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ओ३म् गुण गाएँ,उसको ही ध्यायेंहै पराया जग, एक वो ही अपनाओ३म्

🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1224
*ओ३म् दे॒वो दे॒वाना॑मसि मि॒त्रो अद्भु॑तो॒ वसु॒र्वसू॑नामसि॒ चारु॑रध्व॒रे ।*
*शर्म॑न्त्स्याम॒ तव॑ स॒प्रथ॑स्त॒मेऽग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥*
ऋग्वेद 1/94/13

ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

जग में प्रभु सा
आश्रय कोई नहीं
फिर भी मित्रता 
क्यों कर जोड़ी नहीं
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

सर्वदेवों का  देव 
वो हैं सर्वोपरि
तू बसे जहाँ पर 
अग्निदेव है वहीं
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

सब धनों के हो धन, 
मघवन् हे धनी!
सब यज्ञों में 
सुन्दरतम हो तुम्हीं
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

वसुओं के वसु, 
देवाधिपति
सख्य भावों में है 
सबसे अग्रणी
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

हर घड़ी हर पल 
हर प्रहर तू सङ्गी
अद्भुत मित्रता 
तेरी है जुड़ी
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 

मित्रता और शरण 
मिले तेरी हमें
शरणागत तो 
कब से तेरे ऋणी
ओ३म् गुण गाएँ,
उसको ही ध्यायें
है पराया जग, 
एक वो ही अपना
ओ३म् 
  
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--* २६.१२.२००१   १.३० मध्यान्ह

*राग :- भीमपलासी*
गायन समय सायं ४ से ७, ताल कहरवा ८ मात्रा

*शीर्षक :- अद्भुत मित्र* वैदिक भजन 804 वां
*तर्ज :- *
00178-778

सर्वोपरि = सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ
मघवन् = सब जनों के स्वामी
वसु = सब को बचाने वाला
अग्रणी = आगे ले जाने वाला

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*

अद्भुत मित्र
हे प्रभु हम चाहते हैं कि हम तेरी विस्तीर्ण तम शरण मैं रहने लगें। तेरी शरण इतनी फैली हुई है कि उसमें आकर मनुष्य किसी भी देश में व किसी भी काल में दु:ख नहीं पा सकता। संसार की और कोई भी वस्तु का आश्रय ऐसा नहीं है। सब सुख, सब आश्रय और सब शरण इसके सामने अत्यन्त तुच्छ हैं, क्योंकि संसार के सब देवों के भी देव तुम हो। सब देवों में देवत्व तुम्हारे द्वारा ही आया है। तुम्हारे आश्रय बिना इन अग्नि आदि महान दिखने वाले देवताओं में कुछ नहीं है। इन सब बसाने  वालों के बसानेवाले तुम हो। सब धनों के धन तुम हो। तुम्हें पाकर और सब धन बेकार हो जाते हैं। सब पूर्णिया यज्ञों के अंदर तुम ही शोभायमान होते हो। यज्ञों का सौंदर्य तुम हो। तुम्हारे बिना कोई यज्ञ यज्ञ नहीं रह सकता और तुम अद्भुत मित्र हो। ओह! ऐसा मित्र और कौन हो सकता है? यदि सर्वशक्तिमान और तीनों कालों का जानने वाला मित्र किसी को मिल सके तो उसे और क्या चाहिए! इसलिए अब हम तेरे शहर में (मैत्री में) आना चाहते हैं। हमने तुझे देवों का देव, वस्तुओं का बसु समझ लिया है, अतः हमें अब किसी अन्य देव व वस्तु की प्राप्ति की चाहना नहीं रही है, हमने तुझे "सब यज्ञों के सौंदर्य"रूप में देख लिया है, अतः हमें अब किन्ही कर्मकांडमय यज्ञो के करने में आकर्षण नहीं रहा है, तेरे निरंतर ध्यान का यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ है लगता है। और हमने तुझे अद्भुत मित्र देखा है--ओह! ऐसा अद्भुत! ऐसा विलक्षण!! तुझ सर्वज्ञ, सर्व समर्थ, मित्र की अद्भुतता दूसरे ना जानने वाले को कैसे समझाई जावे? ओह! तुम कैसी विलक्षणता से हम सब के साथ आठों पहर, हर घड़ी, हर पल परम मित्र था निभा रहे हो! तुम जैसे अद्भुत मित्र को देखकर अब हमें और किसी की मैत्री की ज़रूरत नहीं है।अरे! वह अनजान लोग हैं जो संसार में और किसी की मैत्री पाने के लिए टक्करें मारते फिरते हैं। तेरी विस्तृत शरण में तो और सब शरण समा जाती हैं, अतः हे स्वामी! हमें तू अपनी मैत्री प्रदान कर, तब हमें कोई ख़तरा ना रह सकेगा! हे प्रभु! तू हमें अपनी अनन्त, अपार शरण में जगह दे दे, तब हमें किसी विनाश का भय न रह सकेगा। 
🎧804वां वैदिक भजन🌹👏🏽

