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दिनांक - -०७ नवम्बर २०२४ ईस्वी

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷



दिनांक  - -०७ नवम्बर २०२४ ईस्वी


दिन  - - गुरुवार 


  🌓 तिथि -- षष्ठी ( २४:३४ तक तत्पश्चात  सप्तमी )


🪐 नक्षत्र - - पूर्वाषाढ ( ११:४७ तक तत्पश्चात  उत्तराषाढ )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  कार्तिक 

ऋतु  - - हेमन्त 

सूर्य  - -  दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:३८ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:३२ पर 

 🌓चन्द्रोदय  --  ११:५१ पर 

 🌓 चन्द्रास्त  - - २२:०९ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


  🔥श्वास प्रश्वास की गति विच्छेद को प्राणायाम कहते है ।

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   योग की दिशा में अग्रसर होने वाले साधक को प्राणायाम करना अनिवार्य है । योग के आठ अंग में चौथा अंग प्राणायाम है । जिस साधक को प्रभु दर्शन की अभिलाषा है वह प्राणायाम अवश्य करे ।


   प्राणायाम करने से चित्त शीघ्र चंचल रहित, शांत और एकाग्र हो जाता है । मनु महाराज के शब्दो में धौकनी द्वारा तपाने से जैसे धातुओं का मल दूर होता है, उसी प्रकार प्राणों के निग्रह से इंद्रियों का दोष दूर हो जाते है ।

जो साधक प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करता है उनकी स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है । वह बलवान, पराक्रमी और जितेंद्रिय हो जाता है । प्राणायाम बुद्धि को प्रतिभाशाली, मेघावी और गूढ़ विषयों को सरलता से पकड़नेवाली बना देता है । प्राणायाम साधक के मन को शुद्ध करके उसे चिंतन के योग्य बना देता है ।


   प्राण ही जीवन है । प्राणशक्ति से ही मनुष्य जीता है । प्राणायाम करनेवाला व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि वासनाओं को जलाकर स्वस्थ एवम् दीर्घ आयु को प्राप्त करता है ।


   प्राणायाम भूख को बढ़ाता है, वाणी की मिठास बढ़ाता है । शरीर में लकवा, बी.पी., हायपेटेंशन आदि रोग मिटाता है । वह मन, शरीर और इंद्रियों के विकारों को समाप्त कर देता है । जैसे व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ रहता है, उसी प्रकार प्राणायाम करने से प्राणमय कोश और अन्नमय कोश दोनों स्वस्थ रहते है ।


  प्राणायाम करने से शरीर को स्वास्थ्य लाभ अवश्य होता है, किन्तु स्वास्थ्य लाभ करना प्राणायाम का मुख्य लक्ष्य नहीं है । प्राणायाम को उपनिषदो में मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है । अशुद्धि का क्षय और शुद्धि का उदय प्राणायाम से होता है ।


  योग दर्शन कहता है -

"श्वास प्रश्वास्योर्गति विच्छेद: प्राणायाम:"

   आसन का अभ्यास हो जाने पर, श्वास और प्रश्वास की गति को रोकने (विच्छेद) का नाम प्राणायाम है ।

स्वामी दयानन्द सरस्वती के शब्दो में -

जो वस्तु बाहर से भीतर को आता है, उसको श्वास कहते हैं । इसके विपरित जो वायु भीतर से बाहर को निकलता है, उसे प्रश्वास कहते हैं । इन दोनों के विचार पूर्वक (इच्छानुसार) आने - जाने और यथेच्छ रोक देने को प्राणायाम कहते हैं ।  (ऋग्वेददादिभाष्य भूमिका - उपासना प्रकरण)


  प्राणायाम मुख्यत: चार है - पूरक, रेचक, कुंभक और बाह्याभ्यांतर आक्षेपी। 

फेफड़ों की हवा बाहर खाली करने का नाम रेचक है । बाहर से फेफड़ों में हवा भरने का नाम पूरक है । श्वास न लेना, न फेकना, ऐसी सहज अवस्था में जहां के तहां रोक रखना कुंभक (स्तंभ वृत्ति) है ।

