सच्चा पुरुष कौन है ?
मिथिला के राजपंडित गणपति के पुत्र विद्यापति अपने पिता की तरह
धर्मशास्त्रों के ज्ञाता और परम धार्मिक थे । उन्होंने किशोर अवस्था में ही काव्य
साधना शुरू कर दी थी । उनकी कविताएँ सुनकर मिथिला नरेश शिवसिंह मंत्रमुग्ध हो उठते
थे।
राजा प्रायः विद्यापति को अपने महल में आमंत्रित कर उनसे धर्म, संस्कृति व साहित्य संबंधी वार्तालाप किया
करते थे। एक दिन राजा ने कहा, पंडितराज, आपने सर्व
धर्मशास्त्रों व साहित्य का गहन अध्ययन किया है । शास्त्रों में सच्चे मानव के
क्या लक्षण बताए गए हैं ? महाकवि विद्यापति ने बताया, सद्गुणों से युक्त व्यक्ति ही सच्चा मानव कहलाने का अधिकारी है । जो
विद्यावान, विवेकी, पुरुषार्थी, संयमी व सदाचारी हो, वही सच्चा पुरुष कहलाने का अधिकारी है । धर्मशास्त्रों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति मानव के लिए
आवश्यक मानी गई है । विवेकी, बुद्धिमानी, संयमी और
कर्तव्यनिष्ठ अर्थात् पुरुषार्थी व्यक्ति ही इन चारों कर्तव्यों की पूर्ति करने की
क्षमता रखता है । मूढ़, आलसी, असंयमी और
दुराचारी तो इनमें से एक की प्राप्ति भी नहीं कर सकता । अतः धर्मशास्त्रों में इन
सब सद्गुणों से रहित पुरुष को पूँछ रहित पशु की संज्ञा दी गई है ।
महाकवि के शब्द सुनकर महाराज बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने विनयपूर्वक
प्रार्थना की, पंडितराज, आप पुरुष के कर्तव्य निर्धारण करने वाले ग्रंथ
की रचना करें । महाकवि विद्यापति ने मैथिली और संस्कृत में अनेक पुस्तकों की रचना
कर ख्याति अर्जित की ।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know