित भवन बड़ा;
प्रोटो भूखों की होली पर
मना रहे तुम दीवाली,
इने तुम रौशनी ! देखो,
उनकी देहें काली-काली;
उन भोले-भाले किसानों की
करुण कौशल पर पिघलो।
महलों को भूलो प्यारे!
अब झोपड़ियों की ओर चलो !
उनकी फ़तेह चिथड़े देखो
अपने वस्त्र विभावमुखर,
उनकी रोटी-नमक निहारो
अपनी खेड-भरी थाली;
उनका चूँचे रेस्तरां निहारो
अपनी बसनी धनावली,
उनका छोटा खेत निहारो
अपनी उपवन हरित !
यह अन्याय अनीति पुत्रो
युग-युग का दुःख दैन्य डालो।
महलों को भूलो प्यारे !
अब झोपड़ियों की ओर चलो!
किसान
ये नभ-चुम्बी प्रसाद-भवन,
जिंक मंडित मोहक कंचन,
ये चित्रकारी-कौशल-दर्शन,
ये सिंह-पौर, तोरण, वंदन,
गृह-टकराते विमान,
घर-जिनका सब आतंक मन,
सिर झुकाएँ धन्यवाद प्राण,
ये आन-बान, ये सब शान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान!
वह किसान पर ताक़त रखता है!
ये रंग-महल, ये मन-भवन,
ये लीलागृह, ये गृह-उपवन,
ये क्रीड़ागृह, पुरातन छात्र,
रनिवास खास, ये राज-सदन,
ये उच्च शिखर ध्वज चिह्न,
ड्योढ़ी पर सहनाई सुतान,
पहरेदारों की कृपा,
ये आन-बान, ये सब शान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह किसान पर ताक़त!
ये नूपुर की रुनझुन रुनझुन,
ये प्याले की छम छम छम धुनें,
ये गमक, मीड, मिठाइ गुनगुन,
ये जन-समूह की गति सुनमुन,
ये मेहमान, ये मेज़मान,
साकी, सुराही का समान,
ये जलसा महफ़िल, समाँ, तान,
ये करते हैं किस पर गुमान?
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तै रहमत पर किसान!
वह किसान पर ताक़त रखता है!
मोटरसाइकिल सोभा का भार के लिए,
युवाओं के लिए,
नखशिख सेल श्रीगंगानगर,
रसिकों के मन का प्यार,
वह रूप, देख अजान,
जग सुध-बुध खोता हृदय-प्राण,
सुन्दरता की विधि,
प्राणों का अर्पण, प्रणय गान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह किसान पर हक़ीक़त !
वह भाग्य तेरा किसान !
संस्कृति तीन शक्तियां है,
इतराती है, इतराती है,
सभ्यता लंक लचकती है,
झमाझम भूमि राज लाती है,
नम्रता, विनय, अनुनय महान,
सजनता, स्वभाव मधुर बान;
आगत-स्वागत, सम्मान-मान,
सरलता, शील के विषाद गान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !!
वह तै रहमत पर किसान!
वह तेरी कुव्वत पर किसान !
शूरवीरों-वीरों के बहुदंड,
जिंक अक्षय शक्ति है प्रचंड,
ये प्राणवीरों के प्राण अनोखे,
जो करते हैं भूतल खंड-खंड,
ये योधाओं के धनुर्धर-वन,
ये वीरों के चमचम कृपाण,
ये शूरन्स के विक्रम महान,
ये क्रांतियों की विजय-तान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तै रहमत पर किसान!
वह तेरी ताकत पर किसान!
यह बहुत बड़ा प्राचीन किला है
जो महाकाल से नहीं हिले,
ये यशःस्तम्भ जो लोह द्रव्य
जिन वीरों के नाम लिखे,
ये आर्यों के आदर्श गण,
ये गुप्त-वंश की विजय तान,
ये राजपूती जौहर गुमान,
ये मुगल-मराठों के बखान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह किसान पर जुर्राट करता है!
