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तेरी शरण सबसे अच्छी है
वैदिक भजन१२०४ वां
राग पहाड़ी
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
ताल गरबा ६ मात्रा
👇वैदिक मन्त्र👇
अयमग्ने जरिता त्वे अभूदपि सहस: सूनो नह्य१॑न्यदस्त्याप्यम् ।
भद्रं हि शर्म त्रिवरूथमस्ति त आरे हिंसानामप दिद्युमा कृधि ।। ऋग्वेद• १०.१४२.१
👇अनिब्ध बोल 👇
छाई है बदरिया दान की ऐश्वर्या
बिन मांगे बरस पड़ी
हम पे बरस पड़ी मिला आनन्द
तू है कितना प्यारा भगवान्।। होऽऽऽ
👇वैदिक भजन👇
दाता तेरे जैसी प्रीत देखी नहीं जग में
निष्काम प्रीति है महान
होऽऽ सारे संसार में घूम के मैं आया
ना कोई मिला निष्काम ।।
हो ऽऽ दाता ........
पिता पुत्र बन्धु मित्र भरे पड़े स्वार्थ में
तुम्हें देखा जाना मिले पाया परमार्थ में
भक्त तो आया अब तेरे चरणों में
तेरे सहारे अनुकाम ।।
हो ऽऽ दाता.......
तू ही सच्चा मित्र बन्धु मात-पिता है
तुझसे प्रबल ना कोई मिला है
सर्वशक्तिमान तू है सर्वगुण निधान
तेरी महिमा का ना है प्रतिमान ।।
होऽऽ दाता......
जड़ की शरण में तो माया भी विषम है
जड़ से तो ज्यादा देखो जीव ही उत्तम है
तेरी शरण जो कि उत्तमोत्तम
बस उसका करें अनुध्यान ।।
होऽऽ दाता.......
अल्पज्ञ जीव दुर्बलता से डरता
सारा जीवन काम' क्रोध आदि करता
इनसे बचा लो प्रभु विनती प्रवण
करो जीवन का परम कल्याण ।।
होऽऽ दाता ........
26.6.2024 9:00 a.m.
शब्दार्थ:-
निष्काम= कर्म करके करके फल की इच्छा ना करना
परमार्थ= दूसरों के लिए करना
अनुकाम= योग्य इच्छा अनुसार
निधान= आधार, स्थापन
प्रतिमान= समानता,बराबरी
विषम=कठिन
अनुध्यान= हर पल चिन्तन करना
अल्पज्ञ= कम ज्ञान रखने वाला
प्रवण=नम्र, विनीत
👇उपदेश👇
आश्रयार्थी समस्त संसार में घूम आया है। उसे अपेक्षित आश्रय मिला भी, थोड़े समय के पश्चात् उसमें उसे दोष दिखाई दिया। निर्दोष आश्रय की अभिलाषा से वह उसने छोड़ दिया। इस प्रकार सारा संसार उसने खोज डाला है। उसे बन्धु मित्र कलत्र पुत्र पिता सभी स्वार्थ के पुतले दीख पड़े,अतः आर्त स्वर में कहता है-- आया अयमग्ने जरिता..... अर्थात् प्रभो! यह भक्त तेरे ही सहारे हो गया है [रहता है]। बलवानों को झुकाने वाले ! तेरे बिना और कुछ प्राप्त हुए नहीं और कोई सम्बन्धी नहीं। सच है। भगवान् ही सच्चा सखा बन्धु माता-पिता है--स नो बन्धुर्जनिता स विधाता यजुर्वेद (३२/१० ) अर्थात् वही प्रभु हमारा बन्धु जनिता [माता-पित] है और वही विधाता जगत नियन्ता, जगत निर्माता =सब जगत् का बसने वाला है।
वह प्रबलों में प्रबल है उससे अधिक प्रबल कोई नहीं है। उसकी शक्ति के सामने सब मन्द पड़ जाते हैं। वह सर्वशक्तिमान है। सर्वशक्तिमान् सर्वगुण निधान भगवान् मिल जाए तो और चाहिए ही क्या? आश्रय खोजते- खोजते मिल गया सर्वाश्रय, सर्वाधार। सारे सहारे देखे थे उनके गुण अवगुण का ज्ञान मिला है। जब यह मिला तो भक्त के मुख से निकला भद्रं हि शर्म ...... अर्थात् तेरी शरण तो सचमुच तीनों में श्रेष्ठ है। एक शरण जड़ प्रकृति की है। उससे तो जीव उतना पिता नहीं जितना गंवाता है। चेतन जीव जब जड़ प्रकृति का शरणार्थी होना चाहता है तो समझ लो कि यह पहले बहुत कुछ गंवा चुका है। विवेकशील जीव को इतना विवेक नहीं रहा कि मैं स्वामी हूं और यह स्व है। वह भूल गया की जड़ चेतन की अपेक्षा हीन होता है जड़ तो स्वयं कोई क्रिया भी नहीं कर सकता उसमें तो क्रिया, चेष्टा, गति का आधार चेतन ही करता है, अतः जड़ की शरण तो मरण है। दूसरी शरण जीवों की है जीव उसके सामान चेतन अवश्य है । जड़ प्रकाशरहित प्रकृति की अपेक्षा अवश्य उत्कृष्ट है। संध्या मन्त्र में ही जीव को प्रकृति से श्रेष्ठ कहा है । उद्वयं तमसस्परि स्व:.... अंधकारमयी प्रकृति से ऊपर उठकर उससे श्रेष्ठ आत्मप्रकाश के दर्शन करते हैं।
