पूछे जात न पात
दलित जाति में पैदा हुए रविदास परम भगवद्भक्त थे। काशी के विख्यात संतस्वामी
रामानंद ने उन्हें दीक्षा देते समय आशीर्वाद दिया था, भक्ति के क्षेत्र में तो तुम शिखर पर पहुँचोगे
ही, तुम्हारे लिखे पदों
से असंख्य लोग प्रेरणा लेकर अपना जीवन सार्थक करेंगे । आगे चलकर रविदासजी ने
असंख्य भक्ति पदों की रचना की ।
__ संत रविदास अपने प्रवचन और पदों के माध्यम से सदाचार और नैतिकता
की प्रेरणा दिया करते थे । वे कहा करते थे कि भगवान् की कृपा उसी को प्राप्त होती
है, जिसका हृदय लोभ, लालच व अन्य दुर्व्यसनों से मुक्त होकर पवित्र
बन जाता है । एक बार काशी में कुछ संत उनके सत्संग के लिए पहुँचे। किसी ने यह पूछ
लिया, संत की पहचान किस
गुण से होती है । क्या संत ऊँची जाति का ही होता है? संत रविदास ने उन्हें बताया, - संतन के मन होत है, सबके हित की बात । घट- घट देखे अलख को , पूछे जात न पात ॥
यानी सच्चा संत वही है, जो सबके कल्याण और हित की बात सोचता है, जो जात- पात के भेद भाव से दूर रहकर प्राणी मात्र में , सब जगह भगवान् के दर्शन करता है । संत रविदास
ने एक जगह लिखा है रविदास जन्म के कारनै, होत न कोऊ नीच । नर को नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच ॥
___ यानी जन्म के कारण कोई ऊँच-नीच नहीं होता । बुरा कर्म ही
व्यक्ति को नीच बनाता है । रविदासजी परम विरक्त संत थे। संतोष और भक्ति को वे
सच्चा धन मानते थे ।
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