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दिनांक - -१० नवम्बर २०२४ ईस्वी

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷



दिनांक  - -१० नवम्बर २०२४ ईस्वी


दिन  - - रविवार 


  🌓 तिथि -- नवमी ( २१:०१ तक तत्पश्चात  दशमी )


🪐 नक्षत्र - - धनिष्ठा ( १०:५९ तक तत्पश्चात  शतभिषा )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  कार्तिक 

ऋतु  - - हेमन्त 

सूर्य  - -  दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:४० पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:३० पर 

 🌓चन्द्रोदय  --  १३:५३ पर 

 🌓 चन्द्रास्त  - - २५:२४ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


  🔥 आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में सबन्ध क्या है- ? 

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   इस विषय का नाम अध्यात्म है, आत्मा और परमात्मा दोनों ही भौतिक पदार्थ नहीं हैं, इन्हें आँख से देखा नहीं जा सकता,और न ही  कान से सुना नहीं जा सकता व नाक से सूँघा भी नहीं जा सकता, जिह्वा से चखा नहीं जा सकता, त्वचा से छुआ नहीं जा सकता है !


       परमात्मा एक है, अनेक नहीं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि उसी एक ईश्वर के नाम हैं, "एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति" अर्थात् एक ही परमात्मा शक्ति को विद्वान लोग अनेक नामों से पुकारते हैं, संसार में जीवधारी प्राणी अनन्त हैं, इसलिए आत्माएँ भी अनन्त हैं।


       न्यायदर्शन के अनुसार ज्ञान, प्रयत्न, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख ये छः प्रकार के गुण जिसमें हैं उसमें आत्मा है, ज्ञान और प्रयत्न आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं, बाकी चार गुण इसमें शरीर के मेल से आते हैं, आत्मा की उपस्थिति के कारण ही यह शरीर प्रकाशित है, नहीं तो मुर्दा अप्रकाशित और अपवित्र है, यह संसार भी परमात्मा की विद्यमानता के कारण ही प्रकाशित है।


      आत्मा और परमात्मा दोनों ही अजन्मा व अनन्त हैं, ये न कभी पैदा होते हैं और नही कभी मरते हैं, ये सदा रहते हैं, आत्मा अणु है, बेहद छोटी है, परमात्मा आकाश की तरह सर्व व्यापक है, आत्मा का ज्ञान सीमित है, थोड़ा है, परमात्मा सर्वज्ञ है, वह सब कुछ जानता है।


      जो कुछ हो चुका है और हो रहा है, सब कुछ उसके संज्ञान में है, आत्मा की शक्ति सीमित है, थोड़ी है, परन्तु परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सृष्टि को बनाना, चलाना, प्रलय करना- आदि अपने सभी काम करने में वह समर्थ है, ईश्वर आनन्द स्वरूप है, वह सदा एकरस आनन्द में रहता है। वह किसी से राग-द्वेष नहीं करता।


     वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से परे है, ईश्वर की उपासना करने से अर्थात् उसके समीप जाने से आनन्द प्राप्त होता है, जैसे सर्दी में आग के पास जाने से सुख मिलता है, ईश्वर सर्व व्यापक होने से  निराकार है , उसे शुद्ध मन व ज्ञान से जाना जा सकता है, जैसे हम सुख-दुःख मन में अनुभव करते हैं।


      यह आत्मा जब मनुष्य शरीर में होती है, तब वह कार्य करने में स्वतन्त्र रहती है, उस समय किये कार्यों के अनुसार ही उसे परमात्मा सुख, दुःख तथा अगला जन्म देता है, दूसरी योनियाँ या तो किसी दूसरे के आदेश पर चलती हैं या स्वभाव से काम करती हैं, उनमें विचार शक्ति नहीं होती, इसलिए उन योनियों में की गई क्रियाओं का उन्हें अच्छा या बुरा फल नहीं मिलता।


      वे केवल भोग योनियाँ हैं जो पहले किए कर्मों का फल भोग रही हैं, मनुष्य योनि में कर्म और भोग दोनों का मिश्रण है, मनुष्य स्वतन्त्र रूप से कर्म भी करता है और कर्मफल भी भोगता है, मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ, शरीर मेरा संसार में व्यवहार करने का साधन है, कर्ता और भोक्ता आत्मा है, सुख-दुःख आत्मा को होता है।


       जीवात्मा न स्त्रीलिंग है, न पुलिंग है और न ही नपुंसक है, यह जैसा शरीर पाता है, श्वेताश्वतर उपनिषद् में कहा गया है कि ईश्वर की पूजा ऐसे नहीं की जाती, जैसे मनुष्यों की पूजा अर्थात सेवा सत्कार किया जाता है, ईश्वर की आज्ञा का पालन अर्थात सत्य और न्याय का आचरण- यही ईश्वर की पूजा है।


       कठोपनिषद में मनुष्य-शरीर की तुलना घोड़ागाड़ी से की गई है, इसमें आत्मा गाड़ी का मालिक अर्थात सवार है, बुद्धि सारथी अर्थात् कोचवान है, मन लगाम है, इन्द्रियाँ घोड़े हैं, इन्द्रियों के विषय वे मार्ग हैं जिन पर इन्द्रियाँरूपी घोड़े दौड़ते हैं, आत्मारूपी सवार अपने लक्ष्य तक तभी पहुँचेगा, जब बुद्धिरूपी सारथी मनरूपी लगाम को अपने वश में रखकर इन्द्रियाँरूपी घोड़ों को सन्मार्ग पर चलाएगा।


      उपनिषद में घोड़ागाड़ी को रथ कहा जाता है और रथ पर सवार को रथी, मनुष्य शरीर में आत्मा रथी है, जब आत्मा निकल जाती है, तब शरीर अरथी रह जाता है, परमात्मा हम सबका माता-पिता और मित्र है, हम सब प्राणियों का भला चाहता है, जब मनुष्य कोई अच्छा काम करने लगता है तो उसे आनन्द, उत्साह, निर्भयता महसूस होती है।


      वह परमात्मा की तरफ से होता है, और जब वह कोई बुरा काम करने लगता है, तब उसे भय, शंका, लज्जा महसूस होती है,वह भी परमात्मा की तरफ से ही होता है।


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🚩‼️ आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷 ओ३म्  को व: स्तोमं राधति यं जुषोषथ विश्वे देवासो मनुषो यतिष्ठन। को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करधौ न: पर्षदत्यंह: स्वस्तये।( ऋग्वेद १|६३|६)


💐अर्थ :- हे सब दिव्यगुण युक्त विद्वानों! तुम जितने भी हो, उन सबकी स्तुति - उपासना जिसका तुम सेवन करते हो, प्रजापति परमेश्वर सिद्ध करता रहता है।वहीं सुखमय परमात्मा तुम अनेक जन्म धारण करने वालों के हिंसा रहित यज्ञ को पूर्ण करता है, जो यज्ञ पाप को हटाकर हमारे लिए आनन्द को प्राप्त कराता है ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, कार्तिक - मासे, शुक्ल पक्षे , नवम्यां

 तिथौ, धनिष्ठा

 नक्षत्रे, रविवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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