यह जीवन एक संतुलन पर कार्य करता है। और इस संतुलन को ही प्रबंधीकरण कहते हैं। जिसके जीवन में प्रबंधीकरण नही होगा उसको किसी भी क्षेत्र में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है।
यह दुनिया यह संसार यह देश यह समाज यह परिवार यह हमारा जीवन सब हमारे संतुलन और प्रबंधीकरण के आश्रित है। एक एक को बारी बारी समझते हैं।
पहला यह ब्रह्माण्ड हैं इसका अवलोकन जब सूक्ष्म रूप से करते हैं तो हमे इसमे एक व्यवस्था दिखाई पड़ती है। बहुत सी अनगिनत आकाशगंगाए हैं, सब व्यवस्थित हैं, बहुत से तारामंडल हैं सब व्यवस्थित हैं, अनगिनत ग्रह नक्षत्र हैं, हम अपने सौरमंडल को ही देख सकते हैं सूर्य है और उसके चारो तरफ ग्रह हैं जिसमें से एक पृथ्वी है जहां हम सभी प्राणियों के साथ निवास करते हैं, पृथ्वी अपने अक्षांस पर घ्रुवण करती हैं, साथ में सूर्य का भी चक्कर लगाती हैं अपने उपग्रह चंद्रमा के साथ दिन और रात की अद्भुत व्यवस्था जिसमें संतुलन के साथ अलौकिक प्रबंधीकरण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, ऋतुओं का चक्रिकरण सर्दी, गर्मि, वरसात बसंत इत्यादि यह सब सुव्यवस्थित है। जिसके कारण यह पृथ्वी साक्षात स्वर्ग सा सजीव प्राणियों के लिए प्रतित होती है। इसको देखने से व्यवस्था और व्यस्थापक का ज्ञान सहज ही हम सब को होता है। जब व्यवस्था है तो उसका व्यवस्थापक भी होना अनिवार्य है, इस व्यवस्थापक को हम ईश्वर के नाम से जानते हैं ।
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