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प्रलयावस्था में सब जीव कहाँ रहते

 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*



*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक  - - १३ जनवरी  २०२५ ईस्वी 


दिन  - - सोमवार 


  🌕 तिथि -- पूर्णिमा ( २७:३६ तक तत्पश्चात  प्रतिपदा )


🪐 नक्षत्र - - आर्द्रा ( १०:३८ तक तत्पश्चात  पुनर्वसु )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  पौष 

ऋतु - - हेमन्त 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:१५ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:४५ पर 

 🌕 चन्द्रोदय  --  १७:०४ पर 

  🌕चन्द्रास्त नही होगा


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩*


 🔥 प्रश्न  :- प्रलयावस्था में सब जीव कहाँ रहते हैं  ?

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    उत्तर  :- ऋग्वेद के इस मंत्र में आपका ही प्रश्न है और इसका उत्तर भी।


   *ओ३म् अमी ये देवा: स्थन त्रिष्वा रोचने दिव:।*

*कद् व ऋतं कदनृतं क्व प्रजा व आहुतिर्वित्तं मे अस्य रोदसी।।*


   भावार्थ  :- प्रश्न  - जब सब लोकों की आहुति अर्थात् प्रलय होती है तब कार्य- कारण और जीव कहाँ रहते है? उत्तर  - सर्वव्यापी ईश्वर और आकाश में कारणरूप रूप से सब जगत् और अच्छी गाढ़ी निद्रा में सोते हुए के समान जीव रहते है। एक-एक सूर्य के प्रकाश और आकर्षण के विषय में जितने लोक है , उन सबको ईश्वर ने बनाया और धारण कर रहा है यह जानना चाहिए।


      प्रलय का लम्बा काल ( ४अरब ३२ करोड़ वर्ष  )सब जीवों के लिए समान नहीं है।जैसे गाढ़ निद्रा में सोए हुए व्यक्ति को समय के परिमाण का भान नही रहता, उसी तरह बद्ध जीवों को भी सुषुप्ति - अवस्था में रहने से प्रलय का भान नही होता। प्रन्तु मुक्त जीवात्माएं ज्ञान सहित मोक्ष के आनन्द को भोगती है , और बद्ध जीव ज्ञान रहित गाढ़ निद्रा के आनन्द को भोगा करती है । जिस प्रकार क्रमश: जगत् उत्पन्न होता है उसी प्रकार क्रमश: प्रलय को प्राप्त होता है; ईश्वर सदा एकरस रहता है। 


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*🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩*


*🌷 ओ३म् ये त्रिषप्ता: परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रत:।*

*वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वोऽअद्य दधातु मे । ( अथर्ववेद)*


💐जो इकीस तत्व ( ३×७=२१) सम्पूर्ण सृष्टि के विविध रूपों वाले पदार्थों को धारण करते हैं, चराचर आदि सबका धारक, सर्वव्यापक, प्रजापति परमेश्वर उनके बलों को आज मेरे लिए प्रदान करे, मेरे भीतर धारण करे ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, शुक्ल पक्षे, पूर्णियायां

 तिथौ, 

  आर्द्रा नक्षत्रे,सोमवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


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