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सनातन धर्म में सूर्य, चन्द्र , पीपल, तुलसी, इत्यादि अनेक तत्वों की पूजा क्यों करते हैं???

 सनातन धर्म में सूर्य, चन्द्र , पीपल, तुलसी, इत्यादि अनेक तत्वों की पूजा क्यों करते हैं??? 



इसको जानने से पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि पूजा का अर्थ क्या है ?

पूजा किसकी करनी चाहिए ? 

पूज्य कौन है ? 


पूजा किसी जड़ वस्तु की नहीं होती ! पूजा किसी जानवर या मनुष्य की नहीं की जाती ! पूजा किसी जड़ या चेतन की नहीं की जाती ! 


पूजा एकमात्र उसी की की जाती है जिसमें कुछ विलक्षण गुणों का अधिपत्य पाया जाता है ! शास्त्रों में केवल गुणों को ही पूजनीय बताया गया है ! 

चाहे नर हो  चाहे नारी चाहे कोई भी तत्व हो , बिना गुणों के वह पूजनीय नहीं हो सकता ! 


लेकिन पूजा क्यों करें ???? 


पूजा करने का उद्देश्य होता है जिस भी अमुक चीज की पूजा की जा रही है उसके गुण पूजा करने वाले मनुष्य या जीव को लाभान्वित करें ! एकमात्र पूजा करने का उद्देश्य यही होता है ! 


ताकि येन केन प्रकारेण उसके गुण हमारे अन्दर प्रवेश कर हमें लाभान्वित कर सकें ! 

जैसे सूर्य की पूजा करते हैं तो उसके गुणों से अगर हम लाभान्वित नहीं होते तो हमारा पूजा करना व्यर्थ है ! वह ऐसे ही है जैसे किसी को प्यास लगे और वह पानी की कलाकृति देखकर अपनी प्यास बुझाए ! 


चन्द्र की पूजा का अर्थ उसके शीतलता एवं औषधिपुष्टकारक  किरणों से हम लाभान्वित हो सकें ! 

कोई चन्द्र की पूजा बिना चन्द्र के संपर्क में आये करे तो वह एकमात्र निरामुर्ख है ! 


ऐसे ही पीपल को धागा बांधना , या उसकी परिक्रमा का अर्थ है कि उसके अन्दर की औषधीय शक्ति ,प्राण वायु, जल , मिटटी इत्यादि से सम्पर्क स्थापित कर उसके गुणों से लाभान्वित हो सकें ! 

ऐसे ही तुलसी की पूजा का अर्थ यही है कि उससे सम्पर्क होने वाली वायु, भूमि , जल , तेज ( वातावरण ) आदि से हम अपना शारीरिक एवं मानसिक लाभ ले सकें ! 


सात्विक तत्व की पूजा करेंगे तो बुद्धि और विवेक सात्विक बनेगा ! 

तामसिक तत्वों की अराधना करेंगे तो तामसिक बनेगे ! जिस तत्व की पूजा हो रही है उसके प्रभाव से आप अछूते नहीं रहेंगे ! 


इसीलिए पूजा या अराधना भी सोच समझकर करना चाहिए ! 


ऐसे ही लक्ष्मीजी  , कुबेर , वरुण, अग्नि , आदि देवताओं की पूजा का कारण यही है कि उनके जो विशिष्ट गुण हैं उससे हम लाभान्वित हो सकें ! 


आप कोई भी स्तुति या अराधना का मंत्र उठा लीजिये ! सूर्य मंत्र से लेकर दुर्गा सप्तशती   का कोई भी श्लोक उठा लीजिये ! सभी मन्त्रों में पहले उस अमुक देवी या देवता के विशिष्ट गुणों का उल्लेख होगा इसके पश्चात प्रार्थना रुपी शब्द आते हैं ! 


कोई भी ऐसा श्लोक या मंत्र नहीं जिसमें उस देवी या देवता के गुणों का उल्लेख न हो ! 


शायद दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी करते होंगे , इसीलिए उसका उदहारण दे रहा हूँ ! अर्गला , कवच , कीलक , या शतनाम इत्यादि में से कोई भी आप पढेंगे तो पायेंगे कि एकमात्र यह आत्मिक शक्ति को जागृत करने का उपक्रम है जिससे मनुष्य में आत्मविश्वास के साथ साथ आत्मिक विकास का संचार हो ! 


हमारे ऋषि मुनियों ने इसी उद्देश्य से यह सब बनाया ! परन्तु आज सब गुड़गोबर हो गया ! 

लोग जीभ से मन्त्र रटे जा रहे हैं बिना ध्यान लगाए ! 


हनुमान चालीसा रट लेते हैं बोलते जाते हैं एक श्वांस में ! उन्हें पता भी नहीं की इस हनुमान चालीसा का कोई मतलब नहीं , कोई लाभ नहीं ! 


अरे देखो तो तुलसीदास जी ने क्या लिखा है ! हर चौपाई में उनके गुणों का वर्णन करते हुए कह रहे हैं इन गुणों से हमें भी लाभान्वित कीजिये ! 


यह नहीं कह रहे हैं की रट्टू तोते की तरह रट लो और सुबह शाम या मंगलवार को हनुमान जी के सामने वह सारे अगड़म बगड़म शब्द सुना देना ! ऐसे जैसे हनुमान जी Oral Test ले रहे हों ! 


आप ध्यान दीजिये की आप ये क्या पढ़ रहे हैं ?? 

ये Zumbled words ही तो पढ़ रहे हैं ! 


ये ध्यान रहे कि संसार का कोई भी मंत्र या श्लोक एकमात्र Zumbled words ही हैं जब तक आप उसके अर्थों को समझ कर उसके अनुसार भाव बनाकर उसको आत्मसात न करें ! कोई मन्त्र नहीं काम करेगा बिना उसके अर्थ या भावार्थ समझे बिना ! फिर आप ही लोग बोलते हैं कि जी सब बेकार है ! 


इसीलिए, कुछ भी करने से पहले उसके पीछे का विज्ञान अवश्य समझें ! हमारे सनातन धर्म में एक भी ऐसा फ़ालतू तत्व नहीं जिसका कोई आधार न हो ! 


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