शील और गुणों का
महत्त्व
आचार्य चाणक्य का संसार के अग्रणी नीतिवानों में स्थान है । वे मगध के
सम्राट चंद्रगुप्त को नीति ज्ञान कराकर उनका मार्गदर्शन किया करते थे। उन्होंने
नीतिवचन में लिखा, जैसे चंदन
वृक्ष काटे जाने पर भी अपनी सुगंध व शीतलता नहीं छोड़ता, कोल्हू में पेरे जाने पर भी ईख अपनी मधुरता का
त्याग नहीं करता, इसी प्रकार
मनुष्य को भी विपन्नता की स्थिति में अपने शील व गुणों का त्याग नहीं करना चाहिए ।
__ आचार्य चाणक्य सत्य और सदाचार का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए
कहते हैं, यदि
सत्यरूपी तपस्या से कोई व्यक्ति समृद्ध है, तो उसे अन्य तपस्या की क्या आवश्यकता? यदि उसका मन पवित्र है और वह सदाचार मार्ग का
अवलोकन करता है, तो उसे
तीर्थाटन की क्या आवश्यकता? यदि कोई उत्तम विद्या से युक्त है, तो उसे अन्य धन की क्या जरूरत? आचार्य एक नीतिवचन में कहते हैं, यश ही मानव को अमर बनाता है । यशविहीन व्यक्ति तो जीते जी मर
चुका होता है ।
वे आगे कहते हैं , बिना आगे -पीछे देखे खर्च करनेवाला, बात- बात पर निरर्थक झगड़ा करनेवाला और सभी कार्यों में आतुर
व्यक्ति थोड़े समय तक ही जीवित रहता है । अन्याय से अर्जित संपत्ति केवल दस वर्ष
तक ही ठहरती है । ग्यारहवें वर्ष में वह समूल नष्ट हो जाती है ।
एक जगह चाणक्य लिखते हैं, विद्या, तप, दान, चरित्र, गुण एवं धर्म ( कर्तव्य ) से विहीन व्यक्ति पृथ्वी का भार है । वह मानव नहीं, पशु के समान है ।
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