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भगवान् अपूर्व सर्वाधिक याज्ञिक

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भगवान् अपूर्व सर्वाधिक याज्ञिक
             वैदिक भजन११८८ वां
                   राग खमाज
         गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर
                           ताल गरबा
                          वैदिक मन्त्र👇
न त्वद्धोता पूर्वो अग्ने यजीयान्न काव्यै: परो अस्ति स्वधाव:  । 
विशश्च यस्या अतिथिर्भवासि स यज्ञेन वनवद्देव मर्त्तान्।। 
                             ‌‌‌            ऋग्वेद ५.३.५
                         वैदिक भजन 👇
जग से प्रथम विद्यमान धियायु ही था 
वही सृष्टि का कर्ता वही परिभू था 
जग से....... 
रचकर जगत जीवों को ही अर्पित किया 
ऐसा दानी अनन्त मिलेगा कहां? 
सब प्रकाशों का धारक वह द्विबन्धु था 
वही सृष्टि........ 
यूं तो अग्नि सुखा देती है जल को 
वही जल भी बुझा देता दावानल को 
संगति- विस्मय  है यह धियायु का 
वही सृष्टि........ 
जब भी मित्र- वरुण मिलते विद्युत से 
तब ही बनता है जल वाह रे हे कृतमुखे! 
खेल रचता है अग्नि और जल,वायु का 
वही सृष्टि... ....... 
हर पदार्थ की रचना के गुण-धर्म का 
है आवश्यक हो ज्ञान उसके हर कर्म का 
हर इक गुण में है प्रथम स्थान प्रभु का 
वही सृष्टि......... 
             ‌‌‌              भाग २
जग से प्रथम विद्यमान धियायु ही था 
वही सृष्टि का कर्ता वही परिभू था 
जग से....... 
बिन सहायक ना मानव करम कर सके 
किन्तु ईश्वर तो स्वयं कृतित्व कर सके 
प्रभु शक्ति अखंडित वो अद्भुत केतु सा 
वही सृष्टि.......... 
प्रभु शक्ति अनन्त अपार अहम 
जहां देखें वहीं पा रहे दर्शन 
ना किसी पर वह निर्भर वह आत्माभू बड़ा
 वही सृष्टि.... ..... 
हर अतिथि की आने की ना है तिथि 
भूखा जाए ना दर से कोई अतिथि 
हरसू रहता है दायित्व हर दित्सु का
वही सृष्टि....... 
हर अतिथि बन के आए जो ब्राह्मण यहां 
तब उठे जज़्बा मन से अतिथियज्ञ का 
अतिथियज्ञ दे स्थान यज्ञक्रतु का ।। 
वही सृष्टि.......... 
            25.7.2001  10.35 pm
            28.5.2024    7.15  pm
                         शब्दार्थ:-
धियायु= अपनी बुद्धि से काम करने वाला
परिभू= सर्वव्यापक, नियामक
द्विबन्धु= अग्नि
दावानल= जंगल की आग
कृतमुखे= विद्वान, पंडित
कृतित्व= किसी भी रचनाकार की समस्त कृतियां
केतु=प्रज्ञा,सुबुद्धि
अहम= महत्वपूर्ण
आत्मभू= अपने आप से उत्पन्न
हरसू= हर जगह
दित्सु= दान
जज़्बा= भावना
                          स्वाध्याय
ईश्वर विश्वासी सभी आस्तिक मानते हैं कि जब यह जहान न था तो भी भगवान था। वेद भी कहता है---हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे[ऋ• १०.१२१.१] सूर्य आदि सभी प्रकाशकों का आधार परमात्मा इस संसार से पूर्वविद्यमान रहता है। 
जब भगवान सबसे पूर्व विद्यमान था  उससे पूर्व किसी की सत्ता नहीं थी, तब फिर उसकी महत्ता में क्या सन्देह? संसार रचना करके सारा संसार जीवों के अर्पण कर दिया, इससे बड़ा दान और दानी कहां और कौन हो सकता है? कैसी अद्भुत रचना है! आग🔥 पानी को सुख देती है पानी 🔥 को बुझा देता है। इन परस्पर विरुद्ध स्वभाव वाले पदार्थ की संगति करके कैसी विचित्र रचना रची है । सचमुच उससे बढ़कर मेल करने वाला कोई नहीं है--'न त्वद्धोतापूर्वो अग्ने यजीयान्। संसारी जन सामान गुणोंवाले पदार्थों को मिलाकर कुछ बनाया करते हैं, किन्तु उसकी रचना देखो! मित्र और वरुण को= ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन को विद्युत के द्वारा मिलाकर जल बना देता है। ऑक्सीजन जलाती है, हाइड्रोजन जलता है विद्युत के द्वारा मिलकर शीतलता देने वाला जल बनता है। प्रभु की इस अनुपम लीला को देखकर ब्राह्मण-ग्रंथों ने कहा-- अग्नीषोमीयं जगत्  यह संसार आज पानी का मेल है अग्नि जल का खेल है। 
पदार्थ रचना से पूर्व पदार्थों के गुणधर्मों का ज्ञान आवश्यक है उनसे कार्य लेने की योग्यता तथा क्षमता भी चाहिए, इस गुण में भी भगवान् का स्थान प्रधान है-- न काव्यै: परो अस्ति स्वधाव:-- हे स्वशक्ति से सुरक्षित ! 
काव्यों के द्वारा,ज्ञानों के द्वारा भी और कोई मुखिया नहीं है। 
मनुष्य अपने कार्य के लिए सदा परमुखापेशी रहता है। कोई छोटे से छोटा कार्य ऐसा नहीं जिसे वह दूसरों की रंच मात्र सहायता लिए बिना कर सके, किन्तु परमात्मा स्वधाव है-- अपनी शक्ति से सब कुछ कर लेता है। 
कवियों ने मनु की सन्तान की महिमा का गान करते हुए कहा कि-- मनु की सन्तान अपने सामर्थ से सुरक्षित है। कवियों की इस युक्ति में अतिशयोक्ति है। किन्तु मनु के पितरों का पिता तो सचमुच स्वधाव: = स्ववीर्यगुप्त है। 
भगवान् की शक्ति का वर्णन कौन कर सकता है? 
अनन्त अपार उसकी शक्ति है। वह सब में रह रहा है,किन्तु दीख नहीं रहा । मानव के अंतःस्तल में वह विराजत है,किन्तु मानव उससे विमुख है । किसी भाग्यवान साधन सम्पन्न के हृदय में आत्मा में अचानक उसका चमकारा💡 हो जाता है। इस बात को वेद ने अपने सुन्दर शब्दों में कहा--
विशश्च यस्या अतिथिर्भवासि-- जिस प्रजा का तू अतिथि हो जाता है। 
अतिथि के आने की कोई तिथि नहीं। जाने कब आ खड़ा हो ! किन्तु मनुष्य को अतिथि सत्कार के लिए तो सदा तैयार रहना चाहिए। ऐसा ना हो कि अतिथि आए और सत्कार पाए बिना चला जाए। 
जिस मन्दभागी ग्रहस्थ के घर ब्राह्मण अतिथि भूखा रहता है उस मन्दमति की आशा, प्रतीक्षा, संगति, मधुर वाणी ,यज्ञयाग, दानपुण्य, सन्तान, हैवान [पशु] सभी नष्ट से हो जाते हैं। अरे लौकिक--सांसारिक-- अतिथि के सत्कार न करने का यह कुफल है, तो ब्राह्मणों के ब्राह्मण परम ब्रह्म के सत्कार न करने का कितना बड़ा कुफल होगा? जो भाग्यशील उसे अनुपम निराले अतिथि को पहचान लेता है और उसका सत्कार करता है, तो वह भगवान् यज्ञ के द्वारा अतिथियज्ञ के द्वारा मनुष्य को भक्ति युक्त कर देता है। यह अतिथियज्ञ निराला है । 
दयामय अतिथे! आओ! अपना यज्ञ सिखाओ ! 

