*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*
दिनांक - - १५ जनवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - बुधवार
🌖 तिथि -- द्वितीया ( २७:२३ तक तत्पश्चात तृतीया )
🪐 नक्षत्र - - पुष्य ( १०:२८ तक तत्पश्चात आश्लेषा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - माघ
ऋतु - - शिशिर
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:१५ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:४६ पर
🌖 चन्द्रोदय -- १९:१२ पर
🌖 चन्द्रास्त - - ८:२५ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🔥जीवन का उद्देश्य ।*
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क्यों हमने जन्म लिया ? आनंद भोग, क्या सिर्फ इसलिए ? इस जीवन के बाद हमारा क्या होगा ? भिन्न-२ मतवालो की भिन्न-२ मान्यताए हैं । किसी की मान्यता में हमने इसलिए जन्म लिया हैं के हम स्वर्ग में प्रवेश पाने को अपनी योग्यता सिद्ध कर सके । स्वर्ग कई सारे मत वाले लोगो के लिए आदर्श स्थान हैं बहुत से हिंदू भाइयो के लिए ऊपर चार धाम हैं गोकुल,शिवलोक, वैकुण्ठ, साकेत लोक तो हमारे मुस्लिम भाई ज़न्नत मानते हैं।
पर हर कोई सिर्फ अपने लाभ सुख की कल्पना ही कर्ता हैं कभी ये नहीं सोचता के आदर्श स्थान तो पृथ्वी पर भी बना सकते हैं । क्या दुर्लभ हैं यहाँ ? आखिर इस शरीर का क्या प्रयोजन हैं । आखिर इस तरह की कल्पित जगह को तो हम इस शरीर में यहाँ भी भोग ही करने में सक्षम हैं । इस शरीर का उद्देश्य कुछ ऐसा विशेष हैं जो सिर्फ इसी शरीर में हो सकता हैं । वो हैं ब्रह्म साक्षात्कार । इस शरीर रूपी अयोध्या में परमात्मा निवास करता हैं जब हम बाहरी विषयों से दूर होते हैं तो उसको निकट महसूस करते हैं । सोने के बाद कहते हैं के बड़ा आनंद आया । ये आनंद आत्मा अनुभव करती हैं क्यों की शरीर तो सो रहा होता हैं पर आत्मा सदैव जाग्रत रहती हैं जीतनी गहरी निंद्रा होती हैं हम बाहरी विषयों से उतना ही दूर होते हैं हम स्वं को उर्जा से भरपूर पाते हैं यदि बिना स्वप्नों की निंद्रा आती हैं
पर क्या कोई और तरीका हैं जिस से हम उस परमात्मा से संपर्क कर सके उसके संपर्क को महसूस कर सके । हां हैं वो हैं योग का माध्यम जिस से हम उस परमात्मा से जुड सकते हैं । आप कहेंगे तो क्या अभी नहीं जुड़े ? जुड़े हैं पर हम ही उसे अनुभव नहीं कर पाते । उसका साक्षात्कार तो सिर्फ समाधि में होता हैं और समाधि इतनी सरल नहीं । बहुत तप करना होता हैं जब इतने शरीर छोड कर हम मनुष्य शरीर धारण कर सकते हैं तो क्या इस शरीर में रहते हुए हम उसके लिए तप नहीं कर सकते । बिलकुल कर सकते हैं । पहले आत्म साक्षात्कार फिर परमात्म साक्षात्कार । योग दर्शन हमें बताता हैं के योग करने के लिए हमें उसके ८ भागो को समझना और आचरण में लाना होगा
वे भाग हैं १.यम २.नियम ३.आसान ४.प्राणायाम ५.प्रत्याहार ६.धरना ७.ध्यान ८.समाधी
समाधी को विस्तार से समझने के लिए हमें योग दर्शन के चार पाद समझने होंगे जो हैं १. समाधिपाद २. साधनपाद ३. विभुतिपाद ४. कैवल्यपाद
जहा हम कैवल्यपाद पर पहुचे शरीर में आने का उद्देश्य पूर्ण हो जाता हैं । एक हिंदी गीतकार ने लिखा भी हैं “दिल की ऐ धडकन ठहर जा, मिल गई मंजिल मुझे” यहाँ हमारे लिए मंजिल वो परमात्मा ही हैं । जिज्ञासु पूछ सकते हैं के मोक्ष विषय का क्या ? मोक्ष तो तब मिलेगा जब समाधिस्त होकर शरीर छोडेंगे । शरीर में रहते तो परमात्मा के दर्शन ही हमारा उद्देश्य हैं । यह तो हमारे हाथ में हैं, तप करेंगे तो फल मिलेगा ही
ज्यादातर ऋषि कैवल्य पाद पर पहुच कर लक्ष्य पूर्ति कर के शरीर छोड देते हैं ताकि कही अधिक आयु में अधर्म ना हो जाए और वे ऋषि मोक्ष के आनंद में निश्चित समय के लिए चले जाते हैं । वैसे भी उद्देश्य की पूर्ति हो गई शरीर में रहने का अब कारण नहीं बनता । यह किसी ज़न्नत में संभव नहीं किसी स्वर्ग लोक में संभव नहीं । ऐसा कोई लोक हो या नहीं पर ध्यान अवस्था से समाधी तक पहुच कर उस परमात्मा के साक्षात्कार सिर्फ और सिर्फ इस मनुष्य शरीर में संभव हैं ।
