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कयो ना करे आत्मसात

English version is at the end

🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1189
*ओ३म् अ॒यं ते॒ स्तोमो॑ अग्रि॒यो हृ॑दि॒स्पृग॑स्तु॒ शंत॑मः।*
*अथा॒ सोमं॑ सु॒तं पि॑ब॥*
ऋग्वेद 1/16/7

होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

हम सब तो सहमत हैं 
वेद पक्षपात रहित है 
सृष्टि से ज्ञान  है पहला 
इन सब में सबका हित है 
आत्मा-परमात्मा का यह 
सच्चा व्यवहार सिखाएँ
आत्मा-परमात्मा का यह 
सच्चा व्यवहार सिखाएँ
सच्चा व्यवहार सिखाएँ   
होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

तृण से ब्रह्म पर्यन्त 
गुण गाथा गायन उत्तम
वेदों में स्तुतिसमूह 
स्तोमवाणी प्रभु दर्शन 
आत्मा परमात्मा प्रकृति का 
पूर्ण ज्ञान कराए  
आत्मा परमात्मा प्रकृति का 
पूर्ण ज्ञान कराए  
पूर्णत: ज्ञान कराए
होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

जीवन उपयोगी तत्वों 
का भी यह ज्ञान कराए 
आत्मा को शान्ति देकर 
शाश्वत आनन्द दिलाए 
ज्ञानी ध्यानी सन्तों के 
हृदयों में दर्श कराए
ज्ञानी ध्यानी सन्तों के 
हृदयों में दर्श कराए 
हृदयों में दर्श कराए 
होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

चिन्तन मनन निदिध्यासन 
सही रीत वेद सिखाए 
वेदों को जो ना जाने 
जग-ईश्वर में भरमाये 
अविनाशी सर्वव्यापक 
वेद सर्वरूप जनाए
अविनाशी सर्वव्यापक 
वेद सर्वरूप जनाए
वेद सर्वरूप जनाए 
होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

बिन ज्ञान के हम कैसे 
अनुष्ठान कर सकते हैं 
वेद ज्ञान धारण करके 
सोमरस पा सकते हैं 
ज्ञान कर्म उपासना के 
मार्ग तो वेद ले जाए
ज्ञान कर्म उपासना के 
मार्ग तो वेद ले जाए
मार्ग तो वेद ले जाए 
होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

होऽऽऽऽऽऽऽ
क्यों ना करें आत्मसात् 
वेदों की कही बात 
जो ज्ञान दिलाए 
और जीना भी सिखाए  

*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*   

*राग :- भैरवी*
गायन समय प्रातः काल लेकिन मधुर राग होने से संगीतज्ञ हर समय गाते हैं। 
ताल कहरवा ८ मात्रा

*शीर्षक :- वेद शान्ति प्रद है* भजन ७६७ वां
*तर्ज :- हो कैसी खुशी की है रात

स्तुतिसमूह = बहुत प्रकार की स्तुति
स्तोमवाणी = स्तुतियों से भरी वाणी
अनुष्ठान = कोई धार्मिक कार्य नियम पूर्वक आरम्भ करना

