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संसार का मार्ग

सारा खेल समझने के लिए यूरोप और इजिप्ट से शुरू होकर पश्चिमी चीन से होकर गुजरने वाले चीन तक पहुंचने वाले "थल सिल्क रूट" पर गौर करना पड़ेगा, 1400 ईस्वी पूर्व वाले टाईम में।यह रूट हिमालय के उत्तर में हिमालय के कश्मीर से लगभग 700 मील उत्तर में था। वर्तमान इंडिया में नहीं था।
पश्चिमी चीन से होकर यह रूट चीन तक गया , चीन का रेशम यूरोप पहुंचा।
इस रूट की एक ब्रांच  थाईलैंड कंबोडिया में पहुंची जिसे आगे चलकर खमेर कहा गया।
वहां से आगे मलेशिया इंडोनेशिया से होकर इजिप्ट वाले लोग इंडोनेशिया के पूर्व में स्थित पपुआ गिनी द्वीप पहुंचे। पपुआ गिनी के लोग वहां के उत्तम मसालों से ममी बनाया करते थे।
         उसी ममी बनाने की कला को इजिप्ट वालों ने पपुआ गिनी के आदिवासियों से सीखा था।
ममी में उत्तम मसालों का प्रयोग होता था, वो मसाले गिनी में भी मिलते थे, इंडोनेशिया में भी।
              मसालों के बीज इंडोनेशिया से थाईलैंड कंबोडिया में पहुंचे। थाईलैंड कंबोडिया में भी मसाले पैदा होने लगे। मौसम अनुकूल था।
ठंडे यूरोप में मसाले खूब पसंद किए गए।
इसी थल सिल्क रूट से 3000 साल पहले यूरोप के उस समय के ग्रामीण डेवटा यूरोप के व्यापारियों ने इंडोनेशिया में पहुंचा दिए। यह समय यूरोप में ग्रीक सभ्यता के उभरने से पहले का ग्रामीण समाज था।
दक्षिण यूरोप का उस समय का वीनस शहर इंडोनेशिया से लाए गए गर्म मसालों के व्यापार से उभरा था।
वीनस के व्यापारियों ने थल सिल्क रूट के रास्ते से इंडोनेशिया से लाए गए मसालों को पूरे यूरोप में खूब बेचा।
वीनस शहर यूरोप का सबसे पहला व्यापारिक केंद्र बना था , इंडोनेशिया से लाए गए मसालों के कारण।
यही कारण है कि एशिया के सबसे पुराने मंदिर इंडोनेशिया में मिलेंगे।...

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