🕉
👫युगल गीत गायक:-
ललित मोहन साहनी व अदिति शेठ
वादक एवं गीतकार:-
ललित मोहन साहनी
वीडियो निर्माण अदिति शेठ
प्रिय श्रोताओं सादर सप्रेम नमस्ते❗ पिछले गुरुवार बिटिया अदिति ने अपनी बड़ी बहन नम्रता
के जन्म दिवस पर 99 वां वीडियो बनाकर मुझे भेजा था। आज मेरे जन्मदिन के उपलक्ष में अपना आखिरी 100 वां वीडियो बनाकर मुझे भेजा।भेजा। यह गीत मैं अकेले का आया था, लेकिन उसने मेरी आवाज के साथ अपनी आवाज मिलाकर एक युगल गीत बना दिया और मुझे बताया नहीं। आज उसने सरप्राइज़ देते हुए कहा पिताजी आप इसे सुनिए । मैं सुनकर आश्चर्य चकित हो गया❗ इतने सुन्दर तरीके से मेरे गाये गीत को युगल गीत बनाया कि मेरी आंखें भर आईं। आज तक हमने एक साथ कभी भी नहीं गाया था। भजन इंटरनेट पर लोड हो चुका है। आज मैं वेदवाणी गीत को शुभकामनाओं सहित आप सब प्रिय💕 श्रोताओं के साथ इसे शेयर कर रहा हूं ।
आज का दिन सबके लिए मंगलमय एवं आनन्दित रहे🙏🌹
शीर्षक
जीवों के कल्याण के लिए सृष्टि
वेद में यह बात बार-बार कही गई है कि भगवान ने इस सृष्टि का निर्माण जीवों के कल्याण के लिए किया है। यहां भी कहा है('इमा: प्रजा अजनयन्मनूनाम') मनुष्यों के लिए इन पदार्थों को पैदा किया है। पदार्थ उत्पन्न करके उनके नाम आदि अपनी सनातन निमित्त= वेदवाणी से रखता है।
मनु ने भी यही बात कही,
सबके नाम और कर्म, और सारी रचनाएं वेदशब्दों के अनुसार ही आरम्भ से निर्माण कीं। अथवा इनकी रचना वह ('पुर्वया निविदा') पुरानी रीति से करता है ('सूर्य चंद्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्')धाता= जगद्विधाता ने सूर्य और चन्द्र को यथापूर्व= पूर्व कल्प की भांति बनाया।
('पूर्वया निविदा')और 'यथापूर्व' ने एक और सूचना भी दी कि यह सृष्टि अपूर्व और अनुत्तर नहीं है, इस सृष्टि से पूर्व भी सृष्टि थी,और इस सृष्टि के बाद भी सृष्टि होगी। सृष्टि का चक्र चलता रहता है सृष्टि के पीछे प्रलय, प्रलय के पीछे सृष्टि,
इस प्रकार यह प्रवाह चलता रहता है। सृष्टि का प्रवाह अनादि है, तब स्त्रष्टा का निवित्= निर्माण ज्ञान भी अनादि है। ज्ञान की सफलता निर्माण में =अनुष्ठान में है, इस पर वेद का बहुत आग्रह है । इस प्रवाह का प्रवाहयिता का भगवान 'नू पुरा च सदनं रयिणाम्(ऋग्वेद १.९६.७) आज भी और पहले भी धनों का ठिकाना था, और है।
इतना ही नहीं वह तो धन का वर्षक, धनों का प्राप्त कराने वाला, यज्ञ का केतु तथा आत्मा के ज्ञान का, मनन का प्रधान साधन है। मनुष्य धन का अभिलाषी है वह दिन का ठिकाना है,केवल ठिकाना ही नहीं वरन बड़ा बढ़ाने वाला भी है, और साथ ही धन प्राप्त कराने वाला भी वही है। इससे बढ़कर आत्मा के मूल धन= ज्ञान का साधन भी वही है। अतः देव उस धनदाता भगवान् को धारण करते हैं।
