अनूठा तप
काल नामक ब्राह्मण परम विरक्त और तपस्वी था । सांसारिक सुखों व किसी तरह के
भी प्रलोभनों से दूर रहकर वह धर्मशास्त्रों के अध्ययन और भगवान् की भक्ति में लगा
रहता था । एक बार उसने पुष्कर तीर्थ में रहकर घोर तप किया । बिना अन्न -जल ग्रहण
किए घोर तप करने के कारण उसके मस्तक से निकलने वाले तेज से देवलोक तक जलने लगा ।
देवताओं में खलबली मच गई । वे उनके पास पहुँचे और मनचाहा वर माँगने को कहा ।
ब्राह्मण ने कहा, मुझे कुछ
नहीं चाहिए । यदि वर ही देना है, तो यही दें कि मैं निरंतर जप -तप करता रहूँ ।
वह निरंतर तप करता रहा । उसका कठोर तप देखकर इंद्र का सिंहासन भी डाँवाँडोल
होने लगा । इंद्र ने भयभीत होकर अप्सराओं को काल के तप में विघ्न डालने के लिए
भेजा । तप में लीन काल ने उन अप्सराओं की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा । वे निराश
होकर इंद्र के पास लौट आई । इंद्र ने बार - बार प्रलोभन देकर ब्राह्मण का तप भंग
करने का प्रयास किया , किंतु वह तो किसी भी प्रलोभन को त्यागने के दृढ़ संकल्प के बाद ही तप करने
बैठा था । वह किसी भी लालच में नहीं आया । आखिर में इंद्र ने मृत्यु का भय दिखाकर
उसके तप को भंग करने का प्रयास किया ।
ब्राह्मण ने काल ( मृत्यु ) को चुनौती देते हुए कहा, मैं शरीर नहीं , आत्मा हूँ । आत्म साक्षात्कार करने के बाद मुझे काल का भय क्या
सताएगा ? ब्राह्मण को
तप और विरक्ति में अटल देखकर भगवान् विष्णु ने दर्शन देकर उन्हें जीवन - मरण के
बंधन से मुक्त कर दिया ।
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