सद्विचारों के प्रचारक बनो
वैदिक भजन ११९५ वां
राग काफी
ताल कहरवा आठ मात्रा
👇 वैदिक मन्त्र👇
देव सवित:प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय।
दिव्यो गन्धर्व:केतपू:केतं न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न: स्वदतु।। यजु• ३०/१
👇 वैदिक भजन👇
मृदु वाणी को सजा दे बुद्धि को शुद्ध बना दे
हे सविते जगदीश्वर! भूले हैं ज्योत जगा दे ।।
मृदु .......
हम सद्विचार का ही हरदम करें विचार
बढ़े श्रेष्ठजनों का उत्साह उसका बहे प्रवाह
दृढ़ता व आस्था से बने आचारित स्वभाव
अनुभवी मनीषियों की वाणी मधुर सिखा दे
मृदु......
चीनी हो ज्यादा जल कम हो मीठा जल प्रपन्न
जो श्रवण किए हैं उपदेश, होवे मनों में अधिगम
स्वस्त्याचरण से जीवन बने पवित और अनुपम
मस्तिष्क और मन को शुद्ध आचरित बना दे
मृदु........
शुभकर्मी को सराहो जागे उमंग उसमें
यश देखो उसका गौरव बह जाओ सोमरस में
सत् ज्ञान उसे पाकर मन कर लो अपने वश में
याज्ञिक श्रवण मनन को प्रभु प्रेम में लगा दे
मृदु..........
14.6.2024 6.08 p.m.
शब्दार्थ:-
मृदु= कोमल
सविता= सकल जगत उत्पादक
मनीषी= बुद्धिमान लोग
प्रपन्न= पहुंचा हुआ
श्रवण= सुनाना
अधिगम=सीखना
स्वस्त्याचरण= मंगल कारक आचरण
अनुपम =जिसकी उपमा न हो सके, सर्वोत्तम
आचारित= आचरण करने वाला
याज्ञिक= यज्ञकर्म करने वाला
👇 उपदेश 👇
इस मन्त्र में भगवान से चार प्रार्थनाएं की गई है।
पहली-- यज्ञ प्रसुव-- प्रत्येक मनुष्य के हृदय में शुभकामना करने की प्रेरणा कर।
दूसरी--यज्ञपतिं प्रसुव-- जो शुभ कर्म करने वाले हैं उनके उत्साह को बढ़ाओ
तीसरी--दिव्य: गन्धर्व:-- दिव्य वाणी को धारण करने वाले और केतपू:-- जिन्होंने ज्ञान से अपने आप को पवित्र किया है--न:केतं पुनातु-- हम भूले भटकों को मार्ग बतावें
चौथी--वाचस्पति: न: वाचं स्वदतु-- वाणी के स्वामी हमारी वाणी को माधुरी से युक्त बनावें।
भगवान से प्रार्थना के साथ-साथ अपने प्रथित अभिप्राय की पूर्ति के लिए अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार स्वयं पुरुषार्थ करना चाहिए तभी भगवान भी सहायता करते हैं। चार कर्तव्यों में पहला यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को सब विचारों का प्रचार करना चाहिए। दूसरा यह कि अच्छे काम करनेवाले धर्मात्माओं के काम की प्रशंसा करके उनका उत्साह बढ़ाना चाहिए। तीसरा यह कि जो- जो हम जानते जायें उस पर पूरी आस्था और दृढ़ता के साथ आचरण आरम्भ कर देना चाहिए। चौथा यह कि मनीषी अनुभवियों से मधुर भाषण की शिक्षा लेकर हमें इस प्रकार की वाणी बोलनी चाहिए जिसे सुनकर व्याकुल और विकसित व्यक्ति भी शान्ति- लाभ करें।
इस विषय में विश्लेषण करने से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि संसार में अच्छाई तो प्रयत्न करने से उत्पन्न होती है और बुराई जहां अच्छाई का प्रकाश नहीं पहुंचेगी वहां स्वत उत्पन्न हो जाएगी। सामान्यतः यह स्थापना बड़ी विचित्र सी लगती है की अच्छाई का जन्म पर्यटन और परिश्रम से होता है और बुराई अपने आप पैदा होती है किन्तु है वास्तविक वास्तविकता है यही।
