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क्या आप जानते हैं कि भारत में गरीबी को मिटाने का प्रयास लंबे समय से होरहा है और गरीबी क्यों समाप्त नहीं हती,

 


भारत ही नही यद्यपि यह पुरी दुनिया की एक अनसुलझी समस्या में से एक समस्या यह भी है। इस समस्या के समाधान के लिए पुरे विश्व की सरकारे लंबे समय से लगातार कार्य कर रही है, और इस समस्या का समाधान अभी तक किसी को भी पूर्णतः नहीं मिल सका है, अर्थात यह गरीबी लाइलाज विमारी की तरह आधुनिक नितिकारो के सामने आज भी उपस्थित है, ऐसा अवश्य देखने मे आया है सरकारी खर्चे पर जो देश अपनी जनता को अमीर बनाता है। वही जनता कुछ एक दशक में ही पहले से भी अधिक दरिद्रता का शिकार हो जाती है, बहुत अमिर लोग भी दरीद्रता अर्थात गरीबी के शिकार होते हुए देखे गये हैं,  आप स्वयं यह पता कर सकते है कुछ एक दशक पहले जो परिवार या समाज या प्रांत जो बहुत अमिर थे वह आज भयंकर दरीद्रता के शिकार हो चुके हैं। और जो पहले बड़ी दरीद्रता गरीबी में जीवन व्यतित कर रहे उन्होने कुछ एक साल में ही स्वर को काफी अमीर बना लिया है, दरीद्र से अमीर बनना काफी कठीन कार्य है, अमीर से गरीब बनने की तुलना में,  इस वजह से मनुष्य संसारी प्रपंच और दुष्प्रभाव दुष्प्रचार के कारण स्वयं को अभीर तो बना लेता है। लेकिन जब उसे पता चलता है। कि अमीरी शिवाय एक मानशिक बिमारी रोग के कुछ नहीं है, अमीरी एक लत है जैसे किसी को धुम्रपान मदिरापान मांसाहार वेश्यागामी होना, जुआरी होना, इत्यादि गंदी आदत लत लग जाती है, अमीरो मे यह सब लत एक साधारण बात मानी जाती है, यह गंदी लत ही मनुष्य को अमीर बने रहने के लिए मजबूर करती है, इस अपनी गंदी लत के कारण वह स्वयं मनुष्य की श्रेणी से बहुत निचे गीरा लेता है, वह शकल से मानव दिखता है, यद्यपि उसकी सारी आदते जंगली पशुओ के समान बन जाती वह अपने समान दिखने वाले मनुष्य को पशु समझता है और उसके साथ किसी जंगली जानवर के समान व्यवहार करता है, यह उसका वास्तविक स्वभाव नही होता है, यह उसकी आदत होती है। आदत बदली जा सकती है जबकि स्वभाव को बदलना संभव नहीं है, जैसै मनुष्य क्या खाता है या क्या नहीं खाता है, यह उसका स्वयं का चुनाव है, यह चुनाव ही जब किसी वस्तु पर लंबे काल तक ठहर जाती है तो वह उसकी आदत बन जाती है। जबकि स्वभाव मतलब खाना खाना शरीर का स्वाभाविक गुण है, इसे कोई शरीर धारी मनुष्य त्याग नहीं कर सकता है।, यद्यपि उसको मन पसंद भोजन नही मिलने पर वह स्वयं को जीवित रखने के लिए जो भी रुखा सुखा भोजन स्वयं के लिए उपलब्ध पाता उसे वह ग्रहण कर लेता है। क्योकि यह भोजन ग्रहण करना उसका स्वभाव है, उसकी आदत नहीं है, जैसे अग्नि का स्वभाव है वह गर्म रहती है, जल का स्वभाव है वह शीतल होता है। 

