कन्या है साक्षात्
देवी
एक बार नारदजी की तीव्र इच्छा हुई कि गोकुल पहुँचकर बालकृष्ण के दर्शन किए
जाएँ । वे वीणा बजाते हुए नंद बाबा के घर जा पहुंचे। उन्होंने पलंग पर मस्ती भरी
नींद ले रहे बालकृष्ण की सुंदर छवि देखी, तो भाव विभोर हो उठे और दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर उन्हें
प्रणाम किया । नंदजी यह दृश्य देखकर हतप्रभ रह गए । नारदजी ने कहा, इन्हें साधारण बालक न समझना । शिव और ब्रह्मा
भी इनसे सदा प्रेम रखेंगे । आगे चलकर यह दिव्य बालक ऐसी लीलाएँ करेगा कि तीनों लोक
चमत्कृत हो उठेंगे । तुम्हारा कुल अमर हो जाएगा । आशीर्वाद देकर नारदजी लौटने लगे
।
नंद बाबा के मित्र भानुजी ने यह दृश्य देखा, तो उनकी इच्छा हुई कि वे भी अपने पुत्र व पुत्री को देवर्षि का
आशीर्वाद दिलाएँ । नारदजी उनके घर गए । भानु अपने पुत्र को उनके पास लाए । नारदजी
ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, कन्या के भी दर्शन कराओ। वे उन्हें कमरे में ले गए । छोटी सी बच्ची का
अद्भुत रूप देखकर देवर्षि चकित हो उठे । दर्शन करते ही वे समझ गए कि यह कन्या
साक्षात् देवी स्वरूपा है । उन्होंने उसे पृथ्वी पर लिटाया और उसकी परिक्रमा की ।
उसके चरण स्पर्श करते ही देवर्षि के नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होने लगे ।
उन्होंने भानु से कहा, जिस घर में कन्या का प्रेमपूर्वक पालन किया जाता है, वह घर सदैव सुख -समृद्धि से परिपूर्ण रहता है
। सभी सिद्धियों सहित लक्ष्मी वहाँ निवास करती हैं ।
नारदजी हरि का गुणगान करते हुए विदा हो गए ।
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