जब धन का ठिकाना है ही वही, तो उसे ही धारण करना योग्य है ।यह मत समझना कि विद्वान लोग भी धन की कामना में लिप्त होकर लक्ष को भूल गए। न,न, वे तो 'अमृत्वं ('रक्षमाणास' ) '(ऋग्वेद १.९६.६) =अमृत की,जीवन की रक्षा करते हुए मोक्ष को बचाते हुए,धन की कामना करते हैं।
जीवन निर्वाह के लिए धन की कुछ आवश्यकता होती है किन्तु इतनी भी नहीं की इसमें लिप्त हो जाए। वरन् धन के द्वारा वह अपने मोक्ष की मोक्षा साधन की रक्षा करे।
तनिक और विचार कर लो पूर्णविराम विद्यार्थी के लिए प्राप्तव्य धन विद्या है । गृहस्थ का प्राप्तव्य धन अन्न वस्त्र गौ घोड़ा घृत दुग्ध, घर बाड़ी आदि है।
जिससे प्रयोजन सिद्ध होकर प्रीति की प्राप्ति हो, उसे धन कहते हैं।
मोक्षाभिलाषी को किससे प्रीति हो सकती है? सभी मानेंगे, कि मोक्ष साधनों से,अतः सिद्ध हुआ कि मोक्ष अभिलाषी मोक्ष के साधनों का संग्रह करता है, क्यों? उसे मोक्ष की रक्षा करनी है।
कई बार मोक्ष से आना पड़ा और कई बार मोक्ष सामने आता दिखाई देता हुआ भी प्राप्त नहीं होता; उस समय कि मुमुक्षु की वेदना को वही कुछ कुछ समझ सकता है, जिसे किसी अभीष्ट वस्तु से वियुक्त होना पड़ा हो और कई बार प्राप्ति प्राप्त होती प्रतीत होने पर भी वस्तु प्राप्त ना हुई हो।
मन्त्र
स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमा: प्रजा
अजनयन्मनूनाम्।
विवस्वता चक्षसा द्यामपश्च देवा अग्निं धारयन्द्रविणोदाम्।।ऋ॰१.९६.२
भजन
राग पहाड़ी
राग पहाड़ी के गाने का समय
शाम ५:00 से ९:00 तक
ताल कहरवा 8 मात्रा
वेद वाणी प्रभु ने रची है,
जीवों के कल्याण के लिए(२)
वेदवाणी...
नाम कर्म रचनाएं,
वेद-शब्द अनुसार,
जैसी पूर्व सृष्टि रचते
प्रभु रचते हर बार,
एक का हो अवसान,
दूजी करता निर्माण,
अनादि प्रवाह सृष्टि के
जीवो के कल्याण के लिए,
वेद वाणी.....
है अनन्त जगत विधाता,
कवि हैं कविता को रचाता,
रवि शशि चमकाता,
और वेद- प्रवाह बहाता,
धान्य धन का प्रभु वर्षक,
वो चलाए नियम शाश्वत,
ईश मेघराज वृष्टि के।।
जीवों के कल्याण के लिए,
वेद वाणी........
विद्या,धन विद्यार्थी का,
वस्त्र-धन गृहस्थी का,
करें जिसमें जैसी प्रीति,
पाने में होती समर्थता,
मोक्ष का ही अभिलाषी,
मोक्ष साधन-ग्रहण करता,
प्रभु अनुरंजक मुमुक्षु के।।
जीवो के कल्याण के लिए,
वेद वाणी.......
देव धारण प्रभु को करते,
निशदिन ध्यान प्रभुका धरते
आत्म-दृष्टि कर उजागर,
चिन्तन करते मनन भी करते,
तृष्णा आसक्ति को त्याग,
अमृत की ही रक्षा करते,
रखे ज्ञान व्यष्टि-समष्टि के
जीवो के कल्याण के लिए,
वेद वाणी....
३.२.२०००
१४.३०
अनुरंजक=संतुष्ट करने वाला
अवसान=नाश
मेघराज= इन्द्र
मुमुक्षु =मुक्ति की कामना करने वाला
आत्मदृष्टि=आत्मा को देखने कीजानने की शक्ति
व्यष्टि=प्रत्येक व्यक्ति
समष्टि = सब का समूह,
शाश्वत=नित्य ,स्थाई।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know