🙏 *aaj ka vaidik bhajan* 🙏 1224
*om de॒vo de॒vana॑masi mi॒tro adbhu॑to॒ vasu॒rvasu॑namsi॒ charu॑radhva॒re ।*
*sharm॑ntsyam॒ tav॑ sa॒prath॑st॒meऽgne॑ sa॒khye maa ri॑shaama va॒yam tav॑ ॥*
rigved 1/94/13

om guna gaayen,
usako hi dhyaayen
hai paraayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho.... 
om guna gaayen,
usako hi dhyaayen
hai paraayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho... 

jaga mein prabhu saa
aashraya koi nahin
Phir bhi mitrataa 
kyonkar jodi nahin
om guna gaayen,
usako hi dhyaayen
hai parayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho... 

sarvadevon kaa  dev 
vo han sarvopari
tu base jahan par 
agnidev hai vahin
om guna gaayen,
usako hi dhyayen
hai paraayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho... 

sab dhanon ke ho dhan, 
maghavan he dhanee !
sab yagnyon mein 
sundaratam ho tumhin
om guna gaayen,
usako hi dhyayen
hai paraayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho... 

vasuyon ke vasu, 
devaadhipati
sakhya bhavon men hai 
sabase agrani
om guna gaayen,
usako hi dhyayen
hai paraya jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho.. 

har ghadi har pal 
har prahar tu sangi
adbhut mitrataa
teri hai judi
om guna gaayen,
usako hi dhyayen
hai paraayya jaga, 
eka vo hi aapanaa
ho... 

mitrata aura sharan 
mile teri hamen
sharanagat to 
kab se tere rini
om guna gaayen,
usako hi dhyayen
hai paraayaa jaga, 
eka vo hi apanaa
Ho... 
  
* singer writer and instrument player :- pujya shri lalit mohan sahani ji – mumbai*
*rachana dinaank :--* 26.12.2001  1.30 pm 

*rag :- bhimapalasi*
Singing time 4bto7 p.m. 
Title :- adbhut mitra* vaidik bhajan 804 vaam
*taune:- * kis jagah jaem  kisco dikhalayam



👇meaning ofVedic Bhajan👇


 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 Like the Lord in the world
 There is no shelter
 Still friendship 
 Why not add taxes
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 God of all gods 
 He is supreme
 Wherever you settled 
 Agnidev is there
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 All wealth belongs to wealth, 
 Maghavan, O rich!
 In all sacrifices 
 You are the most beautiful
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 Vasu of the Vasus, 
 Lord of the gods
 is in friendly moods 
 The most foremost
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 Every hour every moment 
 Every hour you are a friend
 Wonderful friendship 
 Yours is connected
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om 

 Friendship and Refuge 
 Mile teri hum
 The refugee so 
 How long have I been indebted to you?
 Om sing the virtues,
 Let us meditate on Him
 Hai paraya jag, 
 One of his own
 Om
 
              👇Updesh👇

*Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji regarding the presented bhajan :-- 👇👇*

 Wonderful friend
 O Lord, we desire to take refuge in Your vast darkness.  Your refuge is so extensive that by coming to it, man cannot suffer in any country and in any time.  Nothing else in the world has such a shelter.  All pleasures, all shelters and all refuges are very insignificant before it, because you are the God of all the gods of the world.  Divinity among all the gods has come through you.  Without your shelter, there is nothing in these great-looking gods like fire.  You are the settler of all these settlers.  You are the wealth of all wealth.  Finding you and all the wealth is wasted.  You are the most beautiful inside all the Purnia sacrifices.  You are the beauty of sacrifices.  No sacrifice can survive without you and you are a wonderful friend.  Oh!  Who else could be such a friend?  If one can find a friend who is omnipotent and knows the three times, what else does one want!  So now we want to come to your city (in friendship).  We have understood You as the God of gods, Basu of objects, so we no longer desire to attain any other god and object, we have seen You as the "beauty of all sacrifices", so we no longer desire to attain any ritualistic sacrifices  There has been no attraction in doing, the sacrifice of your constant attention seems to be the best.  And we have seen you wonderful friend--oh!  Such a wonderful!  Such a fantastic!!  How can the wonder of your omniscient, omnipotent, friend be explained to someone who does not know you?  Oh!  How extraordinarily you are playing with us all around the clock, every hour, every moment was the ultimate friend!  Seeing a wonderful friend like you, we don't need anyone else's friendship anymore. Hey!  They are strangers who bump into the world and gain someone else's friendship.  In Thy vast shelter all other shelters are contained, therefore, O Lord!  Grant us Thy friendship, Then there shall be no danger to us!  O Lord!  Thou give us a place in Thy eternal, immense refuge, and then we shall fear no destruction. 
 🎧804th Vedic Bhajan🌹👏🏽

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