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दिनांक - - १५ दिसम्बर २०२४ ईस्वी

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷



दिनांक  - - १५ दिसम्बर  २०२४ ईस्वी


दिन  - - रविवार 


  🌕 तिथि --  पूर्णिमा ( १४:३१ तक तत्पश्चात  प्रतिपदा )


🪐 नक्षत्र - - मृगशिर्ष ( २६:२० तक तत्पश्चात आर्द्रा )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  मार्गशीर्ष 

ऋतु - - हेमन्त 

ऋतु  - - दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:०६ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:२६ पर 

 🌕चन्द्रोदय  --  १७:१४ पर

 🌕 चन्द्रास्त  - - चन्द्रास्त नही होगा 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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🚩‼️ओ३म्‼️🚩


   🔥प्रश्न  - क्या वैदिक धर्म में छुआ-छूत, जातिभेद, जादूटोना, डोराधागा , ताबीज़, शकुन , फलित ज्योतिष, जन्मकुण्डली, हस्तरेखा, नवग्रह पूजा, नदी स्नान  , बलिप्रथा सतीप्रथा, मांसाहार, मद्यपान, बहुविवाह, भूत- प्रेत , मृत श्राद्ध, पिण्डदान, भविष्यवाणी आदि का विधान हैं?


  उत्तर  - वैदिक धर्म में उपरोक्त   अंधविश्वासों, अंधश्रद्धा और  आडम्बरों का कोई विधान नहीं हैं


        अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के कारण जब मनुष्य की बुद्धि काम नहीं करती तो वह जो कुछ नहीं करना चाहिए वह करता है। जहां अल्पज्ञता होती है वहां भ्रान्तियाँ भी होती है और श्रद्धा प्रेम डगमगाता है । परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि प्रदान की है कि वह इसे इस्तेमाल करे और सत्यासत्य का निर्णय कर सकें ।


      ईश्वर न्यायकारी और दयालु है इसलिए हर सृष्टि के प्रारम्भ में मनुष्य के लिए वेदों की रचना कर वेदामृत पिला देता है। वेद ज्ञान से ही मनुष्य सत्यासत्य का निर्णय कर सकता है।  क्योंकि वेद ईश्वरकृत होने से स्वत: प्रमाण हैं। 


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🚩‼️ आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷ओ३म् स न: पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव सचस्वा न: स्वस्तये।  (ऋग्वेद)


  💐 हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! जैसे पुत्र के लिये पिता वैसे आप हमारे लिए उत्तम ज्ञान और सुख देने वाले है ।आप हम लोगों को कल्याण के लिये सदा युक्त करे ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल पक्षे,पूर्णिमायां

 तिथौ, 

  मार्गशीर्ष नक्षत्रे, रविवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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