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दिनांक - -२८ नवम्बर २०२४ ईस्वी

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷



दिनांक  - -२८ नवम्बर २०२४ ईस्वी


दिन  - - गुरुवार 


  🌘 तिथि -- त्रयोदशी ( पूरी रात्री )


🪐 नक्षत्र - - चित्रा  ( ७:२६ तक तत्पश्चात  स्वाति )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  मार्गशीर्ष 

ऋतु  - - हेमन्त 

सूर्य  - -  दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:५४ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:२४ पर 

 🌘चन्द्रोदय  --  २९:०२ पर 

 🌘 चन्द्रास्त  - - १५:२१ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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🚩‼️ओ३म्‼️🚩


    🔥परमात्मा ने मनुष्य की जीवात्मा को मानव शरीर किसी विशेष प्रयोजन से दिया है। पहला कारण है हमें अपना-अपना मानव शरीर वा मानव जीवन अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर आत्मा की उन्नति व दुःखों की निवृत्ति के लिये मिला है। आत्मा की उन्नति के लिये जीवन में ज्ञान की प्राप्ति व उसके अनुरूप आचरण का सर्वोपरि महत्व है। ज्ञान प्राप्ति बुद्धि का विषय है। परमात्मा ने बुद्धि इसी प्रयोजन को पूरा करने के लिये दी है। बुद्धि ज्ञान प्राप्ति में सहायक है। ज्ञान की प्राप्ति माता, पिता, आचार्यों के उपदेशों सहित वेद व ऋषियों के वेदानुकूल ग्रन्थों के स्वाध्याय व अध्ययन से होती है। यदि मनुष्य धार्मिक माता, पिता व आचार्यों को प्राप्त न हो और वेद व वैदिक साहित्य का स्वाध्याय न करे तो उसके ज्ञान में वृद्धि, आचरण की शुद्धि और जीवन के उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती।


   इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ही स्वाध्याय, ईश्वरोपासना तथा देवयज्ञ अग्निहोत्र का महत्व है। हमारे शास्त्रकारों ने विधान किया है कि मनुष्य को स्वाध्याय से कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये। जो मनुष्य वा स्त्री-पुरुष स्वाध्याय करेगा व करते हैं, वह ज्ञान प्राप्ति कर उन्नति करते हुए सुखों को प्राप्त होते हैं। इसके देश व समाज में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। मनुष्य की आर्थिक उन्नति बिना सद्ज्ञान प्राप्ति के अधूरी होती है। कई बार यह विनाशकारी भी हो जाती है। बहुत बड़े बड़े धनाड्य लोग जेलों में जाते देखे जाते हैं। इसका कारण उनके जीवन का स्वाध्याय व आचरण से शुद्ध न होना ही होता है। यदि उनका ज्ञान व आचरण शुद्ध होता तो उनकी अपयश आदि से दुर्दशा न होती। आजकल की शिक्षा में सद्ज्ञान व विद्या का वह समावेश नहीं है जो कि उसमें होना चाहिये। जिस शिक्षा में वेद सम्मिलित न हों, वह शिक्षा अधूरी है और इससे मनुष्य का चरित्र निर्माण नहीं होता। 


   वेदों का ज्ञान व वैदिक शिक्षा मनुष्य का चरित्र निर्माण करती है। वह मनुष्य को आस्तिक, ईश्वर का उपासक, देश व समाज का भक्त व हितैषी, धार्मिक व परोपकारी बनाती है। अतः सभी मनुष्य स्कूलों में न सही, अपने घरों में रहकर तो वेदों पर आधारित तथा वेदज्ञान की कुंजी हिन्दी व देश की अनेक भाषाओं में उपलब्ध, ऋषि दयानन्द के अमर ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाश” का अध्ययन तो अवश्य ही कर सकते हैं। इससे मनुष्य का अज्ञान व अविद्या दूर होकर ज्ञान के चक्षु खुल जाते हैं और अध्येता को सत्यासत्य का पूरा परिचय होने के साथ धर्म व अधर्म, धर्म व मत-मतान्तरों का अन्तर तथा अच्छे व बुरे लोगों की पहचान हो जाती है। अतः सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का पढ़ना अज्ञान दूर करने तथा ज्ञानी बनकर देश व समाज के लिये कुछ विशेष कार्य करने की प्रेरणा ग्रहण करने के लिये आवश्यक एवं हितकर है। 


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 🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷ओ३म् अग्न आ याहि वीतये गृणाणो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि।। ( सामवेद पूर्वार्चिक १|१)


💐अर्थ  :- हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन्  ! चित्त की एकाग्रता के लिए, जीवन में गति देने के लिए, हमारे सब कार्यों में सदगुण देने तथा सुपथ प्रदान करने के लिए आप आओ। यज्ञादि शुभ कर्मों द्वारा सदा हमारे ह्रदय में विराजो, हम सदा आपको स्मरण करते रहें।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे, त्रयोदशम्यां

 तिथौ, चित्रा

 नक्षत्रे, गुरुवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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