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दिनांक - -२५ अक्तूबर २०२४ ईस्वी

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷



दिनांक  - -२५ अक्तूबर २०२४ ईस्वी


दिन  - - शुक्रवार 


  🌗 तिथि -- नवमी ( २७:२२ तक तत्पश्चात  दशमी )


🪐 नक्षत्र - - पुष्य ( ७:४० तक तत्पश्चात आश्लेषा)

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  कार्तिक 

ऋतु  - - शरद 

सूर्य  - -  दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:२८ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:४१ पर 

 🌗चन्द्रोदय  -- २४:५४ पर 

 🌗 चन्द्रास्त  - - १४:०३पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


   🔥अहिंसा परमो धर्म: 

हमारा इस सिद्धान्त से भी ब्रेनवोश हुआ। वर्ना यह १२०० साल की पराधिनता ओर क्या थी ?

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  हमारे देशवासी कभी भी हिंसक ना थे,  कोई भी वक्त ऐसा नहीं गुज़रा होगा जब उन्होंने किसी दुर्बल को, बिना किसी अपराध के अत्याचार किया हो।


  हमारे राजनेता विदेश जाकर कहते हैं कि सदियों से भारत ने किसी देश पर, उनकी जमीन हड़पने के लिए आक्रमण नहीं किया।


महावीर स्वामी से हमारा  ब्रेनवोश हुआ । हमारे दैनिक जीवन में जो हिंसा थी,  वह उसने रूकवाई गई थी । चलो यह बात तो अच्छी थी। लेकिन “अहिंसा ही परमो धर्म।”  लोगों ने जो कर्तव्य था हिंसा करने का, वही कर्तव्य भी छोड़ दीया। सब जानते हैं कि कभी-कभी हिंसा भी कर्तव्य होती है।  श्री कृष्ण ने गीता मैं अर्जुन को वही उपदेश दिया था । की जो पापी लोग मारने योग्य है, उनको ना मरना,  बचाना, उनको जिंदा रखना, उनको जिंदा छोड़ देना, वह सबके लिये भविष्य की विपत्ति हो सकती है... इसलिए है अर्जुन जो पापी है, उन सबको चुन चुन के तुझे मारना होगा। यहां हिंसा करना यह तेरा धर्म है।


  हमारे देश में जो बौधिझम और जैनिज्म आया। उसकी वजह से हमारा देश का उलटी दिशा में ब्रेनवाश हुआ।  इसलिए हम सब 'भगत'  हो गए।  ज्ञान और भक्ति बहुत विरोधाभासी चीज है! लेकिन आज तक हमारे विद्वानों ने दोनों एक ही है ऐसी साबित करने की व्यर्थ कोशिश की है!   विद्वानों ने क्या यह भक्ति और ज्ञान का मैल मिलाप सच नहीं है । यह सबसे बड़ा झूठ है।  भक्त और ज्ञानी एक दूसरे से मूलतः विपरीत है। भक्त ने काल्पनिक मूर्ति से प्रेम किया, इस प्रेम से इनके लिए कहा जाता है कि वह कभी हिंसा नहीं करेगा । क्योंकि श्रद्धालुओं अपने दिमाग से कभी स्वतंत्र रुप से कभी सोच ही नहीं सकते। लेकिन ज्ञानी का कोई भरोसा नहीं, ज्ञानी कभी भी तलवार उठा सकता है, स्वतंत्र रुप से सोच सकता हे। ज्ञानी ब्रेनवोश नहीं है ।  

आक्रांताओं आते रहे। हमारा पूरा समाज भक्ति में लिंन था। आज भी सुबह से उठकर शामको सोने तक  हमारी दिनचर्या भक्ति मय ही है।  हम भक्ति में- मिकेनाईझ रोबोट हो गये है।  जिसके हाथ में तलवार होनी चाहिए उनके हाथ में हमने माला जपने के लिये थमा दिया। पूरे हिंदुस्तान मूर्ति पूजा में और नाम जप करने में व्यस्त था। हिंसा तो उसे जरा भी करने ही नहीं थी। हम चींटी को भी बचाकर चलनेवाले लोग थे। हमे सिखाया गया था की हिंसा करना पाप है। और इस जगत में जो हो रहा है वह परमात्मा की इच्छा से हो रहा है। इसलिए एक के बाद एक आक्रांता आए। इस देश जो सोने की चिड़िया था, उसको लूटने के लिए, उसको तबाह करने के लिए आते रहे, और वही सब हमारी नजर के सामने होता रहा। हम भक्तलोग स्रध्धालु थे । ब्रेनवोश थे। इसलिए हम कुछ ना बोले,  किसी का सामना नहीं किया, किसी को ललकारा नहीं, ललकारते तो हमारी तरफ से हिंसा हो जाती थी। आक्रांताओं के तरफ से जो भी हिंसा होगी, सहन करली।  वह हमेशा ही नहीं होगी, चले जाएंगे कुछ धन को लूट कर। धन तो हाथ का मैल है। वह हिंसा हमें कबूल मंजूर है। लेकिन हम इनकी विरुद्ध हिंसा नहीं करेंगे।  यह उल्टा ब्रेनवोश हमारा “भक्तिमार्गी” होने से हुआ। यही बात समझने योग्य है!