ये इन्द्रप्रस्थ के राज्य-सदन,
पाटलिपुत्र के भव्य भवन,
ये मगध, अयोध्या, ऋषिपत्तन,
मज़हब अवंती के कारखाने,
वैभव का वैभव महान,
काशी-प्रयागराज के कीर्ति-गान,
लखनवी नवाबों के वितान,
मथुरा की सुख संपति महान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह तेरी सेना पर किसान !
इस भारत का सुखमय अतीत,
शोधकर्ता सुधि अब भी है पुनी;
इस वर्तमान के विभव गीत,
जिसमें मन का मधु संग्रहालय,
आशाओं का सुख मूर्तिमान,
अरमानों का स्वर्णिम विहान,
प्रतिदिन, प्रतिपल की क्रिया,ध्यान,
सुनहरे भविष्य के तान तान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह किसान पर ताक़त रखता है!
काल्पनिक पङ्ख बिखरा हुआ है,
चूहा क्षितिज के आता है,
भावना डुबेकिटयाँ है,
सागर मठ अमृत लता है,
ये शब्द विहग से गीतमान,
ये छंद मलय से धावमान,
प्रतिभा की मूर्ति पुष्पमान,
तन्ता मृदु कविता का वितान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान!
वह किसान पर ताक़त रखता है!
निर्णय देते हैं न्यायालय,
स्नातक महाविद्यालयते विद्यालय।
कौशल प्रशिक्षण यंत्रालय,
श्रद्धा घटकते देवालय,
ग्रंथालय के ये गहन ज्ञान,
संगीतालय के तान-गान,
शस्त्रालय के खानखान कृपया,
शास्त्रालय के गौरव महान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान।
ये साधु, सती, ये यति, संत,
येसी तपयोगी, ये महंत,
ये धनी-गुणी, पंडित अनंत,
ये नेता, वक्ता, कलावंत
ज्ञान-ध्यान का ज्ञान-ध्यान,
दानी-मानी का दान-मान,
साधना, तपस्या के विधान,
ये मानव के बलिदान-गान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
वह किसान पर ताक़त रखता है!
ये घनन-घन घन घनघन,
ये झाँझ-मृदंग-नाद भैरव,
ये स्वर्ण-थल भारती विभव,
ये शंख-ध्वनि, पूज्य गौरव,
ये जन-समूह सागर समान,
जो तारा रहा तज गाम्भीर्य-ध्यान,
केसर, कस्तूरी, धूप दान
ये भक्ति-भाव के मत्त गान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी गफ़लत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान!
ये मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर,
पादरी, मौलवी, पंडितावर,
ये मठ, विहार, गद्दी गुरुवर,
साधु, सन्यासी, यतिप्रवर,
जप-तप, व्रत-पूजा, ज्ञान-ध्यान,
रोज़ा-नमाज़, वहदत, अजान,
ये धर्म-कर्म, दीनो-ईमान,
पोथी पुराण, कलमा- कुरान,
वह किसानों के लिए टिप्स!
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेन्यामत पर किसान !
वह बरकत पर किसान!
ये बड़े-बड़े साम्राज्य - राज,
युग-युग से सोइत चले आज,
ये सिंहासन, ये तख्त-ताज,
ये किला दुर्ग, गढ़ शस्त्र-साज,
इन राज्यों के बंगले महान,
इन रियासतों की कहानियाँ महान,
पुरानी दीवारों की उठान,
अन्य प्राचीरों की उड़ान,
वह तेरी हड्डी पर किसान है !
वह तेरसली पर किसान!
वह यान्तों पर किसान!
नस की आँटों पर रे किसान!
यदि हिल उठ तू ओ शेषनाग !
राज्य-भाग में हो पुनरुत्थान पाली,
सम्राट निहारे, नींद त्याग,
है कहीं मुकुट, तो कहीं पग!
समन्त भाग रहे बचा जान,
संतरी भयाकुल, लुप्त ज्ञान,
सेनाएँ ढूंढाती यात्राएँ हैं;
झंडा-निशान में उड़ गया हवा!
