इतिहास की रहस्यमय घटनाएं- रूआना और नरबलि
इतिहास की रहस्यमय घटनाएं- रूआना और नरबलि
यह घटना कहानियों में पढ़ी तिलिस्मी जैसी लगती है, लेकिन पूर्णरूपेण सत्य है। अफ्रीका महाद्वीप में कांगो नामक एक देश है। युद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों की नीति के अनुसार कांगो को बेल्जियम से आजादी प्राप्त हुई। किन्तु खोजे हुए गौरों ने वहां कटंगा नामक प्रान्त को अलग करके गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर दी, जहां वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री पैट्रिक लुमुंबा संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव डाग हेमरशोल्ड को भी अपने प्राण गंवाने पड़े।
गृहयुद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी सेनाएं और एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। प्रतिनिधिमंडल के नेता थे कैप्टन नेल्स बोहेमन। नेल्स को अपनी यात्रा के दौरान कांगो के घने और भयंकर जंगलों के बीच से गुजरना पड़ा। संयोगवश एक स्थान पर वे बाक्कटु लोगों के नरभक्षी कबीले की चपेट में आ गए।
नेल्स का अपहरण करके उन्हें उस स्थान पर पहुंचा दिया गया जहां बाक्कटु कबीले के लोग नरबलि चढ़ाने के लिए उत्सव मनाया करते थे। पचासों बाक्कटु लोग उन्हें घेर कर खड़े थे। वे लोग शराब के नशे में मदहोश होकर झूमने लगे। नेल्सन ने अनुमान लगा लिया कि अब उनका अंत निकट आ गया है और वे काल के गाल में जाने वाले हैं। बाक्कटु कबीले के लोगों ने उन्हें बुरी तरह से बांध दिया। उन्हें अपने बचाव का अब कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। क्योंकि उनके सुरक्षा अधिकारी पीछे छूट चुके थे। तभी वहां एक गौरवर्णी नवयुवती को उन्होंने झूमते हुए आते देखा। उन्हें तब और भी आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि इन हत्यारों का सूत्र संचालन करने वाली देवी काले लोगों में से नहीं बल्कि यही युरोपियन नवयुवती है। उसका नाम जो बाद में ज्ञात हुआ, रूआना था।
नल्स बोहेमन ने साहस बटोरा और देवी रूआना से बातचीत करने का सलाका बिठाया। जैसे-तैसे देवी रूआना कप्तान साहब से बातचीत करने के लिए सहमत हुई। उसने उनके प्रश्नों का उत्तर देते हए बताया, ‘मैं अभी तक कुंवारी है। मेरा नाम जंगली है और मैं फ्रेंच हूं। मेरा असली फ्रेंच नाम ‘जाने टी फ्रेवे है।’
उसने आगे बताया, ‘जब मैं लगभग 14 वर्ष की थी, तब मैं अपने माता-पिता के साथ कांगो की सैर के लिए आई थी। हम सभी लोग एक नाव में बैठे हए थे। कांगो नदी की सैर के दौरान नाव के उलट जाने से माता-पिता दोनों ही नदी में डूब गए और मैं बेहोशी की अवस्था में नदी के तट पर पड़ी थी। संयोगवश अनेकों काले सांप मेरे शरीर पर लिपट गए थे। तभी वहां पर बाक्कटु कबीले के लोग आ पहंचे। मेरे सांपों से लिपटे होने तथा मेरे गौरवर्ण और साहसी समझे जाने के कारण उन्होंने मुझे अपनी देवी मान लिया।
सांपों को इन लोगों ने अपने तरीके से मेरे शरीर से अलग कर दिया। मैं बच गई और इस कबीले की गरिमायुक्त देवी भी बन गई। मैं इन लोगों की देवी तो बन गई किन्तु मुझे अपनी इच्छा के विरुद्ध इन्हीं के रीति-रिवाज अपनाने पडे। क्योंकि जान बचाने का और कोई भी तरीका मुझे नजर नहीं आया।
मैं भाग भी नहीं सकती थी। यद्यपि मैंने भागने के काफी प्रयत्न भी किए। शरु-शुरु में तो इन लोगों के कृत्यों से मुझे काफी घबराहट होती थी, किन्तु वातावरण को समझ कर मैं नर बलियों की अभ्यस्त हो गई। और अब तो जब कि मेरे सामने कोई नर, बलि के लिए लाया जाता है तो मुझे बड़ा ही आनन्द आता है।
यह मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मनुष्य का जीवन बेशकीमती होता है किन्तु अब मैं उसे टाल नहीं सकती। मुझे नर बलि प्रथा एक अत्यन्त हृदयस्पर्शी तथा मनोरंजन से परिपूर्ण कार्य लगता है।
अब मैं कहीं भी नहीं जाना चाहती। मुझे अपनी इस स्थिति में रहने में कोई घबराहट नहीं है। साथ ही मैं नरबलियों की अभ्यस्त भी हो चुकी हूं।’
कैप्टन बोहेमन को देवी रूआना की बातों से बड़ा आश्चर्य हुआ। साथ ही उन्हें ऐसा लगा कि शायद देवी रूआना उन्हें सभ्य-गौरवर्ण का होने तथा राष्ट्र संघ का प्रेक्षक होने के कारण बख्श देगी और वे उससे प्राणों की भिक्षा मांग सकेंगे।
कैप्टन ने अनेकों प्रयास किए देवी रूआना से प्राणों की भिक्षा मांगने के किन्तु उनके ये सारे प्रयास असफल हो गए। रूआना नर बलि के पिशाच सरदार को अपनी आज्ञा सुना चुकी थी।
रूआना के मन में इस गोरे सभ्य व्यक्ति के प्रति जरा भी दया या मोह जैसा कोई अंकुर तक न फूटा। क्योंकि उसका मन पूर्णत: जंगली और बर्बर बन चुका था। अब कप्तान ने मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए अपना अन्तिम प्रयास किया और वे किसी प्रकार अपनी पिस्तौल सम्भालने में सफल हो गए। उन्होंने रूआना की ओर अपनी पिस्तौल से गोली चलाई और उसे मार डाला। वहां लोगों में हलचल मच गई और वे भाग खड़े हुए। इस प्रकार फ्रेंच सुन्दरी रूआना के काल जाल में से कप्तान बोहेमन को मुक्ति मिल सकी।
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