तो मैं तो ऐसे हजारो स्वर्ग लोको को उस एक परब्रह्म परमात्मा के साक्षात्कार करने को छोड दू | और यह भी सत्य हैं की ऋषित्व तक पहुचना इतना सरल नहीं | सम्पूर्ण वैदिक साहित्य उसी ब्रह्म तक पहुचने की ही विधि बताता हैं । और ध्यानस्त होने के सिवा और कोई माध्यम नहीं उस तक पहुचने का । कई जन्म लग जाते हैं उसकी उपासना और तपस्या में । एक जन्म में शरीर छुट भी जाए तो दूसरे जन्म में हम थोड़े तप में उस अवस्था में सरलता से पहुच के वही से आगे प्रारंभ कर सकते हैं । पर आज जब हम सच्चे ब्रह्म से इतना दूर हो गए हैं उसके सच्चे स्वरुप को ही नहीं समझते हम अपने मानव योनी के लक्ष्य से कितना भटक गए हैं । तो आओ जाने उस परमात्मा को । वेद हमें जो बताते हैं उस एक पर ब्रह्म के गुण और स्वभाव के बारे में । किस प्रकार हर चरण की परीक्षा को सफल कर के हम उस तक पहुचे यह सभ कुछ हमारे ऋषियों ने आर्ष साहित्य में लिख रखा हैं । स्वाध्याय करिये , पालन करिये क्यों की आचरण रहित ज्ञान किसी काम का नहीं ।
उपनिषद जिस लक्ष्य की बात करते हैं वो यही तो हैं ।
*“उत्तिष्ठत। जाग्रत। प्राप्य वरान निबोधत।” कठोपनिषद १.३.१३*
उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति करो | ज्ञान, विज्ञान, भक्ति और आस्था सभी कुछ चाहिए । और ऐसा भी नहीं के भोग छोड दो, भोगो बिना उसमे लिप्त हुए । और लगे रहो इस आशा में के हम सफल होंगे निश्चित होंगे आज नहीं कल योग सिर्फ आसन और प्राणायाम का नाम नहीं यह तो सिर्फ चरण हैं योग तो आत्मा और परमात्मा का सम्प्रेषण में आना हैं । और उसके लीये आत्म शुद्धि के चरण हैं आसन और प्राणायाम इन्ही चरणों पर मत अटके रह जाइए आगे भी बढिए । ईश्वर उपासना यही हैं उसके ध्यान में मग्न हो कर उसको पाने को समाधिस्त हो जाना । वेद हमें हर आवश्यक ज्ञान उपलब्ध करते हैं । ऋषियो ने ब्राह्मण ग्रंथो में, उपनिषदों और शास्त्रों में सरल भाषा में हमें वह ज्ञान उपलब्ध कराया हैं । तप तो हमें ही करना हैं इसका कोई छोटा मार्ग नहीं ।
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*🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🕉️🚩*
*🌷ओ३म् इषे त्वोर्ज्जे त्वा वायव स्ध देवो व: सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमध्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाऽअयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघ शंसो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्ययजमानस्य पशून् पाहि।*
💐अर्थ -: हे सर्वरक्षक- सर्वव्यापक जगदीश! हम अन्नादि इष्ट पदार्थों के लिए तथा बलादि की प्राप्ति के लिये आपका आश्रय लेते है। हे परमदेव! हम वायु के सदृश पराक्रम वाले बने। हे सब जगत के उत्पादक देव! यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों के लिए हम सबको अच्छी प्रकार संयुक्त करो, हम यज्ञ-कर्म द्वारा अपने ऐश्वर्य को आगे बढाएं। यज्ञ -सम्पादन के लिए न मारने योग्य बछड़ो सहित गौवें प्राप्त करें , जो यक्ष्मादि रोगों से शून्य हो ।पापी,चोर,डाकू लूटेरे आदि हम पर राज्य न कर सकें , हमारी गौओं और भूमि के स्वामी न बनें । हम सदा प्रयत्नशील रहें कि जिससे सुख देने वाली पृथ्वी और गौ आदि सज्जन पुरुषौ के पास बढ़ती रहें । हे परमात्मा! यज्ञकर्त्ता- धर्मात्मा पुरुष के दोपाये और चौपाये जीवों की आप सदा रक्षा करों।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, कृष्ण पक्षे, द्वितीयायां
तिथौ,
पुष्य नक्षत्रे,बुधवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।
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