साम्राज्यवाद का यह विधान,
शासन-सत्ता का यह गुमान,
वह तै रहमत पर किसान!
वह किसान पर तर गफलत !
माँ ने तुझ पर आशा छोड़ी,
तू दे अपने बल की काँधी;
ओ मलय पवन बन जा तूफ़ान,
तुम्हें ही गांधी है गांधी,
तुझसे सुभाष है भास्मान,
तुममे मोती का बढ़ा हुआ मन;
तू ज्योति जवाहर की महान,
उड़ता नभ पर अपना निशान,
वह तेरी सेना पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान!
वह तेरी जुरत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
तू मदवालों से भाग-भाग,
सोये किसान, उठो ! जग-जाग!
नितुर शासन में लगा आग,
गा महाक्रांति का अभयराग!
लाख जननी का मुख आज म्लान,
वह तेरा ही ध्यान रख रहा है,
तेरा लोहा जो मेरे लिए है,
किसमें इतना बल है महान?
रे मर मिटने की ठन-ठन,
ले स्वतन्त्रता का शुभ विहान।
इको नभ दिशी में एक तान_
जयजन्मभूमि ! जय-जय किसान!
[किसान से]
कणिका
उदय हुआ जीवन में ऐसे
पर्वाशाता का प्रात ।
आज न ये दिन ही अपने हैं
आज न अपनी रात!
पतन, पतन की सीमा का भी
होता है कुछ अंत !
पुनः आरंभ के प्रयास में
शामिल हैं अपराध अनंत!
तुलनाएँ हैं धनवा मेरे
संभावित दोस्त हैं तीर,
मेरे आँगन के कण-कण में
सोये अगणित वीर!
हल्दीघाटी
वैरागन-सीहड़ बन में
मकान एकांत कहाँ है?
मातः ! आजफ़े दर्शन को
मैं व्याकुल उद्भ्रान्त हूँ !
तपस्विनी, नीरव निर्जन में
कौन सी साधना में तल्लीन ?
युगों की मधुरस्मृति में
तुम क्या रहते हो लवलीन ?
जगतीतल की समर-भूमि में
तुम पूवर हो लाखों में,
दर्शन दो, टीवी चरणधुलि
ले लूं मस्तक में, आँखों में।
तुममें ही हो गया वतन के
अनेको वीर शहीदो के लिए,
तुम-सा तीर्थ-स्थान कौन
हम मतवालों के लिए पुनित!
दूसरे के प्रेमियों को
जग के उपकरण में क्या है?
मंदिर मस्जिद गिरजा, सब तो
बेसफ़े चरण में!
कहाँफ़े आँगन में
खेला था वह माई का लाल,
वह माई का लाल, जिसे
पाके तुम हो गए निहाल।
वह माई का लाल, जिसे
दुनिया कहते हैं वीर प्रताप,
कहाँफ़े आँगन में
उनके पवित्र चरण की छाप?
उसकी पद-राज की कीमत क्या है
यह जीवन कैसे हो सकता है?
विविधता हो, पुष्प मिले,
लो चढ गया अपना कन्न कन्न !
आप स्वतन्त्रता के स्वर में
प्रथम प्रथम रंग,
दौड़ पड़े राजपूत बांकुरे
सुन-सुनकर आतुर प्लॉट !
हल्दीघाटी, मचाफ़े
एजेंसन में भीषणबात,
राज में लिन हो गया पल में
अगणित राजमुकुट-अभिराम!
युग-युग चला गया, तब रहेगा
खेला था अद्भुत रंगरंग,
एक बार फिर, भरो हमारे
हृदयों में मा वेसिहं।
गाओ, मा, फिर एक बार तुम
वे मौत के अनमोल गान,
हम मतवाले ही स्वदेश के
स्टेज में हँसी हँसी बलिदान!
राणा प्रताप के प्रति
कल हुआ बाइबिल राजतिलक
बन गये आज ही वैरागी?
उत्फुल्ल मधु-मदिर सरसिज में
यह कैसा युवा अरुण होगा?
