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अहोई अष्टमी पर विशेष

 अहोई अष्टमी पर विशेष

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अहोई का अर्थ  "न होने" से है अर्थात्  "जो न हो"  या  "अनहोनी घटना न होना"

वास्तविक रूप से से तो "अहोई" नाम की कोई देवी नहीं है।  पुनरपि यह कहा जा सकता है कि "अनहोनी घटना"  ही अहोई  है। क्योंकि माताएं इस अनहोनी घटना के भय से और उसके प्रभाव से अपने पुत्रों 

【(पुत्रियों के लिए यह व्रत नहीं कहा गया)】

को बचाने के उद्देश्य से  इस दिन भूखे रहने का व्रत रखती हैं और कामना करती हैं कि अहोई  उनके पुत्रों की रक्षा करेगी।

यद्यपि यह व्रत लिंगभेद को बढ़ावा देने वाला है । लेकिन आजकल कुछ लोगों ने मनमानी करते हुए इसके पौराणिक स्वरूप में परिवर्तन करके पुत्रियों के स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के लिए मनाने का प्रचलन प्रारम्भ कर दिया है।

फिर भी  "अनहोनी घटना" के भय और प्रभाव को दूर करने  की मनसा एक कल्पित देवी से करना, इसकी 

असारता, अन्धविश्वास और सनातन सिद्धान्तों के विपरीत होने की पोल खोल देता है। क्योंकि किसी के भूखा रहने से किसी अन्य व्यक्ति की आयु बढ़ जाए अथवा अहोई न हो - यह.भावना सत्य से कोसों दूर है और व्यवहार में भी देखने में आता है कि अहोई आदि के व्रत रखने पर भी अहोई हो जाती है।

वास्तव में ऋषियों  के सनातन सिद्धान्तों के अनुसार  अहोई को (अनहोनी)  रोकने और या उसके हो ज जाने पर उसका प्रभाव कम करने का उपाय है  "धर्म का आचरण" और 

"वेद का पठन पाठन"

कैसे  ?

देखो जी

वेद के पठन पाठन से पता लगेगा कि उचित और अनुचित कर्म का 

वेद कहता है -

1. "मा गृधः"  अर्थात् लालच मत कर।

2. "युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनः" अर्थात्  पापरूपी कर्म छलकपट को छोड़ दें।

3. "इदमहमनृतात् सत्यमुपैमी"  अर्थात् असत्य को छोड़ सत्य का आचरण करता हूँ।

4. "पशून पाहि" अर्थात् जीवजन्तुओं की रक्षा कर।

5. "दुरितानि परासुव यद्भद्रं तन्नासुव"

अर्थात् दुर्गुण ,दुर्व्यसन को छोड़कर  कल्याणकारी गुण,कर्म स्वभावों को अपना ले उनका आचरण कर।

6. "अक्षैर्मा दिव्यः कृषिमित्कृषस्व"  अर्थात् परिश्रम से धन कमा न कि लूटखसोट, रिश्वत आदि से।

7. "शतहस्त समाहर सहस्रहस्त संकिर" अर्थात्   परिश्रम से कमाए धन का दस प्रतिशत परोपकार में व्यय कर।

8. "स्थिरैरङैस्तुष्टवांसस्तनूभिव्यशेमहि देवहितं यदायुः"  अर्थात्  दृढ़ अंगों वाला बन ,ईश्वर उपासक बनकर , परोपकारी जीवन जीते हुए दीर्घायु हो।

9. "धीयो यो नः प्रचोदयात्"  अर्थात् हमें प्रेरणादायक बुद्धि मिले जब कभी संकट हो या हर्षोल्लास हमारी बुद्धि ठीक ठीक कार्य करती रहे  जिससे हमारे निर्णय सदैव उचित हों और हम उन्नति कर सकें।

10. "सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु"

अर्थात् सभी प्राणियों का मित्र बनो।

उक्त वेदवाक्यों को पढ़ने से ही धर्म का ठीक ठीक आचरण पुत्र-पुत्रियां कर सकेंगीं  और हम अनहोनी घटनाओं (अहोई)  को  अथवा उसके होने पर उसके प्रभाव को रोक सकेंगे या न्यून कर सकेंगे।

अब माताओं को चाहिए कि वे अपनी सन्तानों को उक्त वैदिक तथ्य अवगत कराने का #व्रत लें तो अहोई  नहीं होगी सन्तान दीर्घायु, सुखी और ऐश्वर्यशाली होगी।

अन्यथा अहोई व्रत रखो

पर सन्तान हो जाएं

नास्तिक, धर्महन्ता, मांसाहारी, जुआरी(अपरिश्रमी), रिश्वतखोर, अदानी, शराबी,  परोपकार तो छोड़ो  झगड़ालू और गबन करने वाली, छलीकपटी, 

तो अहोई अर्थात् अनहोनी को कौन टाल सकेगा  ???  कोई  व्रत-उपवास भी नहीं

क्योंकि सनातन धर्म का अकाट्य सिद्धांत है  जो जैसा करेगा उसे वैसा फल भरना ही होगा।

अतः आज "अहोई अष्टमी"  को बच्चों को वेद के पढ़ने और उसके आचरण को प्रेरित करें 

आओ वेदों की ओर


डॉ. अमित

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