विचारों में तो इतनी अद्भुत शक्ति होती है कि मनुष्य हंसते-हंसते मृत्यु तक का आलिंगन करने को उदित हो जाता है। हां इस बात में भी आंशिक तथ्य है कि उपदेश और भाषण का प्रभाव बाद में नहीं टिक पाता। प्रयाग धीरे-धीरे शिथिलता आ जाती है और वह विचार आचरण में नहीं आ पाए। इसमें भी गहराई से विचारे तो दोष विचारों में नहीं मात्रा में है इस इस उदाहरण से समझिए--- पानी में चीनी घोलने से पानी मीठा हो जाता है। 1 कि.ग्रा.पानी में ढाई सौ ग्राम चीनी घोली जावे, तो पानी मीठा हो जावेगा। किन्तु एक व्यक्ति 10 किलो पानी में ढाई सौ ग्राम चीनी डालकर और घोलकर यह निष्कर्ष निकाले कि चीनी से पानी मीठा नहीं होता, अभी चीनी घोली गई थी किन्तु पानी फीका ही है, तो यह स्थापना भ्रमपूर्ण है और अनुपात तथा मात्रा का ध्यान न रखने के कारण हुई है। चीनी पानी को निश्चित रूप से मीठा करती है किन्तु उसके लिए अनुपात का ध्यान रखना अनिवार्य है। ठीक है यही बात विचारों के लिए है। जो विचार उपदेश में श्रवण किए हैं उन्हीं की चर्चा मार्ग में हो
उन्हीं की घर में उठते- बैठते वही प्रसंग कार्यालय और दुकान पर चले और विचारों का एक वायुमंडल तैयार हो जाए तो कोई कारण नहीं की जो विचार दिए गए हैं, वे आचरण में ना आ पावें।
मंत्र में पहली बात यह कि द्वापर में बुराइयों के बीहड़ जंगल को सतत् जागरूक रहकर और निरन्तर घोर परिश्रम करके योगीराज कृष्ण ने समाज के वायुमंडल को शुद्ध किया था अतः वेद ने कहा कि प्रत्येक विचारशील व्यक्ति सद्गुणों के प्रचार के लिए सचेष्ट रहे तो मानव- समाज सुख और शान्ति का घर बन सकता है।
मन्त्र की दूसरी बात है शुभ कर्म करने वालों के सद्गुणों की सराहना करके उनका उत्साह बढ़ाना चाहिए इससे वह और उमंग से काम करेंगे तथा अन्य सामान्य व्यक्ति भी उनके यश और गौरव को देखकर शुभ कर्म करने की प्रेरणा लेंगे। इसके विपरीत यदि उनकी प्रशंसा ना करके डाह और जलन से उन पर मिथ्या दोषारोपण करके उनकी टांग खींचेंगे तो इससे समाज की बहुत बड़ी हानि यह होगी कि लोग भलाई का काम करने से कतरा जाएंगे और परिणाम स्वरुप अच्छाई के प्रचार का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। मन्त्र में तीसरी बात यह है कि ज्ञान को अपने आचरण का अङ्ग बनाकर ही दूसरों को उपदेश देना चाहिए तभी कथन का प्रभाव होता है। यदि स्थिति इसके विपरीत तो हो तो उसका फल सन्तोषप्रद नहीं होगा फिर तो लोग आलोचना करते रहेंगे।
मन्त्र में चौथी बात यह है कि हम वाणी को वश में रख के उसका इस प्रकार प्रयोग करें कि सब ओर आनन्द और माधुर्य की वृद्धि हो।
1195 Become a propagator of good thoughts
Vedic Bhajan 1195th
Raag Kaafi
Tala Kaharva Eight beats
👇 Vaidik mantra👇
dev savit:pra suva yagnyam pra suva yagnyapatim bhagay।
divyo gandharva:ketapoo:ketam na: punatu vachaspatirvacham na: svadatu।। yaju• ३०/१
👇Vaidik bhajan👇
1195 sadvichaaron ke prachaarak bano
vaidik bhajan 1195 vaan
raag kaaphee
taal kaharava aath maatra
👇 vaidik bhajan👇
mridu vaanee ko sajaa de buddhi ko shuddh banaa de
he savite jagadeeshvar! bhoole hain,jyot jagaa de ..
mridu .......
ham sadvichaar kaa hee *haradam* karen vichaar
badhe shreshtha janon ka utsaah usakaa bahe pravaah
dridhata va aastha se bane aachaarit swabhaav
anubhavee maneeshiyon kee vaanee madhur sikha a de
mridu......
cheenee ho jyaada jal kam ho meetha jal prapann
jo shravan kiye hain upadesh, hove manon mein adhigam
svastyaacharan se jeevan bane pavit aur anupam
mastishk aur man ko shuddh aacharit banaa de
mridu........
shubhakarmee ko saraaho jaage umang usamen
yash dekho usaka gaurav bah jao somaras mein
sat gyaan use paakar man kar lo apane vash mein
yaagyik shravan manan ko prabhu prem mein lagaa de
mridu..........