क्या कहा, कि-,
'तब तक तुम न कभी,
वैभव सिंचित शृंगार करो'
क्या कहा, कि-,
'जब तक तुम न बीते-
'गौरव स्वदेश अधिकार करो!'
माणिक मणिमय सिंहासन को
कंकण पत्थर के नाव पर,
सोने-चाँदी के स्तोत्र को
शिष्य के पीले दोनों पर,
वैभव से विश्व महलों को
काँटों की कटु झोपड़ियाँ पर,
मधु से मतवाली बेलें
भूखी बिलखाती घड़ियाँ पर,
रानी कुमार-सी निधियों को
माँ की आँखों की लड़कियाँ पर,
तुमने अपने को लुटा दिया
आज़ादी की फुलझड़ियाँ पर !
निर्वासन के अंतिम चरण में
धुंधलावती रक्त-चिता रण में,
वैनों के भीषण वर्ष में
फौहारे-से बहते व्रण में,
बेटे की भूखी आहों में
बेटी की प्यासी दाहों में,
आपकी आज़ादी को देखा
मृतक की चाहतों में !
किस अमर शक्ति आराधना में
किस मुक्ति युक्ति के साधन में,
मेरे वैरागी वीर विग्रह
किस टैपबल के उत्पाद में?
हम कसे कवच, सजे अस्त्र-शास्त्र
व्याकुल हैं रण में जाने को,
मेरे सेनापति ! कहाँ ?
आओ तुम शंख बजाने को;
जागो ! प्रताप, मेवाड़ देश के
लक्ष्यभेद हैं जग रहे,
जागो ! प्रताप, माँ-बहनों के
अपमान-छेद हैं जाग रहे;
जागो प्रताप, मदवालों के
मतवाले सेना सजा रहे,
जागो प्रताप, हल्दीघाटी में
बैरी-भरी बजा रहे!
मेरे प्रताप, तुम फुट पड़ो
मेरी आँखों की धारों से,
मेरे प्रताप, तुम गूंजो
मेरी संत पापा की पुकार से;
मेरे प्रताप, तुम टूटे पड़ो
मेरे उत्तरदाताओं से,
मेरे प्रताप, तुम निखर पढ़ो
मेरे बलि के उपहारों से;
बुद्धदेव के प्रति
आओ फिर से करुणावतार !
वट-तत् पर हृदय अधीर लिय,
है खड़ी सुजाता खेड के लिए;
खाले कुटिया के बंद दरवाजे।
आओ फिर से करुणावतार !
फिर बैठे हैं अशोक अशोक,
शिर छत्र, वैज्ञानिक है हृदय-शोक!
रण की जयश्री बन रही हार!
आओ फिर से करुणावतार !
मानव ने दानव धरा रूप,
भर रहे रक्त से समर-कूप,
डूबती धरा को लो उबार !
आयो फिर से करुणावतार !
गणित
श्रद्धा स्नेह की मूर्ति कहूँ
या नवजीवन की स्फूर्ति कहूँ,
या अपने निर्धन भारत की
निधि की अनुपम मूर्ति कहूँ ?
पृष्ठ दया-अवतार कहूँ
या दुखियों की पटवार कहूं,
नई रचना रचनेवाले
या फिर नया कलाकार कहूँ ?
कागज़ कहूँ सच - अनुरागी
या कि कहूँ सच्चा शौक़ीन ?
सर्व-विभव-सारांश कहूँ
या कहूँ तप-निरत बैरागी?
पृष्ठ कहूँ मैं वयोवृद्ध
या बाँका जवान जवान कहूँ?
तुम बहुत महान हो, जीहोते हैं
मैं तुम्हें अनंत कहूँ !
कह रहा हूँ तो दो बता सकता हूँ
मैं तुमको श्रद्धा कहूँ।
निर्बल का बल कहूँ,
अनाथों का तुमको आश्रय कहूँ।
श्रेय कहूँ, या प्रिय कहूँ
या मैं तुमको ध्रुव-ध्येय कहूँ ?
