मेरे प्रभु !
वैदिक भजन ११९३ वां
राग पहाड़ी
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
वैदिक मन्त्र
वसन्त इन्नु रन्त्यो ग्रीष्म इन्नु रन्त्य:।
वर्षाण्यनु शरदो हेमन्त: शिशिर इन्नु रन्त्य:।।
सापू॰ ६/३/४/२
👇 वैदिक भजन 👇
भाग १
सृष्टि मेरे प्रभु की कितनी रमणीय है
हर ऋतु- ऋतु है रमण भरी
सर्दी है या गर्मी है पतझड़ है वसंत है
वर्षा फुहार है आनन्द सरि
सृष्टि........
प्रभु प्रेम जो नहीं जानते असंतुष्ट रहते हैं
सर्दी गर्मी वर्षा को भी मुसीबत ही कहते हैं
शिकायत की आदत रहती
ऋतुएं अच्छी नहीं लगती
प्रभु की कृपा को जानते नहीं ।।
सृष्टि.........
जब प्रभु प्रेम प्रसाद लगता सुहाना
सर्दी गर्मी वर्षा पतझड़ बनाते दीवाना
रमणीयता नवीन करातीं प्रभु का दर्शन
सौन्दर्य हरसू मिलता यहीं ।।
सृष्टि..........
भाग २
जीवनरूपी संवत्सर में सभी ऋतुएं आती हैं
सुख-सम्पत्ति की सुखद घड़ियां लाती है.
कभी आते दु:ख- दारिद्र्य
कभी कार्य-व्याकुलता
वर्षों तक चलती रहती दु:ख की घड़ी ।।
सृष्टि........
शिथिलता वह दीर्घ सूत्रता दिनों-दिन आती रहती
रसास्वादन उसका करता प्रिय लगती हर घड़ी
बाल्य काल बसन्त से खेला
नौजवानी ग्रीष्म का मेला
प्रौढ़ता में वर्षा का आनन्द अति
सृष्टि सार्वजनिक जीवन में शरद हेमंत की बहार
शरद में वार्धक्य अनुभव स्वर्गीय आनन्द पार
वसन्त ही न केवल प्रभु की
सभी ऋतुएं हैं रमणीय
सन्तुष्ट करती हैं मन को सभी ।।
सृष्टि..........
7.6. 2024। 10.10 PM
शब्दार्थ:-
रमणीय=सुन्दर delightful
फुहार= नन्ही नन्ही बूंद की झड़ी
सरि=झरना
हरसू= हर स्थान पर
दारिद्र्य=दीनता, गरीबी
शिथिलता= कमजोरी
प्रौढ़ता= बुढ़ापा
अति= बहुत
वार्धक्य= बुढ़ापा
मेरे प्रभु की सृष्टि में सभी ऋतुएं रमणीय हैं।
👇 उपदेश👇
प्रत्येक ऋतु में अपनी अपनी रमणीयता है । जो लोग प्रभु के प्रेम को नहीं जानते वे ही हर समय, हर ऋतु में असन्तुष्ट रहते हैं। गर्मी में उन्हें शीत याद आता है पर शीत आ जाने पर वह कहते हैं गर्मी की ऋतु अच्छी होती है। धर्मकाल में वे प्रतिदिन वर्षा की प्रतीक्षा में रहते हैं परन्तु वर्षा आने पर भी बरसात से तंग आ जाते हैं। इस प्रकार उन्हें हर समय में शिकायत ही शिकायत रहती है। उन्हें कोई भी ऋतु अच्छी नहीं लगती परन्तु प्रभु प्रेम का कुछ प्रसाद पा लेने पर मुझे तो प्रत्येक ऋतु में अपने प्रभु की ही कोई ना कोई प्रतिमा दिखाई देती है। इसलिए गर्मी में मैं सुख से गर्मी का आनन्द लेता हूं और जाड़े में जाड़े का। वर्षाकाल में मैं खूब बरसात मनाता हूॅं और पतझड़ में, मैं अपने प्रभु का एक दूसरा ही सौन्दर्य पाता हूं। इस तरह मैं हर समय हर ऋतु में अपने प्रभु का दर्शन करता हूं और देखता हूं कि प्रत्येक ऋतु अपनी नई-नई प्रकार की रमणीयता के साथ नया-नया प्रभु सन्देश लाती हुई मेरे पास आ रही है।
मेरे जीवन रूपी संवत्सर में भी इसी प्रकार की ऋतुएं आया करती हैं। कभी सुख- सम्पत्ति की घड़ियां आती हैं, तो कभी दु:ख दारिद्र्य के लम्बे दिन व्यतीत होते हैं।
कभी अति कार्य-व्यग्रता का राजसिक समय वर्षों तक चलता है, तो कभी काफी समय के लिए शिथिलता और दीर्घ- सूत्रता के दिनों की बारी आती है, पर मैं उन सभी का रसास्वादन करता हूं। यह सभी रस अपने-अपने समय पर प्राप्त होते हुए मुझे प्रिय लगते हैं। इस प्रकार मैं अपने बाल्यकाल के वसन्त में खूब खेला हूं, नौजवानी की ग्रीष्म के जोशीले दिनों का तथा प्रौढ़ता की बरसात के प्रेमपूर्ण दिनों का आनन्द भी मुझे याद है । आजकल सार्वजनिक जीवन में शरद और हेमन्त की बहार ले रहा हूं और देख रहा हूं कि वार्धक्य (बुढ़ापा) अपनी बुजुर्गी,अनुभव पूर्णता और परिपक्वता स्वर्गीय आनन्द के साथ मेरी प्रतीक्षा कर रही है। नि:सन्देह प्रभु की वसन्त ही नहीं किन्तु ग्रीष्म भी रमणीय है, वर्षा और इसके अनन्तर आने वाली शरद के साथ उसकी हेमन्त तथा शिशिर भी उसी तरह रमणीय हैं।
🕉👏 द्वितीय श्रृंखला का १८७ वां वैदिक भजन
और अबतक का ११९३वां वैदिक भजन
🙏 सभी वैदिक स्रोतों को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
1193
My lord
vaidik bhajan 1193 rd
Raag pahaadi
Singing time first face of night
Taal addhaa
👇 vaidik mantra👇
vasant innu rantyo greeshm innu ranty:.