शंकराचार्य हमें अद्वैत की शिक्षा दे गये। चिदानंद रूपा शिवोहम शिवोहम। यह वेदांत का ज्ञान का स्थापना करके गए लेकिन इसके पीछे क्या हुआ? हमारे भक्ति मार्ग के बहुत से आचार्य पैदा हुए और सब ने अपना-अपना थोड़ा सा अलग-अलग मत व्यक्त किया। सब आचार्य की प्रतिभा देखकर हमें लगता है कि उसने जानबूझकर ऐसा किया है। बहुत से सिद्धांत रखे गए। द्वैत सिद्धांत, अद्वैत सिद्धांत, विशिष्टाद्वैत सिद्धांत, आदि.. और हम हिन्दु  इन सिद्धांतों के अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय बनाकर अलग-अलग गुट में बिखर गए।


  इतना ही नहीं लेकिन एक दूसरे के गुट के दुश्मन भी बन गए। और हम ज्यादा से ज्यादा कमजोर भी होते गए क्योंकि एकजूट होकर आक्रांताओं का सामना नहि कर सके । 


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 🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷ओ३म् शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभि: शं नो भवन्तु मरूत: स्वर्का:।शं नो विष्णु: शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायु:( ऋग्वेद ७|३५|९)


💐अर्थ  :- नियमो सहित अखण्ड धरती माता हमारे लिए सुखदायी हों, शुभ विचार वाले शूरवीर व बड़े विद्वान लोग हमें सुख देने वाले हो, व्यापक परमेश्वर हमें सुखदायक हो, पुष्टिकारक तत्व व ब्रह्मचर्यादि व्यवहार हमें शान्ति देने वाले हो, अन्तरिक्ष व जल हमें सुखकर हो और पवन सुख देने वाली हो। 


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , शरद -ऋतौ, कार्तिक - मासे, कृष्ण पक्षे , नवम्यां

 तिथौ, पुष्य/ आश्लेषा 

 नक्षत्रे, शुक्रवासरे,

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे

(यस्मादृचो अपा०) जो सर्वशक्तिमान् परमेश्वर है, उसी से (ऋचः) ऋग्वेद (यजुः) यजुर्वेद (सामानि) सामवेद (आङ्गिरसः) अथर्ववेद, ये चारों उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार रूपकालङ्कार से वेदों की उत्पत्ति का प्रकाश ईश्वर करता है कि अथर्ववेद मेरे मुख के समतुल्य सामवेद लोमों के समान,

यजुर्वेद हृदय के समान और ऋग्वेद प्राण की नाईं है। (ब्रूहि कतमः स्विदेव सः) कि चारों वेद जिससे उत्पन्न हुए हैं सो कौनसा देव है, उसको तुम मुझ से कहो ? इस प्रश्न का यह उत्तर है कि- (स्कम्भं तं०) जो सब जगत् का धारणकर्ता परमेश्वर है उसका नाम स्कम्भ है, उसी को तुम वेदों का कर्ता जानो, और यह भी जानो कि उसको छोड़ के मनुष्यों की उपासना करने के योग्य दूसरा कोई इष्टदेव नहीं है । क्योंकि ऐसा अभागा कौन मनुष्य है जो वेदों के कर्त्ता सर्वशक्तिमान् परमेश्वर को छोड़ के दूसरे को परमेश्वर मान के उपासना करे ।।२।।


(एवं वा अरेऽस्य) याज्ञवल्क्य महाविद्वान् जो महर्षि हुए हैं, वह अपनी पण्डिता मैत्रेयी स्त्री को उपदेश करते हैं कि हे मैत्रेयि ! जो आकाशादि से भी बड़ा सर्वव्यापक परमेश्वर है, उससे ही ऋक् यजुः, साम और अथर्व ये चारों वेद उत्पन्न हुए हैं, जैसे मनुष्य के शरीर से श्वास बाहर को आके फिर भीतर को जाता है इसी प्रकार सृष्टि के आदि में ईश्वर वेदों को उत्पन्न करके संसार में प्रकाश करता है, और प्रलय में संसार में वेद नहीं रहते, परन्तु उसके ज्ञान के भीतर वे सदा बने रहते हैं, बीजाङ्‌कुरवत् । जैसे बीज में अङ्कुर प्रथम ही रहता है, वही वृक्षरूप होके फिर भी बीज के भीतर रहता वेद भी ईश्वर के ज्ञान में सब दिन बने रहते हैं, उनका नाश कभी विद्या है, इससे इसको नित्य ही जानना ।


ऋषि दयानन्द सरस्वती ( ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका )

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