तुम बहुत महान हो, जीहोते हैं
मैं तुम्हें अज्ञेय कहूँ !
वीरों का अभिमान कहूँ,
या शूरों का सम्मान कहूँ?
मृदु मुरली की तान कहूँ,
या रणभेरी का गान कहूँ?
शरणागत का त्राण कहूँ
मानव-जीवन-कल्याण कहूँ?
जी होता है, सब कुछ कह तुमको
भक्तों का भगवान कहूँ !
जी होती है मातृ-भूमि की
कट्टर अचल अनुराग कहूँ,
जी होते हैं, परम तपस्वी
का मैं तुमको त्याग कहूँ;
जी होती है प्राणायण-
तुमको आग कहूँ वाली,
यह अभागिनी भारत-
जननी का तुमको सौभाग्य कहूँ !
विश्वविद्यालय विवरण
गौरव-गान क्या है?
असेंबली के उर से प्रश्न
किसका है कटिबद्ध?
ये अंडकोष अनेकों निर्मित हैं
फिर भी नित नूतन निर्माण।
कौन कितने हैं
मन में मित्र हुए अरमान ?
पट्टियाँ देखना नहीं और धुनें
सिर्फ आज़ादी की चाह।
रह-रह कसक कसक उठता
यह आपके लिए अच्छा है!
गला दिया तन को
रो-रो आँसुओं के पानी में,
इन्डोनेशिया की व्यथा हाय
सहते हम भरी जवानी में!
मिले भक्ति देश को
हम जननी जय-गान करें,
मिले तारे शक्ति देश को
हमने नव क्रांति नहीं की;
मिले आग देश को
अंतिम प्रश्न करें,
मिले प्रिय त्याग देश को
तन-मन-धन समर्पित करें।
जियो, देश के दलित अभागों के
हाय रिश्तेदार तुम सौ वर्ष !
जियो, वृद्ध माता के उर में
गंभीरता बंधते तुम सौ वर्ष !
जिओ, पिता, पुत्रों को अपना
प्यार करता हूँ तुम्हें सौ साल !
जियो, राष्ट्र की स्वतन्त्रता
के आते-आते तुम सौ साल !
(मालवीय-हीरक जयन्ती' के
अवसर पर लिखित)
फलों के फूलों पर
सिंहासन पर नहीं वीर!
बलिवेदी पर मुसकाते चल !
ओ वीरों के नये पेशवा !
जीवन-जोति जागते चल!
रक्तापात, विप्लव अशांति
औ' कैरता बरकाते चल।
जेनी की आयरन की कडियाँ
रह बाकी सरकाते चल !
कल दोपहर गूंज उठा था,
आज हरिपुरा शहर उठो,
बने अमित इतिहास देश का
महाक्रान्ति की लहर उठे!
फूलों की मालाओं को
पद की चुनौती से दलते चल,
शुलों की मखमली सेज को
सुहला सुहला मलते चल ।
जननी के बंधन निहार
अपमान ज्वाल में जलते चल,
ठुकराये वीरों के उर के
फ़्यूरित रक्त श्रृंखला चलन !
पग-पग में हो सिंहगर्जना
दिशा डोलें, झंकार उठाएं,
जागेन, सोयें इस युगवाले
यों तेरी हुंकार उठो !
तीन पाँचनाल प्रबल
बंगाल विक्रमविक्रमवाला,
महाराष्ट्र सौराष्ट्र हिन्द
अपने प्रश्न पर मिटनेवाला;
है बिहार गुणगौरववाला
उत्कल शक्तिसंघवाला
बलिवाला गुजरात, बति
मद्रास, भक्ति वैभववाला;
फिर क्यों दुर्बल भुजा हमारी
कैसी कैसी लौह-लड़ियाँ ?
अँगड़ाई भर ले स्वदेश
टूटे पल में कडियाँ-कड़ियाँ।
आयें हम भीखमांगे
सब भूखो खानावाले।
अपनी हड्डी-पसली दुकान,
वफ़ादारी वाले
खुरपी और कुदालीवाले।
फड़ुआ औ' फरसेवाले।
महाकाल से रात्रिदिवस
दो उदाहरण पर लड़नेवाले!
