अहंकार
काफूर हो गया
एक सम्राट् समय - समय पर एक विरक्त संत के सत्संग के लिए जाया करता था।
संत अपने उपदेश में सदाचारी जीवन बिताने, अहंकार से दूर रहने, प्रजाजनों के दुःख- दर्द में सहायता करने की प्रेरणा दिया करते
थे। राजा सदाचारी था , परंतु राज्य और धन के अहंकार के कारण कई बार वह नगर के विद्वानों का अपमान
कर देता था । संतजी को राजा के इस दुर्गुण का पता लग गया । वे चाहते थे कि सदाचारी
व विवेकी राजा को अहंकार से मुक्त किया जाए ।
एक दिन राजा उनके सत्संग के लिए पहुंचे। उसने कहा , महाराज, मेरे मन को पूर्ण शांति नहीं मिल पा रही हैं । कोई ऐसी कमी जरूर
है, जो मुझे परेशान
रखती है । संत जानते ही थे कि
अहंकार के कारण इनका मन अशांत रहता है । उन्होंने कहा, यदि मेरी बात मानने का वचन दो, तो उपाय बता देता हूँ । उससे तुम्हारा एक
दुर्गुण दूर हो जाएगा ।
राजा ने वचन दे दिया । संत ने कहा, कल से नगर में जाकर सात दिन तक विद्वानों व श्रेष्ठजनों के घर
से भिक्षा माँगो । सात दिन में तुम इसका चमत्कार देखोगे ।
राजा ने कहा, जिन लोगों
को मैं देता हूँ , उनके आगे
हाथ पसारना बहुत मुश्किल होगा । संत ने जवाब दिया , इसी प्रयोग से तुम दुर्गुण से मुक्त हो पाओगे । राजा ने
विद्वान् पंडितों व अन्य श्रेष्ठ जनों के द्वार पर पहुँचकर भिक्षा माँगी । उनका
अहंकार पूरी तरह नष्ट हो गया । उन्हें शांति की अनुभूति होने लगी ।
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