जब श्वास भीतर से बाहर आवे, तब बाहर ही रोकता रहे और जब बाहर से भीतर को जावे तब उसको भीतर ही थोड़ा - थोड़ा रोकता रहे - इसे ही बाह्याभ्यांतरक्षेपी प्राणायाम कहते है । यह प्राणायाम प्रारंभिक अभ्यासी के लिए निषेध है ।


  प्राणायाम करने से प्रकाश के उपर का पड़ा हुआ आवरण धीरे धीरे हटने लगता है ।अन्तःकरण निर्मल होने लगता है और आत्मा में उपस्थित परमात्मा का दिव्य प्रकाश प्रगट होने लगता है । जो साधक प्राणायाम करेगा उसका मन निश्चय से प्रभु के ध्यान में भली प्रकार लगेगा ।


  प्राणायाम का अभ्यास करनेवाला स्वाभाविक रूप से सांस भीतर ले जाता है, बाहर निकालता है और जब चाहे रोक रखता है । इस काम के लिए उसे अपने अंगूठे या तर्जनी उस अंगुली से दबाना या थामना नहीं चाहिए । स्वामी दयानंद ने अपने लेखों में प्राणायाम के समय नाक को अंगुलियों से थामना नहीं चाहिए ऐसा स्पष्ट संकेत किया है ।


   योग दर्शन १/३४ अनुसार प्राणों को बलपूर्वक बाहर निकालने और रोक रखने से चित्त की चंचलता मिटती है, फलस्वरूप  अन्तःकरण में समाधि साधने में सहायता मिलती है ।


   "प्राणों के साथ खेलना विषैले सांप के साथ खेलना समान है" -  अतः किसी भी समर्थ मार्गदर्शक अनुसार सीखकर नियमित करना चाहिए ।

जहां शुद्ध वायु का आवागमन हो, खुला स्थान हो, वहां करना चाहिए ।

   वस्त्र ढीले, शुभ्र, सुतराऊ धारण करना चाहिए।

जहां वृक्ष, वनस्पति, फूल पौधे हो, स्थान एकांत और पर्यावरण के बीच हो, जहां हलकी सूर्य की सुखद किरणों की विद्यमानता हो वहां प्राणायाम करना उत्तम है । यह क्रिया खाली पेट करनी चाहिए ।

जो शरीर से अस्वस्थ है वह प्राणायाम न करे ।

साधक को अपने सामर्थ्य अनुसार प्राणायाम करना चाहिए । कमसे कम वह ३ करे और अधिक से अधिक २१ करे ।  

ऋतु अनुकूल तथा अपनी प्रकृति अनुसार प्राणायाम करना चाहिए । प्राणायाम सतर्क और सावधानी से नियमित करने से बहुत अधिक लाभ प्राप्त होते है । इस क्रिया में कभी अपने प्राण पर हठ नही करना चाहिए। । हठ योग का यहां निषेध है ।


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 🚩‼️आज का वेद मन्त्र,‼️🚩


🌷ओ३म् आयुर्मे पाहि प्राणं मे पाह्यपानं मे पाहि व्यानं मे पाहि चक्षुर्मे पाहि श्रोत्रं मे पाहि वाचं मे पिन्व मनो मे जिन्वात्मानं मे पाहि ज्योतिर्मे यच्छ॥ यजुर्वेद १४-१७॥


   💐हे प्रभु, मैं आपसे अपने जीवन की रक्षा की प्रार्थना करता हूं। आप मेरी तीनों प्राण शक्तियों  -प्राण, अपान और वयान को सुरक्षित और सशक्त करें। प्राण दीर्घायु के लिए, अपान रोग निरोधक क्षमता के लिए और वयान समस्त शरीर को ऊर्जा प्रसारित करने के लिए। मेरी आंखें बुरा ना देखें। कान बुरा न सुनें।  मेरी वाणी को मधुर और  सत् शब्दों से भर दो। मेरी चेतन आत्मा, जो आप हैं, को सुरक्षित कर दो। हे ईश्वर, मुझे ज्ञान का प्रकाश दो, जो मैं ये सब समझ सकूं। 


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, कार्तिक - मासे, शुक्ल पक्षे , षष्ठम्यां

 तिथौ, पूर्वाषाढ 

 नक्षत्रे, गुरुवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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