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मित्र के लक्षण

 

मित्र के लक्षण

वनवास के दौरान भगवान् श्रीराम सीताजी की खोज करते समय सुग्रीव के संपर्क में आए थे। सुग्रीव अपने अधर्मी बड़े भाई बालि के आतंक से पीडित थे। बालि ने उनकी पत्नी का अपहरण कर धर्म-मर्यादा को तार - तार किया था । श्रीराम ने अत्याचारी बालि का वध कर सुग्रीव को राजा बनवाया । एक दिन सुग्रीव श्रीराम के सत्संग के लिए पहुँचे। श्रीराम ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा, मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र शूल के समान हर समय पीड़ा देने वाले होते हैं । अतः इनसे विमुख रहने में भलाई है । जो मित्र सामने कोमल और मधुर वचन कहता है और पीठ पीछे बुरा करता है, साथ ही मन में कुटिलता रखता है, ऐसे कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है ।

वे आगे कहते हैं , एक सच्चे मित्र का धर्म यह है कि वह अपने दुःख को भूलकर मित्र का दुःख दूर करने में पूर्ण सहयोग दे। मित्र का धर्म है कि वह मित्र को कुसंग से बचाकर अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे । विपत्ति के समय जो काम नहीं आता, उसे मित्र नहीं मानना चाहिए ।

श्रीराम घर - परिवार की महिलाओं को एक समान समझने और उन्हें सम्मान देने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं 

अनुज बधू, भगिनी, सुत नारी । सुनु सठ , कन्या सम ए चारी ॥

अर्थात् छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्रवधु और कन्या - इन चारों को एक समान समझना चाहिए । श्रीराम के प्रेरक उपदेश सुनकर सुग्रीव उनके चरणों में झुक गए ।


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