आयें, काल-गल के छोड़ें
वज्रदेह, दृढ़ व्रतधारी।
युद्ध में एक बार फिर बढ़ोतरी
फिर हो रण की तैयारी।
शंख बाजे रणभेरी
जननी की जय जय बोले।
लाखों की सेना चलायें
डगमग डगमग धरणी डोले !
जिधर प्रस्थान अन्यत्र
अक्षौहिणी सैन्य मेरी।
वीरों को कौन रोक सकता है
सृष्टि बनी चेरी?
बढ़ जाएगी चालिस करोड़ फिर
बलि के मधुमय झूलों पर,
मेरी माँ भी चलती विहँसती
हड़ताल के फूल पर।
हथकड़ियाँ !
आओ, आओ, हथकड़ियाँ
मेरे मनियों की लड़कियाँ !
इन्डोनेशियाई सेवाओं की
भिन्न की जयमाल भली,
कृष्ण-तीर्थ लेवाली
पवन मंजुल मधुर स्ट्रीट;
जीवन की मधुमय घड़ियाँ
आओ, आओ, हथकड़ियाँ !
कर में बंधो, विजय-कंकण-सी
उर में आत्मशक्ति लाओ,
जन्मभूमि के लिए शलभ-सा
मर जाना, हां, सिखानायो;
स्वतन्त्रता की फुलझड़ियाँ !
आओ, आओ, हथकड़ियाँ !
मुक्ता
ज़ंजीरों से चले जाओ
बाकी की चाह।
घी से आग की
सोची है सीधी राह !
हाथ-पाँव जिल्हो, जो चाहो
है अधिकार सरकारी ।
ज़ंजीरों से नहीं
हो दिल हमारा!
नववर्ष
स्वागत है! जीवन का नव वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण के लिए,
यह महा तीर्थ के युग में
जाग्रत जीवन अभिमान के लिए;
दीनों दुखियों का इलाज
मानव कल्याण के लिए,
स्वागत है! नवयुग का नववर्ष!
आओ तुम स्वर्ण-विहान के लिए।
संसार क्षितिज पर महाक्रांति
बमों के गान के लिए,
मेरे भारत के लिए नई
नए प्रोत्साहन के लिए;
मुर्दा शरीर में नया प्राण
प्राणों में नव अरमान के लिए,
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
आओ तुम सुनहरे विहान के लिए!
युग-युग तक पिसते आये
किसानों को जीवनदान के लिए,
नरकंकाल-मातृ रह गया शेष
ईसाई धर्म का नव त्राण के लिए;
नव संगठन के लिए,
पददलितों के विरोध के लिए;
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
आओ तुम सुनहरे विहान के लिए!
विशिष्ट साम्राज्यवाद के
मद का चिर-अवसान के लिए,
दुर्बल को अभयदान,
दोस्त को रोटी का सामान के लिए;
जीवन में नूतन क्रांति
क्रांति में नए-नये बलिदान के लिए,
स्वागत है! जीवन का नव वर्ष
आओ, तुम सुनहरे विहान के लिए!
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
जब सारी दुनिया सोती थी
तब तुम ही उसे जगाया,
दिव्य ज्ञान के दीप स्थान
तुम ही तम दूर भागया;
तुम्हीं सो रहे, दुनिया जगती
ये कैसा पागल है मतवाले?
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !
होहा वेद उपनिषद रचयिता
जग-जीवन का मर्म बताया,
ज्ञान शक्ति है, ज्ञान मुक्ति है
मैं ही तो गाना चाहता हूं;
अक्षर से अनभिज्ञ तुम्ही हो
पिये किस नशे के ये प्याले ?
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
गंगा यमुना के कूलों पर
सप्त सौध थेडेफ़े,
सिंहासन था, स्वर्ण-छत्र था,
हर वे सभी को कौन ले गया?
अब तो टूटी झोपड़ियाँ
जीने के पड़ रहे कसाले!
