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मैं अंतरिक्ष में उड़ रहा हूं

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English version is at the end

      मैं अंतरिक्ष में उड़ रहा हूं
मैंने एक दिन सोचा कि मैं आकाश में उड़ूं। भूमि पर जन्म लेना, भूमि पर ही जीवन व्यतीत करना और अन्त में भूमि में ही मिल जाना, इसमें क्या आनन्द है? मुझे तो अन्तरिक्ष में उड़ाना चाहिए, फिर अन्तरिक्ष से द्यौ:में और द्यौ  से 
स्वर्लोक में पहुंचना चाहिए। यह विचार कर मैंने उड़ने के लिए अपने पंखों को फड़फड़ाया, पर मैंने देखा कि मैं इतना भारी हूं की उड़ नहीं सकता। मैं रक्ष: और अराति के बोझ से दबा हुआ था। दम्भ दर्प अहंकार, क्रोध, क्रूरता अज्ञान आदि आसुरी सम्पत् तथा अन्य सभी राक्षसी 
वृत्तियां ही राक्षस हैं। अराति, अदान, कृपणता या स्वार्थ की वृत्ति है। जब मैंने देखा कि इन रक्ष: औरअरातय : के व्यर्थ भार से आक्रांत हुआ मैं उड़ नहीं सकतातब मैंने इन्हें अपने अन्दर से उतार फेंका और इन्हें प्रतिदग्ध कर दिया।
पर यह पूर्णतः दग्ध नहीं हो पाए। यह फिर से जी उठे और पुनः आकर मुझसे चिपक गए।। अंततः मैंने इन्हें पूर्णतया जजला डालने का ही निश्चय किया। अब प्रसन्नता का विषय है कि यह नि:शेषतया तप्त  और भस्म हो गए हैं। अब मैं हल्का-फुल्का होकर उड़ने में सहायक अभय, 
सत्त्व- संशुद्धि, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय ,तप और आर्जव, अहिंसा, सत्य अक्रोध आदि दैवी  संपत् के गुब्बारे को अपनी छाती से बंधे ज्ञान और निष्काम कर्म के पंखों से विस्तृत अन्तरिक्ष में उड़ान भर रहा हूं । अब मैं मुक्ति के स्वर्गलोक में पहुंचने वाला हूं, जहां पहुंचकर सब दुःखों का विराम हो जाता है और जहां जगन्माता की प्यार भरी गोद में आनन्द ही आनन्द है। 
                        वैदिक  मन्त्र
प्रत्युष्टं रक्ष: प्रत्युष्टं अरातयो,निष्टप्त रक्षो निष्टप्ता अरातया:। उर्वन्तरिक्षमन्वेमि।। यजुर्वेद १/७
                     वैदिक भजन ११५२ वां
                          राग सिंधुभैरवी 
                    गायन समय प्रातःकाल
                       ताल दादरा ६ मात्रा
                              भाग १
भूमि पर जन्म लेना व्यर्थ है जीना खाली 
अन्त में भूमि में मिल जाना यह बात है सवाली 
भूमि पर........ 
इक दिन मैंने यह सोचा था कि मैं नभ में उड़ूं 
देखूं आनन्द क्या है पंख फैला आगे बढ़ू 
अंतरिक्ष से ही मैं द्युलोक में जाऊं आली ।।
भूमि पर ..... 
फड़फड़ाए पंख मगर सोज़ है मैं उड़ ना सका 
रक्ष: अरातयों के थे अति बोझल मैं दबता  गया 
करके प्रतिबद्ध इन्हें शान से हुआ उच्च ताली ।।
भूमि पर......... 
दम्भ अहंकार, क्रोध, क्रूरता ने किया मदहोश 
फिर से ये जी उठे निर्बल हुआ मिटता गया ओज
इन्हें पूर्णत:मैं मिटा दूं बन के शक्तिशाली।।
भूमि पर.......... 
                          भाग २
भूमि पर जन्म लेना व्यर्थ है जीना खाली
अन्त में भूमि में मिल जाना ये बात है सवाली।। 
भूमि पर........... 
मैं प्रफुल्लित हुआ रग रग से मिटा रक्ष: आरातय 
अब हुआ हल्का-फुल्का उड़ने का पाया आशय 
जागी उड़ने की उमंग होश में आया हाली ।।
भूमि पर............ 
यज्ञ तप सत्य अहिंसा व स्वाध्याय खिले 
ऋत की करके समीक्षा षटसंपत्ति से जुड़े 
दिव्य ज्ञान कर्मों ने मेरे पर्णों में ला ऊछाही।।
भूमि पर.........
दैवी संपत्ति वरण करके  उड़ रहा निर्भय 
जाके आनन्द लूंगा स्वर लोक का है निश्चय
जगन्माता की है गोद आनन्दमय भली भाली 
भूमि पर.......... 
                     ६.१०.२०२४
                      १.२२ दोपहर
सवाली= सवाल करने वाला
आली=ऊंचा, उच्च
सोज़= अथाह कष्ट, वेदना
रक्ष:=राक्षस
अरातय=स्वार्थभावना,अदानभाव, 
प्रतिदग्ध=पूरी तरह जलानेवाला
उच्चताली=सम्मान प्राप्त
दम्भ= ऊपरी दिखावटदिखावट, पाखंड
मदहोश=हैरान होना पागल होना
ओज=उजाला, प्रकाश
प्रफुल्लित=अत्यंत हर्ष, 😃
आशय= मन की वह इच्छा जो कार्य में प्रेरित करे
हाली=शीघ्रता सै, जल्दी से
ऋत =सृष्टि के नियम
षटक संपत्ति=
पर्णो= पंखों
उछाही= उत्साह, हर्ष, प्रसन्नता
वरण=चुनना, चुनाव
स्वर लोक= मोक्ष
🕉🧘‍♂️द्वितीय श्रंखला का १४७ वां वैदिक भजन
और अबतक का११५४ वां वैदिक भजन
वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗ 🙏

