सत्य - धर्म पर अटल
रहो
गोरखनाथ संप्रदाय के संत योगिराज बाबा गंभीरनाथजी पहुँचे हुए संत थे।
धर्मशास्त्रों के प्रकांड ज्ञाता होने के बावजूद अहंकार उन्हें छू भी न पाया था ।
वे विनम्रता की साक्षात् मूर्ति थे और हमेशा प्रभु के स्मरण और योग साधना में लीन
रहते थे। कपिलधारा स्थित आश्रम में रहकर बाबा योग- साधना कर रहे थे। कुछ शिक्षित
बंगाली तीर्थयात्री कपिलधारा पहुंचे, तो बाबा के दर्शन के लिए आश्रम आए । बाबा ने बड़े प्रेम से
उन्हें आसनों पर बैठने का संकेत किया । उन सबने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, बाबा, आप सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और महान् सिद्ध संत हैं । हम गृहस्थों
का कल्याण कैसे हो, यह उपदेश
देने की कृपा करें ।
बाबा ने मुसकराते हुए कहा, मैं स्वयं कुछ नहीं जानता । अभी तो जानने का प्रयास शुरू किया है, फिर क्या उपदेश दूं? कुछ क्षण रुककर उन्होंने कहा, कल्याण उपदेश मात्र से नहीं, अपने आचरण और धर्मानुसार जीवन जीने से होता है
।
उनमें से एक व्यक्ति ने पुनः विनम्रता से पूछा, महाराज, आप जैसी विभूति के श्रीमुख से कुछ पवित्र शब्द सुनकर हम सबको
प्रेरणा मिलेगी। हमें निराश न कीजिए ।
बाबा ने कहा , सदाचार का
पालन करते हुए अपने कर्तव्य की पूर्ति करते रहने वाले, सत्य और धर्म पर अटल रहने वाले का सहज ही
कल्याण हो जाता है । बाबा गंभीरनाथजी की सरलता और निरभिमानता ने सभी को बहुत
प्रभावित किया । वे उन्हें साष्टांग प्रणाम कर खुशी- खुशी वापस लौट गए ।
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