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गये क्या राम-राज्य
जहाँ सबको सुख था अपना,
वे धन-धान्य-पूर्ण घर अपने
आज बना भोजन भी सपना;
कहाँ खो गये वे दिन अपने
तोड़े घर के कपड़े ?
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गये वृन्दावन मथुरा
भूल गये क्या दिल्ली झाँसी?
भूल गये मज्जन अवन्ती
भूले सभी अयोध्या काशी?
यह विस्मृति की दुकान है
कब पी ली मेरे मदवाले !
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
भूल गया क्या कोर्स वह
जहां कृष्ण की गूंजी गीता,
जहां न्याय के लिए अचल हो
पाण्डु-पुत्र ने रण को जीत लिया;
फिर कैसे तुम भी बने हो
तुम रान-प्राण के रान पाले!
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
तुम तो जापान चीन तक
उपनिवेश अपने विस्थापितये,
मैं ही तो सिंधु पार जा
करुणा के संदेश सुनाये;
भूल गया कैसे गौतम को
जो थे जगतम के उजियाले।
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले!
याद करो अपने गौरव को
थे तुम कौन, कौन हो अब तुम।
राजा से बन गया भिखारी,
फिर भी,मन में शांति नहीं गम ?
पहचानो फिर से अपने को
मेरे भूखों खानेवाले !
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !
जागो हेपांचालनिवासी !
जागो हे गुर्जर मद्रासी !
जागो हिंदू मुग़ल मरथे
जागो मेरे भारतवासी !
जननी की ज़ंजीरें, बजातीं
जग रहे काराड़ियों के छाले!
सुनती रहती हूँ स्तोत्रभैरवी
जागो मेरे सोनेवाले !
चलो चलो, चलो चलो
(प्रायण-गीत)
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं,
बढे चलो, बढे चलो ।
रह रहे समन हिम-शिखर,
प्रश्न पूछें निखर,
खैर ही जाए जनाब,
रुको नहीं, झुको नहीं,
बढे चलो, बढे चलो ।
घना घना घना हो गया,
अधर में कालकूट हो,
वही का सुधा लाभ हो,
जी चलो, मरे चलो,
बढे चलो, बढे चलो ।
गगन उगलता आग हो,
क्रोधा मरण का राग हो,
ल काहू अपने फाग हो,
अडो कहीं, अडो कहीं,
बढे चलो, बढे चलो ।
चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मिसाल हो,
बूडो नया कमाल हो,
झुको नहीं, रुको नहीं,
बढे चलो, बढे चलो ।
अशेष रक्त तोल दो,
आज़ादी का मोल दो,
युगों की कड़ी खोल दो,
डरो नहीं, मरो नहीं,
बढे चलो, बढे चलो ।
जय राष्ट्रीय निशान!
जय राष्ट्रीय निशान!
जय राष्ट्रीय चिह्न!!!
लहर लहर तू मलय पवन में,
फ़हर फ़हर तू नील गगन में,
सिक्सर सिक्सर जग के आंगन में,
अत्यंत उच्च महान!
अत्यंत उच्च महान!
जय राष्ट्रीय निशान!!
जब तक एक रक्त कण तन में,
डिगे न तिल भर अपने प्रश्न में,
हाहाकार मचावें रण में,
जननी की संत
जय राष्ट्रीय निशान!
मस्तक पर शोभित हो रोली,
बड़े शूरवीरों की टोली,
खेलें आज मरण की होली,
बूढे और जवान
बूढ़े और जवान!
जय राष्ट्रीय निशान!
मन में दीन-दुख की ममता,
हमें हो गई दिवंगत की क्षमता,
मानव मानव में हो समता,
अमीर गरीब समान
इको नभ में तान
जय राष्ट्रीय निशान!
तेरा मेरा मेरुदंड हो कर में,
स्वतन्त्रता के महासमर में,
वज्र शक्ति बन व्यापे उस में,
दे दे जीवन-प्राण!
दे दे जीवन प्राण!
जय राष्ट्रीय निशान!!
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