हिंसा का दुष्परिणाम
असुरराज शंभर ने सेनापति दाम के नेतृत्व में देवलोक पर चढ़ाई कर दी और
देवताओं को पराजित कर दिया । पराजित देवता ब्रह्माजी की शरण में गए ।
ब्रह्माजी ने कहा , आप लोग धैर्य के साथ सत्कर्मों और भक्ति में लीन रहे । असुरों की हिंसा और
अहंकार एक दिन उनके पतन का कारण बनेंगे । शंभर ने अहंकारी होकर प्रजा का उत्पीड़न
करना शुरू कर दिया । चारों ओर हिंसा और अत्याचार का नंगा नाच होने लगा । असुर मांस
का सेवन करते और शराब के नशे में धुत्त होकर महिलाओं की इज्जत से खेलते । प्रजा
उनके आतंक से त्राहि - त्राहि कर उठी । ।
एक विद्वान् ब्राह्मण ने एक दिन शंभर और उसके सेनापति से कहा, सिंह स्वयं पशु का शिकार कर उसका मांस खाता है
। आप लोग वधिक की जगह स्वयं अपने हाथों से पशु की हत्या कर उसका मांस खाया करें ।
इससे आपकी युद्ध करने की क्षमता बढ़ेगी ।
सेनापति उसके कहे अनुसार, स्वयं पशुओं की हत्या करने लगा । शंभर ने भी एक पशु की हत्या की । निरीह
बेजुबान पशु को छटपटाते देखकर उसका हृदय काँप उठा । उसे लगा कि एक दिन उसकी भी यही
दुर्दशा हो सकती है । निरीह पशुओं की आह ने असुर राजा और सेनापति की नींद उड़ा दी
। उन्हें हर पल मृत्यु का भय सताने लगा । उनकी शक्ति घटने लगी ।
एक दिन प्रजा के लोगों ने देवगणों के साथ मिलकर शंभर और उसके सेनापति को
घेरकर मार डाला । शेष असुर तुरंत भाग खड़े हुए । देवताओं का राज्य पुनः स्थापित हो
गया । अहंकार और हिंसा ही असुरों के पतन का कारण बने ।
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