14.6.2024 6.08 p.m.
O Lord of the sun, bless the sacrifice, bless the lord of the sacrifices, for the sake of Bhaga.
May the divine Gandharva Ketapu Keta purify us and may Vachaspati make our words sweet. Yaju• 30/1
Semantics:-
Mridu= soft
Savita= the producer of the whole world
Manishi= intelligent people
Prapanna= reached
Shravana= to hear
Adhigama=learning
Swastyacharana= auspicious conduct
Anupam = incomparable, the best
Aacharit= conducting
Yajnik= performing sacrificial rituals
👇meaning ofVedic Bhajan👇
Adorn the soft voice and purify the intellect
O Savite Jagadishwar! We have forgotten, awaken the light.
Mridu.......
Let us always think of good thoughts
Let the enthusiasm of noble people increase and its flow
Let the behaviour of the people flow with perseverance and faith
Let the words of experienced sages teach sweetness
Mridu......
Let there be more sugar and less water and sweet water
Let the teachings that we have heard be imbibed in our minds
Let the life become pure and unique with healthy conduct
Let the mind and mind have pure behaviour
Mriddu......
Let the virtuous person be praised and enthusiasm awaken in him
Let his fame and glory flow away in the Somras
After attaining true knowledge, bring your mind under your control
Let the Yagya's listening and contemplation be immersed in the love of God
Mriddu..........
*****"*****
👇Meaning of bhajan👇🏼
Become a propagator of good thoughts
👇self study (swaadhyaay) 👇
In this mantra, four prayers have been made to God.
First-- Yagya Prasuv-- Inspire good wishes in the heart of every person.
Second-- Yagyapatim Prasuv-- Increase the enthusiasm of those who do good deeds.
Third-- Divya: Gandharva:-- Those who possess divine speech and Ketapu:-- Those who have purified themselves with knowledge.
Nah Ketam Punatu-- Show the path to us who are lost.
Fourth-- Vachaspati: Nah Vacham Swadatu-- The master of speech should make our speech sweet.
Along with praying to God, one should make efforts according to one's ability and capacity to fulfill one's desired intention, only then God also helps. The first of the four duties is that every person should propagate all thoughts. The second is that one should encourage the righteous people doing good deeds by praising their work. Thirdly, we should start practising whatever we learn with full faith and determination. Fourthly, we should learn sweet speech from wise and experienced people and speak such words that even a disturbed and developed person gets peace by listening to them.
By analysing this subject, we reach the conclusion that goodness in the world is born by making efforts and evil will be born automatically where the light of goodness does not reach. Generally, this statement seems very strange that goodness is born by toil and hard work and evil is born on its own but this is the real reality.
Thoughts have such a wonderful power that man rises to embrace death smilingly. Yes, there is partial truth in this also that the effect of preaching and speech does not last later. Prayag gradually becomes lax and those thoughts do not come into practice. If we think deeply in this also, then the fault is not in the thoughts but in the quantity. Understand this from this example--- water becomes sweet by dissolving sugar in it. If 250 grams of sugar is dissolved in 1 kg of water, the water will become sweet. But a person may dissolve 250 grams of sugar in 10 kg of water and conclude that sugar does not make water sweet.
If sugar was added now but the water is still bland, then this statement is misleading and has been made due to not paying attention to the proportion and quantity. Sugar definitely sweetens the water but it is essential to keep the proportion in mind for it. The same thing applies to thoughts. The thoughts that we have heard in the sermons should be discussed on the way. The same should be discussed in the house, office and shop and if an atmosphere of thoughts is created, then there is no reason why the thoughts given cannot be put into practice. The first thing in the mantra is that in Dwapar, Yogiraj Krishna had purified the atmosphere of the society by constantly being aware and by doing hard work in the dense jungle of evils, hence the Vedas say that if every thoughtful person remains alert to propagate virtues, then human society can become a home of happiness and peace. The second thing in the mantra is that the virtues of those who do good deeds should be appreciated and their enthusiasm should be increased, by this they will work with more enthusiasm and other common people will also get inspired to do good deeds by seeing their fame and glory. On the contrary, if instead of praising them, we pull their leg by falsely blaming them out of jealousy and envy, then it will cause a great loss to the society as people will shy away from doing good deeds and as a result, the path of propagating goodness will be blocked. The third thing in the mantra is that one should preach to others only after making knowledge a part of one's conduct, only then will the statement have an effect. If the situation is contrary to this, then its result will not be satisfactory and people will keep on criticizing.
The fourth thing in the mantra is that we should control our words and use them in such a way that there is an increase in happiness and sweetness everywhere.
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