*पाप, अनैतिकता, दुराचरण, हेय, त्याज्य आदि निकृष्ट स्थितियों को कब तक उलझन ही माना जाय....??*
*कोई भी निष्पाप नहीं है इस संसार में, कोई भी कर्म नया नहीं है,,,,,जो कुछ भी आज घट रहा है वह पहले भी घटित हो चुका....और तुम उसे पहले भी जान चुके थे इस वर्तमान जीवन में पुनः जान रहे हो.......*
*"एक सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली " इस कहावत को कहकर उत्थान के लिए प्रयत्नशील आदरणीय चेतना की खिल्ली उडाने वाला समाज स्वयं अपने गिरेबान में झांके तो....*
*सामान्यतो दृष्ट्या बिल्ली और हज में कोई सार्थकता नहीं है तथापि वह इतने चूहे खाने के बाद भी कम से कम आगे की (अन्तर्यात्रा) यात्रा पर निकल तो पडी...... "तुम तो अभी भी चूहे ही चूस रहे हो"........*
*यद्यपि तात्स्थ्योपाधि से देखें तो बहुत ही उत्तम शिक्षा भी निहित है इस कहावत में ||*
*सही बात तो यह है कि तुम ये सहन ही नहीं कर पा रहे हो कि यह उन्नति की ओर कैसे बढ सकता है, यह सुधर कैसे सकता है,,,,तुम्हारी आज्ञा के बिना.....मानों वह गुलाम हो, वह श्वास भी ले तो तुम्हारी ही परमिशन से ले.......*
*सत्य यह है कि तुम्हें ईर्ष्या है, द्वेष है, भयंकर जलन होती है तुम्हें....क्योंकि तुम्हारे बीच का एक बालक तुमसे उच्च स्थिति की ओर बढ रहा है, तुम उसे पुनः वापस उसी गन्दगी में घसीटना चाहते हो तभी तो ऐसे तानें मारकर उसे हतोत्साहित करना चाहते हो ...*
*लेकिन ध्यान रखना तुम्हारी ओर से हतोत्साहित करने का जितना बडा प्रयास किया जायेगा यह सुपथ के पथिक के लिए उतना ही बडा सम्बल प्रदान करता जायेगा....चाहे जितना जोर लगा लो रोक नहीं सकते तुम इस साधक को.......*
*बुरा जो देखन मैं चला,बुरा ना मिलया कोय ।*
*जो चित खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।*
*🌼🌻 साधक 🌸🌼*
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