हृदय ही खुदा का घर
है
बाबा शेख फरीद का जन्म वर्ष 1173 में मुल्तान जिला के खोतवाल गाँव में हुआ था । अनेक वर्षों तक
हरियाणा के हांसी (हिसार ) में रहकर वे खुदा की इबादत में लगे रहे । एक बार
उन्होंने देखा कि नया - नया फकीर बना एक युवक किसी से भोजन नहीं मिलने पर गुस्से
में गालियाँ दे रहा है ।
युवा फकीर को शांत करते हुए बाबा ने कहा, खुदा के अलावा किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करनी चाहिए । जो दे, उसका भी भला और जो न दे, उसका भी भला इस बात को मानकर चलना चाहिए ।
हृदय में ही खुदा का निवास है । दूसरे को गाली देकर क्या हम दोजख ( नरक ) में जाने
का काम नहीं कर रहे? बाबा के शब्दों
ने जादू का काम किया और वह युवक उनका शिष्य बन गया । बाबा ने हमेशा ऊँच-नीच की
भावना का विरोध किया । उन्होंने लिखा, अय फरीद, जब खालिक खुलक के भीतर मौजूद है और उसी में सबकुछ समाया है, तो किसको मंद और नीच समझा जाए ।
फरीद सूफी फकीर थे। उन्होंने फारसी में कविताओं की रचना की । उन्होंने लिखा, वार पराये वेसना साई मुझे न देई । ईश्वर को
छोड़कर किसी से आशा नहीं करनी चाहिए । एक शिष्य की जिज्ञासा का समाधान करते हुए
उन्होंने कहा, संतोष, नम्रता, सहनशीलता, ईमानदारी , त्याग और
उदारता ऐसे गुण हैं , जो आदमी को खुदा के पास ले जाते हैं । जब एक युवक परिवार त्यागकर उनका शिष्य
बनने पहुँचा, तो उन्होंने
युवक से कहा कि वृद्ध माता- पिता, पत्नी व बच्चों का दिल दुखाकर कोई जन्नत नहीं पा सकता । बाबा फरीद की बात
सुनकर वह युवक वापस लौट गया ।
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