🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -०१ नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌑 तिथि -- अमावस्या ( १८:१६ तक तत्पश्चात प्रतिपदा )
🪐 नक्षत्र - - स्वाती ( २७:३१ तक तत्पश्चात विशाखा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - कार्तिक
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:३३ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:३६ पर
🌑चन्द्रोदय -- चन्द्रोदय नही होगा
🌑 चन्द्रास्त - - १७:२५ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥जीवन के कल्याण के लिए यत्न करों ।
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संसार के लोग साधन को ही साध्य समझ बैठे हैं। संसार के पदार्थों में ही मस्त हो गये हैं। इन्हीं को ही साध्य समझ बैठे हैं। जड़ शरीर के पालन-पोषण पर ही ध्यान दे रहे हैं, इसे ही चेतन समझ बैठे हैं। आत्मा और परमात्मा को भूलते जा रहे हैं। भर्तृहरि जी महाराज ने उन पर दु:ख व्यक्त करते हुए कहा है―
व्याघ्रीव तिष्ठति जरा परितर्जयन्त
रोगाश्च शत्रव इव प्रहरन्ति देहम् ।
आयु: परिस्रवति भिन्नघटादिवाम्भो
लोकस्तथाप्यहितमाचरतीति चित्रम् ।।
―(भर्तृहरि वै० श० ९६)
भावार्थ―वृद्धावस्था भयंकर बाघिन के समान सामने खड़ी है, रोग शत्रुओं की तरह आक्रमण कर रहे हैं, आयु फूटे हुए घड़े से पानी की तरह निकली जा रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि फिर भी लोग वही काम करते हैं, जिससे उनका अनिष्ट हो।
आदित्यस्य गतागतैरहरह: संक्षीयते जीवितं,
व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभि: कालो न विज्ञायते ।
दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते,
पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत् ।।
―(भर्तृहरि वै० श० ७)
भावार्थ―सूर्य के उदय और अस्त के साथ मनुष्य का जीवन प्रतिदिन घटता जाता है। समय भागता जाता है, पर कारोबार में संलग्न रहने के कारण, यह भागता हुआ नहीं दीखता। लोगों को पैदा होते, बूढ़ा होते और मरते देखकर भी मन में भय नहीं होता। इससे ज्ञात होता है कि संसार मोहमयी प्रमादरुपी मदिरा के नशे में मतवाला हो रहा है।
वेद कहता है कि हे मनुष्य, तू भौतिकवाद के रास्ते पर मत चल। यह रास्ता भयंकर है। तुझे मैं अध्यात्मवाद के मार्ग से ले चलता हूं। वेद कहता है कि भौतिकवाद का मार्ग अन्धकार का मार्ग है, तू इस पर मत चल। भौतिकवाद की और भय है और अध्यात्मवाद की और अभय है।
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️
🌷 ओ३म् स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्यति:। बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु न:।(ऋग्वेद ५|५१|१२)
💐 अर्थ :- वायु को गति तथा चन्द्रमा को सोमरस देने वाला सबसे महान् जगत् का स्वामी परमेश्वर हमारे लिए कल्याणकारी हो।सब समूह वाले बड़े- बड़े ब्रह्माण्डों व वेद ज्ञान के रक्षक परमात्मा की हम स्तुति करते हैं। हे प्रभु ! बड़े विद्वान भक्त, शूरवीर, आदित्य ब्रह्मचारी पुत्र हमारे कल्याण के लिए हो ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, कार्तिक - मासे, कृष्ण पक्षे , अमावस्या
तिथौ, स्वाती
नक्षत्रे, शुक्रवासरे,
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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