🕉👏द्वितीय श्रृंखला का १८२ वां वैदिक भजन 
और अबतक का ११८८ वां वैदिक भजन 
🙏सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹

1188
God is the most unique

   bhajan1188th 
              raag khamaj
 Singing time second phase of the night 
    Taal  garaba
           vaidik mantra👇
na tvaddhota purvo agne yajeeyaann kavyai: paro asti svadhav:  । 
vishasch yasya atithirbhavasi sa yagnyen vanavaddev marttan।। 
                             ‌‌‌            rigved 5.3.5
                         vaidik bhajan 👇
jag se pratham vidyamaan dhiyayu hi thaaa
vahi srishti ka kartaa vahi paribhoo  thaa 
jag se....... 
rachakar jagat jivon ko hi arpit kiyaa 
aisaa daani anant milegaa kahaan? 
sab prakashon kaa dhaarak vah dvibandhu thaa 
vahi srishti........ 
yoon to agni sukhaa deti hai jal ko 
vahi jal bhi boojhaa detaa daavaanal ko 
sangati- vismaya  hai yah dhiyaayu kaa 
vahi srishti........ 
jab bhi mitra- varuna milate viduyat se 
tab hi bantaa hai jal 
vaah re he kritamukhe! 
khel rachataa hai agni aura jal,vayu kaa 
vahi srishti... ....... 
har padarth ki rachanaa ke guna-dharm kaa 
hai aavashyak ho gyaan usake har karma kaa 
har ik guna men hai pratham sthaan prabhu kaa 
vahi srishti......... 
             ‌‌‌              bhag २
jag se pratham vidyamasn dhiyaayu hee thaa 
vahi srishti ka kartaa vahi paribhoo hee thaa 
jag se....... 
bin sahaayak naa manav karam kar sake 
kintu ishvar to svayam krititva kar sake 
prabhu shakti akhandit vo adbhut ketu saa 
vahi srishti.......... 
prabhu shakti anant apar aham 
jahaan dekhen vahin paa rahe darshan 
naa kisi par vah nirbhar vah aatmabhu bada
 vahi srishti.... ..... 
har atithi ki aane ki naa hai tithi 
bhookha jaaye naa dar se koi atithi 
harasoo rahataa hai dayitva har ditsu kaa
vahi srishti....... 
har atithi ban ke aaye jo braahman yahaan
tab uthe jazbaa man se atithi yagya kaa 
atithiyagya de sthaan yagyakratu kaa।। 
vahi srishti.......... 
       25.7.2001  10.35 pm
       28.5.2024    7.15  pm

