🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - ०३ दिसम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - मंगलवार
🌒 तिथि -- द्वितीया ( १३:०९ तक तत्पश्चात तृतीया )
🪐 नक्षत्र - - मूल ( १६:४२ तक तत्पश्चात पूर्वाषाढ )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५८ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर
🌒चन्द्रोदय -- ८:५५ पर
🌒 चन्द्रास्त - - १९:०१ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ ओ३म् ‼️🚩
🔥त्यागपूर्वक भोग !!!
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यजुर्वेद के ४० वे अध्याय के प्रथम मंत्र का अश " तेन त्यक्तेन भुंजीथा " ईश्वर हम सब मनुष्यों को त्यागपूर्वक भोग करने का आदेश देता है । सुनने और देखने में त्याग और भोग दोनों विपरीतधर्मी प्रतीत होते हैं ।सामान्य मनुष्य यही सोचता है कि यदि किसी साधन ,सुविधा या वस्तु का भोग ही कर लिया तो उसका त्याग कैसे सम्भव है और यदि त्याग कर दिया तो तो भोग कैसे कर सकते हैं ।परन्तु यदि चिंतन करे तो यह स्पष्ट हो जाता है कि, ना भोगने का नाम त्याग नही है अपितु भोग से ना चिपटने, भोग्य पदार्थों में अनासक्ति, भोग्य पदार्थों के छोडने का नाम ही त्याग है ।
जगत के उपयोग में त्यागभाव धर्म का मुख्य अंग है ।त्याग के बिना लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव ही नही है ।संसार के समस्त अधिकार सेवा व त्याग से प्राप्त होते हैं ।मनुष्य का जीवन सदा देने के लिए होता है लेने के लिए नही ।जैसे बादल ऊंचाई को पाकर सबके उपकार के लिए बरसते हैं । वैसे ही मनुष्य भी अपने जीवन में ऊपर उठकर दूसरों का उपकार किया करें ।
खुशी का सबसे बड़ा यही रहस्य त्याग की भावना है ।खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि आप दुसरे को क्या दे सकते है? त्याग के बिना न तो ईश्वर की प्रेरणा होती हैं और न ही प्रार्थना ।त्याग के समान कोई सुख नही है।इसलिए मनुष्य को एक साधक के रूप में ईश्वर प्रदत्त साधनों का उपयोग, उपभोग त्यागपूर्वक करते हुए अपने लक्ष्य साध्य प्राप्ति के लिए करना चाहिए ।
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🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🕉️🚩
🌷ओ३म् सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव ।हत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु (यजुर्वेद ३४|६|)
💐अर्थ :- हें सर्वान्तर्यामिन्! जो मन रस्सी से घोड़ो के समान अथवा घोड़ो के नियन्ता सारथी के तुल्य लोगों को अत्यन्त इधर-उधर ले जाता है, वह मेरा मन सब इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोक कर धर्म- पथ में सदा चलाया करे।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल पक्षे,द्वितीयायां
तिथौ,
मूल नक्षत्रे, मंगलवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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