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*

769    वेद शान्ति प्रद है

पक्षपात रहित सभी विद्वान इस बात में सहमत है कि वेद संसार में सबसे पुराना ग्रंथ है। इसलिए इसे 'अग्रिय' कहा है।
यह अग्रों का यानी पहलों‌का भी हितकारी है। सबसे पहला ज्ञान भगवान से मिलना चाहिए, वह वेद है। ईश्वर वचन होने से वेद की प्रमाणता है।
यह वेद स्तोम है। अर्थात् स्तुति का समूह है। तृण से ब्रह्मपर्यंत सभी पदार्थों की स्तुति--गुण-गाथा इसमें है। उदाहरण के तौर पर जीव के सम्बन्ध में कहा है--अब 'अपश्यं गोपामनिपद्यमानम्'--मैंने अविनाशी और गोप=इंद्रियों के स्वामी को देखा है। आत्मा को इंद्रियों से पृथक तथा अविनाशी कहा है। इसी प्रकार परमात्मा के सम्बन्ध में कहा है वेदाहमेतं पुरुषं महानतम.......(यजु•३१/८)=मैंने उस महान,सूर्य के प्रकाशक, अज्ञान अन्धकार से विरहित सर्वव्यापक के दर्शन किए हैं।
प्रकृति का भी निरूपण इन शब्दों में हुआ है--एषा सनत्नी सनमेव जातैषापुराणी परि सर्वबभूव.....(अथर्व१०/८/३०)=यह साधारण रहने वाली प्रकृति सदा से ही विद्यमान है यह पुरानी होती हुई भी नई सब कार्यों में विद्यमान है। इसी भांति जीवनोपयोगी सभी पदार्थों का ज्ञान वेद में कराया गया है और यह शन्तम:=अत्यंत शान्ति प्रदान करता है, अत्यंत शान्ति तो परमात्मा के दर्शन से होती है।
जो सब पदार्थों का अन्तरात्मा,सब आत्मा में रहने वाला, अकेला ही एक प्रकृति रूपी बीज को अनेक प्रकार का बना देता है, उस परमात्मा के जो ध्यानी दर्शन करते हैं, उन्हें की शाश्वत सुख मिलता है, दूसरों को नहीं। वह नीतियों में नित्य अर्थात् सदा एकरस और चेतनों का चेतन अर्थात् सर्वज्ञ है, वह अकेला अनेकों की कामनाएं पूरी करता है। उस आत्मा सके,धीर दर्शन करते हैं, उन्हें ही अखण्ड शान्ति मिलती है, दूसरों को नहीं।
ठीक है, शान्ति परमात्मा के दर्शन से मिलती है किन्तु परमात्मा के सम्बन्ध में यथार्थ ज्ञान वेद से ही मिलता है। तभी तो कहा है--नावेदविन्मनुते तं बृहन्तम्=वेद ना जानने वाला उस महान भगवान का मनन नहीं कर पाता, अतः वेद का श्रवण, अध्ययन, मनन, चिन्तन, धारण प्रत्येक शान्ति के अभिलाषी का कर्तव्य है।
इस भाग को लेकर कहा है हृदिस्पृक्=हृदय को स्पर्श करने वाला; केवल वाणी से ही वेद मन्त्र को ना रटे, हृदय में उनका स्पर्श भी हो। वेद तो है ही परमात्मा का वर्णन करने के लिए       ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्[ऋ•१.१६४.३९]
वेद सर्वव्यापक, अविनाशी परमात्मा का ज्ञान कराने के लिए है। भगवान का आदेश है कि जब इस प्रकार तू इस     'अग्रिय' ज्ञान को हृदयस्पर्शी कर ले, तब निष्पादित सोम का ऐश्वर्य का पान कर।
बहुत सुन्दर बात कही है। पहले ज्ञान पीछे अनुष्ठान। पहले पदार्थों का ज्ञान, पश्चात उनका यथा योग्य उपयोग कर। ऋषि इसलिए ज्ञान को कर्म से पूर्व स्थान देते हैं।
ध्वनि निकलती है कि यदि वेद तुझे पदार्थों का ज्ञान कराने के लिए तथा तदनुसार कर्म करने के लिए दिया गया है, अतः तू वेद का अध्ययन करके उसके अनुसार जीवन बना और बिता। इसी में सफलता है।
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🙏🌹

🙏 *aaj ka vaidik bhajan* 🙏 1189
*om ayan te stomo agriyo hrdisprgastu shantamah.*
*atha soman sutan pib.*
rgved 1/16/7

ho
kyon naa karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhaae  

ham sab to sahamat hain 
ved pakshapaat rahit hai 
srshti se gyaan  hai pahalaa 
in sab mein sabaka hit hai 
aatma-paramaatma ka yah 
sachcha vyavahaar sikhaen
aatma-paramaatma ka yah 
sachcha vyavahaar sikhaen
sachcha vyavahaar sikhaen   
ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

trin se bbrahma paryant 
gun gaatha gaayan uttam
vedon mein stutisamooh 
stomavaanee prabhu darshan 
aatma paramaatma prakrti ka 
poorn gyaan karae  
aatma paramaatma prakrti ka 
poorn gyaan karae  
poornat: gyaan karae
ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

jeevan upayogee tatvon 
ka bhee yah gyaan karae 
aatma ko shaanti dekar 
shaashvat aanand dilae 
gyaanee dhyaanee santon ke 
hridayon mein darsh karae
gyaanee dhyaanee santon ke 
hridayon mein darsh karae 
hridayon mein darsh karae 
ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

chintan manan nididhyaasan 
sahee reet ved sikhae 
vedon ko jo na jaane 
jag-eeshvar mein bharamaaye 
avinaashee sarvavyaapak 
ved sarvaroop janae
avinaashee sarvavyaapak 
ved sarvaroop janae
ved sarvaroop janae 
ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

bin gyaan ke ham kaise 
anushthaan kar sakate hain 
ved gyaan dhaaran karake 
somaras pa sakate hain 
gyaan karm upaasana ke 
maarg to ved le jae
gyaan karm upaasana ke 
maarg to ved le jae
maarg to ved le jae 
ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

ho
kyon na karen aatmasaat 
vedon kee kahee baat 
jo gyaan dilae 
aur jeena bhee sikhae  

*rarachanaakaar, vaadak, va svar :- poojy shree lalit mohan saahanee jee – mumbee*

Today's vaidik bhajan

*OM AYAM TE STOMOM AGRIYO HRIDHI SPRIGA STU SHANTAMAH*
*ATHAA SOMAM SUTAM PIBA*
Rig Veda 1/16/7

*Composer, player and voice:- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai*
Date of composition:--*
13.11.2021 7.30pm
*Raag:- Bhairavi*
Singing time is in the morning but being a sweet raga, musicians sing it all the time.

