विवेक दृष्टि का
महत्त्व
इसा मसीह किसी को भी दु: खी देखते , तो उसका दु: ख दूर करने के लिए तत्पर हो उठते थे। वे सदैव
दुर्व्यसनों का त्याग कर सदाचार का जीवन जीने का उपदेश लोगों को दिया करते थे । एक
दिन वे नगर की सड़क से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति नशे में धुत्त
होकर किसी युवती का आलिंगन करने का प्रयास कर रहा है । सार्वजनिक रास्ते पर ऐसा
अश्लील प्रदर्शन देखकर वे ठिठक गए । वह व्यक्ति भी ईसा को देखकर घबराकर सामने खड़ा
हो गया ।
ईसा ने उसके चेहरे पर दृष्टि डाली, तो उसे पहचान लिया । वे बोले, अरे, तू तो वही है, जिसने कुछ
वर्ष पूर्व अपने अंधेपन से छुटकारा पाने के लिए मुझसे प्रार्थना की थी । मैंने तुझ
पर दया की और परमात्मा से याचना कर तुझे नेत्र ज्योति दिलवाई थी ।
ईसा के शब्द सुनकर वह कुछ देर मौन खड़ा रहा, फिर बोला, आपने ठीक पहचाना, मैं वही हूँ । ईसा बोले, मूर्ख, क्या ईश्वर
की कृपा से मिली आँखों की ज्योति का ऐसे घिनौने काम में उपयोग करना तुझे शर्मनाक
नहीं लगता ? इससे तो
अच्छा है कि तू अंधा ही रहता ।
ईसा के शब्द सुनते ही उसकी आँखें खुल गई । वह रो पड़ा । उसने ईसा के चरणों
में गिरकर कहा, आपने यदि
नेत्र ज्योति के साथ - साथ मुझे विवेक दृष्टि भी दिलाई होती, तो मैं ऐसे कुमार्ग पर क्यों चलता ? अब मैं सदा सद्मार्ग पर ही चलूँगा ।
ईसा अपने भक्तों को उपदेश देते समय विवेक व सदाचार पर और ज्यादा जोर देने लगे ।
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