किन्तु जीव के ज्ञान आदि गुणों में तारतम्य है। एक से एक उत्कृष्ट दीखता है। जीव एक की शरण लेता है उसकी अपेक्षा दूसरे का उत्कर्ष ज्ञात होने पर उसे छोड़ देता है। अन्त में वहां से भी अपना मनोरथ मिलता ना देख शरणान्तर की तलाश करता है।
तीसरी शरण जगद्विधाता परमात्मा-- प्रकृति तथा जीव के अधिष्ठाता --की है। उसके प्राप्त होते ही सब उपद्रव शान्त हो जाते हैं वासना शान्त हो जाती है और वह आवेश में आकर कहता है ---भद्रं हि शर्म.....=तेरी शरण तीनों में श्रेष्ठ हैं, उत्तम उत्तम हैं।
अल्पज्ञता के कारण जीव बहुधा प्राप्त हुए उत्तम पदार्थ को सम्भाल कर नहीं रख पाता है। जीव अपने इस दुर्बलता से डरता है। उसे चिन्ता है कि काम,क्रोध आदि घातक शत्रु उसे पर कहीं वार न कर दें, अपना वज्र प्रहार न कर दें और उसकी चोट खाकर वह त्रिवरूथ शरण को खो बैठे। वह उसे आप्य= बन्धु से प्रार्थना करता है --आरे हिंसानाप......=हिंसकों के वज्र को मुझषसे बहुत दूर कर। काम क्रोध आदि के वज्र से आत्मा बचा रहे तो इसके कल्याण की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। तात्पर्य यह है की शरण प्राप्त करके मनुष्य प्रमादी न बने सदा सावधान रहे। इसके लिए वह निरभिमान होकर भगवान् से ही प्रार्थना करता है, क्योंकि उसे अपनी दुर्बलता का भान हो चुका है।
🕉👏 द्वितीय श्रृंखला का १९८ वां वैदिक भजन
और अब तक का १२०४ वां वैदिक भजन 🙏
🙏समस्त वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
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1204
your shelter is the best
vaidik bhajan 1204 th
Raag pahaadi
Singing time first face of the night
Taal garaba 6 beats
👇vaidik mantra👇
ayamagne jarita tve abhudapi sahas: suno nahya१॑nyadastyapyam ।
bhadram hi sharm trivaruthamasti ta aare hinsanamap didyuma krudhi ।।
Rigved• 10.142.1
👇Anibdha bol 👇
chhaaee hai badariyaa daan kee aishwaryaa
bin maange baras padee
ham pe baras padee milaa aanand
too hai kitanaa pyaaraa bhagavaan.. ho ऽऽ
👇 vaidik bhajan👇
daata tere jaisee preet dekhee nahin jag mein
nishkaam preeti hai mahaan
ho ऽऽ
saare sansaar mein ghoom ke main aayaa
naa koee milaa nishkaam ..
ho ऽऽ daata ........
pitaa, putra, bandhu,mitra bhare pade swaarth mein
tumhen dekhaa jaanaa mile paayaa paramaarth mein
bhakt to aayaa ab tere charanon mein
tere sahaare anukaam ..
ho....daataa.......
too hee sachcha mitra bandhu maat-pitaa hai
tujhase prabal naa koee milaa hai
sarvashaktimaan too hai sarvagun nidhaan
teree mahimaa kaa naa hai pratimaan ..
ho...daataa......
jad kee sharan mein to maayaa bhee visham hai
jad se to zyaadaa dekho jeev hee uttam hai
teree sharan jo ki uttamottam
bas usaka karen anudhyaan ..
ho....daata.......
alpagya jeev durbalataa se darataa
saara jeevan kaam krodh aadi karataa
inase bachaa lo prabhu vinatee pravan
karo jeevan kaa param kalyaan ..
ho...daata ........