Tala Kaharva 8 maatra

*Title:- Veda Shanti Prada Hai* Bhajan 767th
*Tune:- Ho kaisee khushi ki hai raat

Stutisamuha = Many types of praises
Stomavani = Speech full of praises
Anushthan = Starting any religious work as per rules

"Swaadhyaay-Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji related to this bhajan:-- 👇👇*

HOW OOOOOOOO
Why not imbibe
What the Vedas say
Which gives knowledge
And also teaches how to live

We all agree
Vedas are unbiased
Knowledge is the first in the universe
Everyone's benefit lies in all this
Teach this
True behavior of the soul and the Supreme Soul
Teach this
True behavior of the soul and the Supreme Soul
Teach true behavior 

Hooooooo

Why not imbibe

The words of the Vedas

Which give knowledge

And also teach how to live

From grass to Brahma

The singing of virtues is excellent

The group of praises in the Vedas

The hymns of God

Give complete knowledge of the soul, the Supreme Soul

Give complete knowledge of the soul, the Supreme Soul

Give complete knowledge

Hooooooo

Why not imbibe

The words of the Vedas

Which give knowledge

And also teach how to live

Give knowledge of useful elements

In life

Gives peace to the soul

Gives eternal joy

Let it be seen in the hearts of the wise and meditative saints

Let it be seen in the hearts of the wise and meditative saints

Let it be seen in the hearts 
Hooooooooo

Why not imbibe

What the Vedas say

Which gives knowledge

And also teaches how to live

Thinking, contemplation, meditation

The Vedas teach the right way

Those who do not know the Vedas

Get confused about the world and God

Immortal Omnipresent
The Vedas know all forms
Immortal Omnipresent
The Vedas know all forms
The Vedas know all forms

Hooooooooo

Why not imbibe

What the Vedas say

Which gives knowledge

And also teaches how to live

Without knowledge how can we

Perform rituals

By imbibing the knowledge of Vedas

We can get Somras

The Vedas lead

The path of knowledge, action and worship

The Vedas lead

The path of knowledge, action and worship

The Vedas lead

The path 

Hooooooo

Why not imbibe

What the Vedas say

Which gives knowledge

And also teaches how to live

Hooooooo

Why not imbibe

What the Vedas say

Which gives knowledge

And also teaches how to live

769 Vedas are peace
givers
All unbiased scholars agree that Vedas are the oldest scriptures in the world. That is why it is called 'Agriya'.

It is beneficial for the Agriyas i.e. the first ones. The first knowledge that should be obtained from God is Vedas. Being the words of God, Vedas are authentic.

This Veda is a hymn. That is, it is a collection of praises. It contains praises and praises of all things from grass to Brahma. For example, it is said about the living being - now 'Apashyam Gopamanipadyamanam' - I have seen the indestructible and the master of the senses. The soul is said to be separate from the senses and indestructible. Similarly, it is said about the Supreme Soul - Vedahmetam Purusham Mahanatam......(Yajur 31/8) = I have seen that great, the illuminator of the sun, the omnipresent, free from the darkness of ignorance.

 Nature has also been described in these words-- Esha Sanatni Sanameva Jataisha Purani Pari Sarvabbhuva.....(Atharva 10/8/30)=This ordinary nature has always existed. It is old but still present in all new works. Similarly, knowledge of all the things useful for life has been given in the Vedas and this Shantam:=gives immense peace, the ultimate peace is obtained by the vision of God.

The inner soul of all things, the one who lives in all souls, who alone transforms the seed of nature into many types, those who meditate on that God get eternal happiness, not others. He is eternal in the principles, that is, always consistent and the consciousness of the conscious, that is, omniscient, he alone fulfills the desires of many. Only those who patiently see that soul get eternal peace, not others.  Yes, peace is achieved by seeing God but true knowledge about God is obtained only from the Vedas.  That is why it is said - Navedvinmanute Tam Brihantam = One who does not know the Vedas cannot meditate on that great God, hence listening, studying, meditating, thinking and adopting the Vedas is the duty of every peace-seeker.  Regarding this part it is said Hridisprik = one who touches the heart;  Do not just memorize the Vedic mantras with your words, they should also touch your heart.  Vedas are there only to describe God

Richo Akshar Parame Vyomn [ॐ•1.164.39]
Vedas are for giving the knowledge of the omnipresent, indestructible God. Bhagwan has ordered that when you have touched this 'Agriya' knowledge to your heart, then drink the wealth of the Soma performed.
Very beautiful thing has been said. First knowledge, then rituals. First knowledge of the things, then use them appropriately. That is why the sages give place to knowledge before action.
The sound comes out that if the Vedas have been given to you to give knowledge of the things and to do actions accordingly, then you should study the Vedas and build and live your life accordingly. This is success.
🕉👏Eesh Bhakti Bhajan
By Bhagwan Group🙏🌹

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