‌‌    1154      main antariksh mein ud raha hoon

      vaidik  mantra👇

pratyushtan raksh: pratyushtan araatayo,nishtapt raksho nishtapta araataya:. urvantarikshamanvemi.. yajurved 1/7
                    
 vaidik bhajan 1152 vaan
                          raag sindhubhairavee 
                    gaayan samay praatahkaal
                       taal daadara 6 beats

 Vaidik bhajan    Part 1👇

bhoomi par janma lenaa vyarth hai jeenaa khaalee 
ant mein bhoomi mein mil jaanaa yah baat hai savaalee 
bhoomi par........ 
ik din mainne yah sochaa thaa ki main nabh mein udoon 
dekhoon aanand kyaa hai pankh phailaa aage badhoon 
antarikjsha se hee main dyulok mein jaoon aalee ..
bhoomi par ..... ..... 
phadaphadaaye pankh magar soz hai main ud naa sakaa 
raksh: araatayon ke the ati bojhal main dabataa  gaya 
karake pratibaddh inhen shaan se huaa uchch taalee ..
bhoomi par......... 
dambh ahankaar, krodh, kroorata ne kiya madahosh 
phir se ye jee uthe nirbal hua mitataa gayaa oaj
inhen poornat:main mitaa doon ban ke shaktishaalee..
bhoomi par.......... 
                          bhaag 2
bhoomi par janma lenaa vyarth hai jeenas khaalee
ant mein bhoomi mein mil jaanaa ye baat hai savaalee.. 
bhoomi par........... 
main praphullit huaa rag rag se mitaa raksh: aaraatay 
ab hua halka-phulka udane kaa paayaa aashay 
jaagee udane kee umang hosh mein aayaa haalee ..
bhoomi par............ 
yagya tap satya ahinsaa va svaadhyaay khile 
rit kee karake sameeksha shatasampatti se jude 
divy gyaan karmon ne mere parnon mein laa oochhaahee..
bhoomi par.........
daivee sampatti varan karake  ud rahaa nirbhay 
jaake aanand loonga svar lok ka hai nishchay
jaganmaata kee hai god aanandamay bhalee bhaalee 
bhoomi par.........

Meaning of words👇                 

Aali= high, lofty

Soza= immense pain, agony

Raksha:= demon

Araatya= selfishness, altruism,

Pratidaagdha= completely burning

Ucchtaali= respected

Dambhav= superficial show, pretense

Madhosh= to be surprised, to go mad

Oaj= light, illumination

Prhaphulit= extreme joy, 

Aashaya= the desire of the mind which inspires one to act

Hali= quickly, quickly

Rit= laws of creation

Shatak Sampatti=

Parno= wings
Uchhaahi= enthusiasm, joy, happiness

Varana= choosing, selection

Swar Lok= salvation

 Meaning of vaidik bhajan👇

‌‌ I am flying in space

Part 1👇

It is futile to be born on earth, to live empty

Finally merging with earth is a question

On earth........

One day I thought that I should fly in the sky

Let me see what joy is, I should spread my wings and move ahead

From space itself I should go to the heaven, my dear.

On earth.....

My wings flapped but I am sad I could not fly

Rakshaḥ: The Araṭyas were too heavy, I kept getting crushed

Having committed myself to them, I clapped loudly with pride.

 On the ground........

Arrogance, anger, cruelty made me intoxicated

They came alive again, they became weak, their energy was getting lost

I will destroy them completely by becoming powerful.

On the ground..........

Part 2

It is useless to be born on the ground, to live empty

In the end, to merge with the ground is a question.

On the ground..........

I was elated, the fear of darkness was removed from every vein

Now I felt light, I found the intention to fly

The zeal to fly arose, Haali came to his senses.

On the ground...........

Yagya, penance, truth, non-violence and self-study blossomed

After reviewing the Rta, the divine knowledge, deeds connected with the six assets, brought joy to my leaves.

 On the earth........
After accepting the divine wealth, I am flying fearlessly
I am sure of the world
The lap of the mother of the world is full of joy
On the earth..........

6.10.2024
1.22 Afternoon



One day I thought that I should fly in the sky. What joy is there in being born on earth, living on earth and finally merging with earth? I should fly in space, then from space I should reach Dyauh and from Dyauh I should reach Swarlok. Thinking this, I flapped my wings to fly, but I saw that I was so heavy that I could not fly. I was burdened with Rakshah and Araati. All demonic qualities like arrogance, pride, anger, cruelty, ignorance and other demonic qualities and all other demonic tendencies are demons. Arati is the tendency of Aadan, miserliness or selfishness. When I saw that I could not fly due to the useless burden of these Rakshah and Araati, then I threw them out from within me and burnt them. But they could not be burnt completely.  They came back to life and came back to me and clung to me. Finally I decided to burn them completely. Now it is a matter of joy that they have been completely burnt and reduced to ashes. Now I am flying in the vast space with the wings of knowledge and selfless action tied to my chest with the balloon of divine wealth like fearlessness, purity, charity, self-control, sacrifice, self-study, penance and honesty, non-violence, truth and non-anger etc. which help me to fly. Now I am about to reach the heaven of liberation, where all sorrows come to an end and where there is only joy in the loving lap of the mother of the world.

🕉🧘‍♂️147th Vedic hymn of the second series
And 1154th Vedic hymn till now
Heartiest greetings to Vedic listeners❗ 🙏

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