26.6.2024 9:00 a.m.
Your shelter is the best
👇Meaning of the word:-👇
Nishkam = doing work without any desire for its result
Parmarth = doing it for others
Anukaam = according to the desired wish
Nidhan = base, establishment
Pratimaan = equality, parity
Visham = difficult
Anudhyan = thinking every moment
Alpgya = less One who has knowledge
Pravana = humble, polite
Thy refuge the best
👇 meaning of Vedic Bhajans 👇
The clouds have covered the splendor of charity
It rained without asking
We were showered with joy
You are so lovely God. Ho's
Data, I have never seen love like you in the world
Unselfish love is great
Yes, I traveled all over the world
No one was found unselfish.
Ho ऽऽ Data
Father, son, brother, friend, filled with selfishness
You got to be seen in the ultimate goal
The devotee has now come to your feet
Tere sahaare anukam.
Ho ऽऽ Data.
You are the true friend, brother, parent
I have found no one stronger than you
Almighty, you are the possessor of all virtues
There is no parallel to your glory.
Oh, the giver.
Even Maya is odd in the shelter of the root
Look more than the root, the being is the best
Your refuge which is the best
Just meditate on it.
Oh, the giver.
The ignorant being fears weakness
All life works' anger etc. does
Save them, Lord, pleading
Do the ultimate welfare of life.
Oh, the giver.
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👇Teaching(updesh)👇
The seeker of shelter has roamed the whole world. He got the desired shelter, but after a while he found fault in it. He left it in the desire of innocent shelter. In this way he has searched the whole world. He found his relatives, friends, wife, son, father all to be puppets of selfishness, so in a sad voice he says-- 'Ayamagne jarita'..... meaning Prabhu! This devotee has become dependent [lives] on you only. O one who makes the strong bow down! Without you nothing else has been achieved and there is no other relative. It is true. God alone is the true friend, friend, mother and father--'Sa no bandhurjanita sa vidhaata' Yajurveda (32/10) meaning that the same God is our friend and mother and he is the creator, the controller of the world, the creator of the world = the one who resides in the whole world.
He is the strongest among the strong, there is no one stronger than him. All become weak in front of His power. He is the Almighty. If you get the Almighty, the repository of all virtues, then what else do you need? While searching for shelter, you found the shelter of all, the support of all. I had seen all the supports, but got the knowledge of their qualities and demerits. When I got this, the devotee said 'Bhadram hi sharma'... that is, your shelter is really the best among the three. One shelter is of the inanimate nature. The living being does not lose as much as he loses from it. When a conscious living being wants to become a refugee of the inanimate nature, then understand that he has already lost a lot. The prudent living being does not have enough wisdom to know that I am the master and this is the self. He forgot that the inanimate is inferior to the conscious. The inanimate cannot do any action on its own, in it the basis of action, effort, movement is done by the conscious only, hence the shelter of the inanimate is death. The second shelter is of the living beings. The living being is definitely conscious like them. It is definitely superior to the inanimate nature without light. In the Sandhya Mantra itself, the living being is said to be superior to nature. 'Udvayam Tamaspari Swa:'.... Rising above the dark nature, we see the light of the soul which is superior to it.
But there is a sequence in the qualities of knowledge etc. of the living being. One appears to be better than the other. The living being takes refuge in one and on realizing the superiority of the other, leaves it. In the end, when his desire is not fulfilled even there, he looks for another refuge.
The third refuge is the creator of the world, God -- the presiding deity of nature and living beings --
As soon as he gets it, all the disturbances are pacified, the desire is pacified and he says in anger --- Bhadram hi sharma.....=Your refuge is the best of the three, the best of the best.
Due to lack of knowledge, the soul is often unable to preserve the best thing that he has received. The soul is afraid of this weakness of his. He is worried that the deadly enemies like lust, anger etc. may attack him, may attack him with their thunderbolt and he may lose the three-fold refuge by getting hit by them. He prays to his friend -- Are hinsaanaap.....=keep the thunderbolt of the violent far away from me. If the soul is saved from the thunderbolt of lust, anger etc., then its welfare increases gradually. The meaning is that after getting refuge, a man should not become careless, he should always be cautious. For this, he prays to God without any pride, because he has become aware of his weakness.
🕉👏 198th Vedic Bhajan of the second series
And 1204th Vedic Bhajan till now 🙏
🙏Hearty greetings to all Vedic listeners🙏🌹
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