*🫢 आखिर क्यों•••••❓❓❓❓*
*वेद कहता है कि पहले शुक्ल पक्ष और उसके बाद कृष्ण पक्ष होकर चान्द्र मास बनता है । पौराणिक पञ्चाङ्ग पहले कृष्ण पक्ष लेते हैं और उसके बाद शुक्ल पक्ष के साथ चान्द्र मास पूरा करते हैं । आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है ।* ❓❓❓❓🫢
*वेद कहता है कि नक्षत्र २८ होते हैं । पौराणिक, पञ्चाङ्गों में २७ नक्षत्रों का ही विस्तार स्वीकार करते हैं। आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है ।* ❓❓❓❓🫢
*वेद कहता है कि ऋतुवें सूर्य से ही सम्भव होती हैं । यह बात प्रत्यक्ष से भी प्रमाणित है । पौराणिक पञ्चाङ्ग धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु जैसे ( महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के शब्दों में कपोल कल्पित ग्रन्थ - सत्यार्थ प्रकाश तृतीय समुल्लास ) ग्रन्थों के द्वारा मान्य "चान्द्र ऋतुवें भी होती हैं" के मार्गदर्शन पर बनते हैं। आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है।* ❓❓❓❓🫢
*वेद कहता है कि राशियां (प्रधियाँ ) क्रान्तिवृत्त के भाग होते हैं किन्तु पौराणिक पञ्चाङ्ग तारा समूहों से बनी (कल्पित) भेड़, बैल मछली आदि जैसी आकृति परक राशियां (जो भारत की भी नहीं हैं) मानकर पञ्चाङ्ग बनाते हैं। आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है।*❓❓❓❓🫢
*वेद कहता है कि ऋतुवें परस्पर ९० -९० अंशों के प्रखण्डों पर बन रहे सम्पातों और अयनों से नियमित होती हैं। पौराणिक पञ्चाङ्गों का इस सत्य से कोई लेना देना ही नहीं है। आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है।*❓❓❓❓🫢
*कल तक की बात कुछ और थी। उनके पास अपना वैदिक पञ्चाङ्ग था ही नहीं। आश्चर्य ये है कि उनके पास आज अपना वैदिक पञ्चाङ्ग होते हुए भी, वेद की प्राथमिकता वाला हमारा वैदिक समाज उन पौराणिक पञ्चाङ्गों पर ही चलता है।*❓❓❓❓🫢
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