🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -१५ नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌕 तिथि -- पूर्णिमा ( २६:५८ तक तत्पश्चात प्रतिपदा )
🪐 नक्षत्र - - भरणी ( २१:५५ तक तत्पश्चात कृत्तिका )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - कार्तिक
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:४४ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२७ पर
🌕चन्द्रोदय -- १६:५१ पर
🌕 चन्द्रास्त - - चन्द्रास्त नही होगा
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥क्या होते हैं ६ शास्त्र ?
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🌷हिन्दू समाज ने चार वेदों के बाद ६ शास्त्रों का नाम कई बार सुन रखा है । लेकिन हमारा हिन्दू समाज इनसे अंजान है । तो ये आर्य समाज का दायित्व बनता है कि हिन्दू अपने प्रत्येक धर्मग्रंथ को अच्छे से जाने और समझे । जैसा कि आर्य समाज सदा से इसी प्रयास में रहा है कि हिन्दू अपने मूल वैदिक धर्म को ठीक से जानकर इससें जुड़ जाए और इसलिये समय समय पर आर्य समाज ने अपनी प्रखर लेखनी के द्वारा हिन्दू जनता में चेतना फैलाई है ।
तो इन ६ शास्त्रों को वेदों के उपांग या दर्शन शास्त्र भी कहा जाता है । हमारे ऋषियों ने वेदों में यत्र तत्र बिखरे सिद्धान्तों को समेटकर इन ६ दर्शनशास्त्रों का निर्माण किया है जिनके आधार पर हम वेदवाणी को ठीक ठीक समझ सकते हैं । ये ६ वैदिक दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते हैं । ये हमारे तर्कशास्त्र हैं जिन्हें पढ़कर हर मनुष्य की बुद्धि खुल जाती है और वह कभी भ्रमित होकर ईश्वर, धर्म, अधर्म, सत्य, असत्य आदि के विषय पर शंका नहीं करता । इन दर्शन शास्त्रों को पढ़कर सभी प्रकार की शंकाओं का समाधान स्वयं ही हो जाता है । ये ६ दर्शन इस प्रकार हैं :-
(१) न्याय शास्त्र :- इसकी रचना गौतम मुनि ने की है । इस शास्त्र का विषय मुख्यतः तर्क है । चार प्रकार के प्रमाणों ( प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ) के द्वारा मनुष्य अपने आसपास बिछे हुए संसार में से सत्य और असत्य को छाँटकर अलग करके जान पाए इस उद्देश्य से ये दर्शन रचा गया है ।
(२) वैशेषिक शास्त्र :- इसकी रचना कणाद मुनि ने की है । ये शास्त्र पदार्थ विद्या के बारे में है । ईश्वर ने हमारे लिये संसार के जिन पदार्थों का निर्माण किया है उनके गुण कर्म आदि जानकर उनसे कैसे उपयोग लेना है ? ये इस शास्त्र का विषय है । ( ये भौतिक शास्त्र है )
(३) सांख्य शास्त्र :- इसकी रचना कपिल मुनि ने की है । इसका मुख्य विषय है प्रकृति के सबसे सूक्ष्म कणों ( सत, रज, और तम से शब्द, स्पर्श, रूप,रस और गन्ध ) से सृष्टि की उत्पत्ति कैसे होती है ? कैसे सभी पदार्थों में समानता होते हुए विशेषता है ? ये शास्त्र पूर्ण रूप से प्रकृति और आत्मा में भेद बतलाता है ।
(४) योग शास्त्र :- इसकी रचना पतंजलि मुनि ने की है । इसका मुख्य विषय है आठ मर्यादाओं ( यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी ) का पालन करते हुए सभी दुखों से छूटते हुए मोक्ष प्राप्त करने की विधि बताना ।
(५) मिमांसा :- इसकी रचना जैमिनि मुनि ने की है । इसका विषय है कि किस प्रकार के वैदिक कर्मकांड और मर्यादाओं का पालन करने से मनुष्य पूर्ण सुखी हो सकता है और अपने जीवन के लक्ष्य मोक्ष को पा सकता है ?
(६) वेदान्त ( ब्रह्मसूत्र ) :- इसकी रचना वेदव्यास मुनि ने की है । इसका मुख्य विषय है ईश्वर के स्वरूप उसके गुणों का वर्णन करना जिनकों जानकर मनुष्य उनके विषय में सभी शंकाओं से निवृत होकर उनकी उपासना में लगे और योगाभ्यास करते हुए उनको प्राप्त करे ।
ये हमारे ६ वैदिक आस्तिक दर्शन हैं जिनको पढ़कर मनुष्य वेद के मन्तव्य ठीक से समझकर तार्किक होकर अपने मूल धर्म को ठीक से जान सकता है ।
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🚩‼️ आज का वेद मंत्र ‼️🚩
🌷ओ३म् अहानि शं भवन्तु न: शं रात्री: प्रतिधीयताम् ।शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभि: शं न इन्द्रावरूणा रातहव्या। शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ शमिन्द्रासोमा सुविताय शं यो:।(यजुर्वेद ३६|११)
💐 अर्थ :- हे ईश्वर ! दिन हमें सुखकारी हो, रातें शान्ति देने वाली हों, विद्युत् वा अग्नि रक्षक सामग्री सहित सुखकारक हो, विद्युत् व जल के ग्रहण करने योग्य सुख हमें शान्ति दायक हो, विद्युत् और पृथ्वी हमारे लिए अन्नो के सेवनार्थ सुखदायी हों तथा विद्युत् और उत्तम् औषधियां रोगनाशक एवं भय निवर्तक हों, ऐसी कृपा करो ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, कार्तिक - मासे, शुक्ल पक्षे , पूर्णिमायां
तिथौ, भरणी
नक्षत्रे, शुक्रवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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