सत्संग का
सुपरिणाम
काशी नगरी में हरिदत्त नामक एक व्यक्ति रहता था । कुसंग में पड़ने के कारण
वह दुर्व्यसनी बन गया । एक साथी ने उससे कहा, यदि दिमाग से काम लो , तो हम दोनों की दरिद्रता दूर हो सकती है । योजना बनाकर उस
व्यक्ति ने यह बात फैला दी कि हरिदत्त त्रिकालदर्शी है । वह ध्यान- योग के बल से
चोरी हुई वस्तु का पता लगा देता है ।
एक दिन नगर में बारात आई । दोनों ने रात के समय दूल्हे का घोड़ा चुराकर जंगल
में पेड़ के नीचे बाँध दिया । लोग हरिदत्त के पास पहुँचे। उसने ध्यान का नाटक करते
हुए बता दिया कि घोड़ा जंगल में बँधा है । घोड़ा मिल गया, तो हरिदत्त चमत्कारीसिद्ध के रूप में पूजा
जाने लगा ।
__ एक रात राजमहल में चोरी हो गई । राजा का मंत्री हरिदत्त के पास
आया । उसने कहा, कल बताऊँगा
। चोर वहीं बैठा हुआ था । वह घबरा गया । उसने चोरी किए हुए धन के बारे में बताते
हुए हरिदत्त से प्राणरक्षा की गुहार लगाई । हरिदत्त ने मंत्री से कहा, चोर तो मर गया , किंतु धन अमुक जगह जमीन में गड़ा है । धन मिल जाने पर राजा ने उसे
इनाम दिया । हरिदत्त एक संत के प्रति श्रद्धा रखता था । संतजी को उसकी ठगी के धंधे
का पता चला, तो वे बहुत
दु:खी हुए । वे नगर में पहुँचे। हरिदत्त दर्शन के लिए आया । संतजी ने कहा, धर्मशास्त्रों में लिखा है कि जो व्यक्ति
तंत्र मंत्र के नाम पर किसी को ठगता है तो उसकी बहुत दुर्दशा होती है । तुम्हारे
पापों का घड़ा भरने वाला है ।
संतजी के वचन सुनते ही वह काँप उठा । उसने ठगी का धंधा बंद करने का संकल्प
ले लिया ।
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