varshaanyanu sharado hemant: shishir innu ranty:..
saapoo. 6/3/4/2
👇 vaidik bhajan 👇
part 1
srishti mere prabhu kee kitanee ramaneeya hai
har ritu- ritu hai raman bharee
sardee hai ya garmee hai patajhad hai vasant hai
varshaa phuhaar hai aanand sari
srishti........
prabhu prem jo nahin jaanate asantusht rahate hain
sardee garmee varshaa ko bhee museebat hee kahate hain
shikaayat kee aadat rahatee
rituen achchhee nahin lagatee
prabhu kee kripa ko jaanate nahin ..
srishti.........
jab prabhu prem prasaad lagataa suhaanaa
sardee garmee varshaa patajhad banaate deevaanaa
ramaneeyataa naveen karaateen prabhu kaa darshan
saundarya harasoo milataa yaheen ..
srishti..........
Part 2
jeevanaroopee samvatsar mein sabhee rituen aatee hain
sukh-sampatti kee sukhad ghadiyaan laatee hain.
kabhee aate du:kh- daaridrya
kabhee kaarya-vyaakulataa
varshon tak chalatee rahatee du:kh kee ghadee ..
srishti........
shithilataa vah deergh sootrataa dinon-din aatee rahatee
rasaaswaadan usakaa karataa priya lagatee har ghadee
baalyakaal vasant se khelaa
naujavaanee greeshma kaa melaa
praudhataa mein varshaa kaa aanand ati
srishti........
saarvajanik jeevan mein sharad hemant kee bahaar
sharad mein vaardhakya anubhav svargeeya aanand paar
vasant hee naa keval prabhu kee
sabhee rituen hain ramaneeya
santusht karatee hain man ko sabhee ..
srishti..........
7.6. 2024. 10.10 pm
👇Meaning of words:-👇
Ramaniya = beautiful delightful
Phuhaar = shower of tiny drops
Sari = waterfall
Harsoo = everywhere
Daridrya = poverty
Shithiltaa = weakness
Proudhataa= old age
Ati = very
Vardhakya = old age
My Lord
Meaning ofVedic Bhajan 👇
How beautiful is the creation of my Lord
Each season is full of joy
Whether it is winter or summer, autumn or spring
Rain or drizzle is a river of joy
Creation...
Those who do not know the love of the Lord remain dissatisfied
They call even winter, summer and rain as troubles
They have the habit of complaining
They do not like the seasons
They do not know the grace of the Lord. Creation.........
When God's love prasad seems pleasant
Winter, summer, rain, autumn make one crazy
The beauty makes one new
The sight of God
Beauty is found here only.
Creation..........
All seasons come in the year of life
They bring pleasant moments of happiness and prosperity.
Sometimes sorrow and poverty come
Sometimes work-related anxiety
The hour of sadness continues for years.
Creation..........
That long thread of laxity keeps coming day after day
Its sweet taste makes every moment seem dear
Childhood plays with spring
Youth and summer are fairs
In adulthood, the joy of rain is extreme
Creation is the spring of autumn and winter in public life
Old age experiences heavenly joy in autumn
Spring is not only God's
All seasons are beautiful
They satisfy the mind
Creation..........
My Lord!
👇Lacture( Upadesh)👇
All the seasons are beautiful in my Lord's creation.
Each season has its own beauty. Those who do not know the Lord's love are dissatisfied all the time, in every season. They miss the winter in summer, but when the winter comes, they say that the summer season is good. During the religious period, they wait for the rain every day, but even when the rain comes, they get fed up with the rain. Thus, they keep complaining all the time. They do not like any season, but after getting some prasad of the Lord's love, I see some or the other image of my Lord in every season. That is why I happily enjoy the heat in summer and winter in winter. During the rainy season, I celebrate the rain a lot and in autumn, I find a different beauty of my Lord. In this way, I see my Lord in every season and see that each season is coming to me with its new kind of beauty and a new message from the Lord.
Similar seasons also come in the year of my life. Sometimes there are moments of happiness and prosperity, and sometimes long days of sorrow and poverty pass.
Sometimes the royal period of extreme work-engagement lasts for years, and sometimes the turn of days of slackness and long-term procrastination comes for a long time, but I enjoy all of them. I like all these pleasures when they are received at their respective times. In this way, I have played a lot in the spring of my childhood, I also remember the joy of the passionate days of the summer of youth and the love-filled days of the rain of adulthood. These days I am enjoying the spring and winter in public life and I see that old age is waiting for me with its old age, fullness of experience and maturity and heavenly joy. Undoubtedly not only the spring of the Lord but also the summer is beautiful, the rain and the autumn that comes after it, along with his winter and winter are also equally beautiful.
🕉👏 187th Vedic Bhajan of the second series
And 1193rd Vedic Bhajan till now
🙏 Hearty greetings to all Vedic listeners❗
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