सद्कर्मों में देर न
करो
भगवान् महावीर सदाचार का उपदेश देते हुए एक गाँव में पहुँचे। तीर्थंकर के
आने की सूचना मिलते ही अनेक लोग सत्संग -दर्शन के लिए उनके पास पहुंच गए । गौतम
नामक एक भक्त ने जिज्ञासा के स्वर में उनसे पूछा, पूर्ण निर्वाण किसे प्राप्त होता है ?
महावीर ने बताया, जो मनुष्य निष्कपट तथा सरल होता है, वही शुद्ध साधक निर्वाण का अधिकारी बनता है । जिसकी आत्मा शुद्ध
होती है, धर्म उसके
पास ही ठहर सकता है । भगवान् महावीर ने आगे समझाते हुए कहा, जब तक शरीर सशक्त है, तब तक उसका उपयोग धर्म की साधना के लिए करना
चाहिए । कुछ लोग सद्कर्म- साधना में यह कहते हुए देरी करते हैं कि आगे कर लेंगे ।
ऐसे आलसी लोग भोग-विलास में ही अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं । ऐसे मूर्ख मनुष्य
के भाग्य में केवल पछताना ही शेष रह जाता है ।
तीर्थंकर ने उदाहरण के साथ समझाते हुए कहा, जैसे वृक्ष का पत्ता पतझड़ में पीला होकर गिर जाता है, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी आयु समाप्त होने पर
सहसा नष्ट हो जाता है । इसलिए सतत् सद्कर्म करते रहने में ही कल्याण है । जो
मनुष्य अपना मानव जीवन सफल करना चाहता है, उसे पाप बढ़ाने वाली मनोवृत्तियों, जैसे — क्रोध, मान, माया और लोभ
इन चारों दोषों को सदा के लिए छोड़ देना चाहिए । शांति से क्रोध को मारो, नम्रता से अभिमान को जीतो, सरलता से मोह - माया का नाश करो और संतोष से
लोभ को काबू में लाओ । तीर्थंकर महावीर ने चंद शब्दों में ही मानव जीवन को सफल
बनाने के उपाय बता दिए ।
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