🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -०८ नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌓 तिथि -- सप्तमी ( २३:५६ तक तत्पश्चात अष्टमी )
🪐 नक्षत्र - - उत्तराषाढ ( १२:०३ तक तत्पश्चात श्रवण )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - कार्तिक
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:३८ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:३१ पर
🌓चन्द्रोदय -- १२:३६ पर
🌓 चन्द्रास्त - - २३:१४ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥केन उपनिषद्
===========
🌷सामवेद से संबंधित इस उपनिषद् का पहला शब्द " केन इषितम्.." के कारण इसका नाम केनोपनिषद् पड़ा। इस में चार खण्ड और कुल 33 श्लोक हैं।
मन और इन्द्रियां : मन इन्द्रियों के द्वारा विषयों की ओर भागता है। इन्द्रियां भोग के साधन मात्र है। कौन है जो इन्द्रियों के माध्यम से देखता, सूंघता, सुनता है ? उत्तर में उपनिषद्कार लिखता है कि शरीर में स्थित आत्मा मन के साधन के माध्यम से इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण करता है। जो व्यक्ति आत्मा के स्वरूप को समझ लेता है वह इन्द्रियों के वश में नहीं रहता अपितु इन को वश में कर लेता है। अपनें अमृत स्वरूप को पहचान कर वह आध्यात्मिक स्तर पर जीने लग जाता है
"..धीरा: प्रेत्यस्मात् लोकात् अमृता भवन्ति" ब्रह्म का स्वरूप: चेतन आत्मतत्व को आंख से नहीं देखा जा सकता, वाणी से बतलाया नहीं जा सकता । इन्द्रियों से बाहर के पदार्थों का बोध होता है। जिन सांसारिक पदार्थों का इन्द्रियां ज्ञान कराती हैं, आत्मा उन्हीं की पूजा(प्रेम) करता रहता है। ऋषि का कथन है कि वह संसार ब्रह्म नहीं है। शरीर इन्द्रियों का निर्माता संसार का आधार कण-कण में जो व्याप्त है वही ब्रह्म है। उस से महान कोई और नहीं है।
ब्रह्म के स्वरूप को पूर्ण रूप से कोई नहीं जानता। ज्ञानी जन भी उस के थोड़े से अंश को ही जानते हैं। जो व्यक्ति यह मानता है कि वह ब्रह्म को पूर्ण रूप से नहीं जानता, मानो वह ब्रह्म को जान गया है। इसके विपरीत जो घोषणा करता है कि मैं ब्रह्म को जान गया हूँ वह वस्तुतः उस को नहीं जानता।
ब्रह्म ज्ञान प्रतिबोध से सम्भव है। जब इन्द्रियों का संबंध अपने विषयों से अर्थात बाहर की ओर होता है तो जो ज्ञान होता है उसे बोध कहते है। जब इंद्रियां विषयों की ओर जाना बंद कर दे और व्यक्ति भीतर की ओर खोजता है तो मन की चंचलता समाप्त हो जाती है। भौतिक आकर्षण उसे विचलित नहीं करते, उस समय का आंतरिक अनुभव जो उसे धारणा, ध्यान, समाधि द्वारा प्राप्त होता है उसे प्रतिबोध कहते हैं । उसी से अमृत प्राप्त होता है।
🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
🚩‼️महाभारत शान्तिपर्व श्लोक ‼️🚩
🌷यथा हि गर्भिणी हित्वा स्वं प्रियं मनसोऽनुगम।
गर्भस्य हितमाधत्ते तथा राजाप्यसंशयम्।।
💐राजा को गर्भिणी के समान बर्तना चाहिए।जिस प्रकार गर्भिणी अपना हित त्याग गर्भ की रक्षा करती है उसी प्रकार राजा को अपना हित त्याग सदा प्रजा के हित का ही ध्यान रखना चाहिए।
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
==============
🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, कार्तिक - मासे, शुक्ल पक्षे , सप्तम्यां
तिथौ, उत्तराषाढ
नक्षत्रे, शुक्रवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know