    आदत या लत ही अमीरी की पहचान है, जो जितना अधिक विषयों से अर्थात बंधनो में जकडा है वह उतना ही अमीर माना जाता है, जैसै प्रधानमंत्री के लिए विशेष प्रोटोकॉल होता है, उसका एक मीनट पहले से निश्चित कार्य के लिए आवंटित होता है, कोई अभिनेता या अमिर आदमी है वह अपने आपको समय के साथ बांध कर रखता है उसके लिए उसके जीवन का बहुमूल्य समय केवल धन के संग्रह के लिए होता है, इसीलिए बहुत लोगों का यह मानना है समय ही धन है, उनका कहने का मतलब है अपने जीवन के बहुमूल्य समय का उपयोग धनार्जन मे व्यय करना बहुत बड़ी बुद्धिमानी का कार्य है, धन का अर्जन करने के बाद धन को खर्च करना अपने जीवन का शर्वनास करने के लिए खर्च करना और गंदि लत का शिकार होना, वास्तव जो विचारशील विवेकी लोग होते है वह धन अर्जन करने के बाद भी अपनी कंगाली अपनी दरिद्रता का परित्याग नहीं कर पाते हैं वह लाख प्रयास कर ले लेकिन वह उसका त्याग नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह उनका स्वाभाविक गुण है जो 'परिवर्तनशिल नहीं है, ऐसे लोगो की संख्या अमीरो 100% है इसी कारण से वह अपनी अमीरी का चोला पहन कर लंबे समय तक अपने स्थान पर टिके रहते है, वह वास्तविक रूप से अपने हृदय से महा दरिद्र और कंगाल होते है, यद्यपि अपने पहनावे रहन सहन हाव भाव से स्वयं को अमिर प्रदर्शित करते, है यह सब झूठा अभिनय ढोंग करते हैं। जैसा कोई अभिनेता बड़े पर्दे पर अभीनय करता है उसके अभिनय को देखकर सभी दर्शक भावविभोर हो जाते है, उदहारण के लिए जिस कलाकार ने रामायण में राम का महाभारत में कृष्ण का अभीनय किया था कुछ लोग सच में उन्हें राम और कृष्ण समझने लगते हैं  यहाँ तक उनको देवी देवता मान कर उनकी पुजा प्रार्थना और गुणगान करने लगते हैं। जबकि सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है एक चरीत्रहिन पुरुष या महिला को अपना आराध्य बना कर अपने हृदय के सिंहासन पर वैठा लेते हैं। उसके अनुसरण से  हम उन्ही जैसे चरित्रहिन व्यशनी महाविलाशी विषयों में सुख रस को खोजने लगते हैं,  वास्तव में यह कार्य उसी प्रकार से है जैसा कुत्ता हड्डियों को अपने दातों से कुरेदता है और उसके मसूड़ों से खुन टपक कर उसकी जिभ पर गीरता है, और वह महामूर्ख जड़ बुद्धि जीव समझता है कि यह खुन हड्डियों से आरहा है, ऐसा साधारण मनुष्य के साथ भी होता है, वह विषयों के चक्कर में ऐसे फंसते है उनका जीवन ही समाप्त हो जाता हैं, क्योंकि यह सब जगत का प्रपंच सार भौतिक सामग्री मनुष्य को अमीर नहीं यद्यपि दरिद्र कंगाल और उसका पूर्णतः शर्वनास करने के साधन है’ इसलिये इसको माया कहते हैं, और जहां सबसे अधिक यह कार्य होता है उसे मायानगरी कहते हैं,  और इस माया नगरी के दलदल में जो बुरी तरह से फंस कर धसे जा रहे है वह बड़ी आद्रता के साथ जैसे एक प्रेमिका जब काम से पिड़ित होती है, तो उसे अपने प्रेमी के विरह में पागल हो जाती है। जिसे कवी बड़ सुन्दरता के अपने शब्दों में चित्रित करता और जो उस कविता का पाठ करता है वह उसमे डुबने लगता है जैसे एक कविता मैने किसी से बहुत पहले सुनी थी जिसका नाम था नागमती वियोग वर्णन यह सब आदत और लत हैं अपनी निजता की उपलब्धि ही हमे हमारी दरीद्रता और गरीबी से हमेशा के लिए मुक्त कर सकती है और इसके लिए हम सब अपने जीवन में अपनी मानशिक बिमारी को दूर करना होगा। जो स्वयं को अमिर समझते हैं वह मानशिक बिमारी के शिकार है और जो गरीब हैं वह भी मानशिक बिमारी के शिकार हैं क्योंकि जो सत्य शुभ और शाश्वत सनातन वैदिक सिद्धांत है वह अपरिवर्तित रहने वाला है और वह सब मे हमेशा से है। उससे हम परिचित नही है यह हमारा अज्ञान है, और यह अज्ञानता मायानगरी और इसके साधन से सिद्ध नहीं होगा इसलिए इनसे सावधान रहना ही निर्धनता गरीबी को दूर किया जाना संभव है अर्थात यह अमीरी एक छलावा जिस दिन इस सत्य का साक्षात्कार हमारे देश और विश्व को होगा उसी दिन सभी सुखी ऐश्वर्यशाली हो जाएगे |


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