Meaning of the word:-

Dhiyayu= one who works with his own intelligence

Paribhoo= omnipresent, regulator

Dwibandhu= fire

Davanal= forest fire

Kritamukhe= scholar, pandit

Krititva= all the works of any creator

Ketu= wisdom, intelligence

Aham= important

Atmabhu= born by oneself

Harsu= everywhere

Ditsu= donation

Jazba= emotion

God is the most unique


Vedic Hymn 👇
Dhiyayu was the first to exist in the world
He was the creator of the universe, he was the lord

After creating the world, he offered it to the living beings
Where will we find such a generous soul?  He was the holder of all lights
The same creation…

Though fire dries up water
The same water extinguishes a forest fire
The company of Dhiyayu is a wonder
The same creation…

When  Also friend- Varun meets electricity 
Only then water is formed, wow hey Kritmukhe! 
 Fire, water and air play.

That is the creation...

It is essential to know the qualities and characteristics of the creation of every substance.

God has the first place in every quality.

That is the creation.  ........ 
‌‌‌ Part 2

Before the world existed Dhiyayu

He was the creator of the universe, he was the lord

From the world.......

Without help, humans cannot do any work

But God can do everything himself

Lord Shakti  Unbroken like that wonderful Ketu
The same creation..........

God's power is infinite, immense ego
Wherever you look you get darshan
He is not dependent on anyone, he is great in the soul
The same creation.........

Every guest  There is no date for arrival

No guest should go hungry from the door

Every guest is responsible for everything

The same creation......

Every Brahmin who comes here as a guest

Then the passion of performing the guest yagya arises in the heart 
Atithiyagya gives place to Yajnakratu.

 The same creation..........

25.7.2001 10.35 pm

28.5.2024 7.15 pm


God is unique, the greatest sacrificer

Swadhyay

All theists who believe in God believe that even when this world did not exist, God existed. The Vedas also say---Hiranyagarbha: Samvarttataagre [ॐ• 10.121.1] The God, who is the basis of all the luminaries like the Sun, existed before this world.

When God existed before all, no one existed before Him, then what doubt can there be in His greatness? After creating the world, He offered the whole world to the living beings. Who else can be a greater donor than this? What a wonderful creation! Fire🔥 gives happiness to water and extinguishes fire🔥. What a strange creation He has created by combining these substances of opposite nature. Truly, there is no one who can match better than Him--'Na tvadhhotāpurvo agne yajīyaan'. Worldly people make something by mixing substances of similar qualities, but look at His creation! He makes water by mixing Mitra and Varuna = oxygen and hydrogen through electricity.  Oxygen burns, hydrogen burns and when mixed with electricity, cool water is formed. Seeing this unique play of the Lord, the Brahmin scriptures said-- Agnishomiyam Jagat, this world today is a combination of water and fire, a play of water. 
Before the creation of matter, knowledge of the properties of the matter is necessary, ability and capacity to get work done from them is also required, in this quality also God has a prime place-- Na Kavyai: Paro Asti Swadhaav:-- O protected by self-power! 
Through poems, through knowledge also there is no other leader. 
Man is always dependent on others for his work. There is no smallest work that he can do without taking even a little help from others, but God is Swadhaav-- He does everything with his power. 
Poets, while singing the glory of the children of Manu, said that-- The children of Manu are protected by their own power. There is exaggeration in this logic of the poets.  But the father of Manu's forefathers is indeed Swadhaavah = Swavirya Gupta. 
Who can describe the power of the Lord? 
His power is infinite and limitless.
He is present in everyone, but is not visible. He resides in the innermost being of man, but man is averse to him. Suddenly he shines in the heart and soul of some fortunate and rich person. The Vedas have said this in their beautiful words--
Visashcha yasya atithirbhavasi-- you become the guest of the people of whom you are a guest.
There is no date for the arrival of the guest. Who knows when he will come! But man should always be ready to welcome the guest. It should not happen that the guest comes and goes away without being welcomed.
The hope, wait, company, sweet words, sacrifices, charity, children, animals of the unfortunate householder in whose house the Brahmin guest remains hungry, all get destroyed.  Hey, if this is the bad result of not welcoming a worldly guest, then how big will be the bad result of not welcoming the Brahman of Brahmins, the Supreme Brahma? The fortunate one who recognizes that unique guest and welcomes him, then that God fills man with devotion through the Yagya and Atithi Yagya. This Atithi Yagya is unique. 
Kind guest! Come! Teach your Yagya! 

🕉👏182nd Vedic Bhajan of the second series
And 1188th Vedic Bhajan till now
🙏Hearty greetings to all Vedic listeners🙏🌹

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