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अपने पुत्र और पुत्रियों को ब्रह्मचर्य, सदाचार व विद्या के द्वारा विद्वान, विदुषी, सुंदर और शीलयुक्त बनाने का पुनीत कर्तव्य प्रत्येक सद्गृहस्थ निभाए।

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - ०९ जनवरी  २०२५ ईस्वी 


दिन  - - गुरुवार 


  🌓 तिथि --  दशमी ( १२:२२ तक तत्पश्चात  एकादशी )


🪐 नक्षत्र - - भरणी ( १५:०७ तक तत्पश्चात  कृत्तिका )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  पौष 

ऋतु - - हेमन्त 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:१५ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:४१ पर 

 🌓 चन्द्रोदय  --  १३:२० पर 

  🌓चन्द्रास्त २७:३८ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


   🔥अपने पुत्र और पुत्रियों को ब्रह्मचर्य, सदाचार व विद्या के द्वारा विद्वान, विदुषी, सुंदर और शीलयुक्त बनाने का पुनीत कर्तव्य प्रत्येक सद्गृहस्थ निभाए।

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     परिवार की पाठशाला में व्यक्ति को सुसंस्कारों की शिक्षा मिलती है। समाज को गौरांवित करने वाले मणिमुक्तक भी इसी खदान में से निकलते हैं। व्यक्ति और समाज दो पहिए हैं जिनके सुसंचालन की धुरी  परिवार संस्था को ही माना जाता है। धुरी में गडबडी होने पर प्रगति रथ का आगे बढ सकना कठिन है। इस तथ्य को समझा जा सके तो व्यक्ति को समर्थ और समाज को परिष्कृत बनाने की ही तरह परिवारों को भी सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता समझी जा सकेगी। सुसंस्कृत परिवारों का हर सदस्य उसी छोटे घरोंदे में स्वर्गीय सुख-शांति और प्रगति की चेतनात्मक संपदा प्राप्त करता है।


     संतान के जन्म के पश्चात उसका समुचित पालन-पोषण, भोजन, वस्त्र, शिक्षा आदि की व्यवस्था करने का दायित्व भी सद्गृहस्थ पर ही है। केवल इतना ही नहीं, बच्चों का चरित्र निर्माण करना भी अभिभावकों का ही कर्तव्य है। इसे ठीक से न निभाया गया तो बच्चे अनेक दुर्गुणों से घिर जाते हैं और अपने लिए, परिवार के लिए तथा समाज के लिए अभिशाप सिद्ध होते हैं। उनको दुर्गुणों से बचाना और सदगुणों से अभ्यस्त करना भी उन्ही का कर्तव्य है। बच्चा जन्मजात कुछ भले बुरे संस्कार लेकर अवश्य आता है पर उनका विकसित अथवा नष्ट होना बहुत कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। बच्चों के मानसिक विकास का मुख्य आधार माता-पिता की मनोभूमि और घर का वातावरण ही होता है। यह भी एक रहस्यात्मक तथ्य है कि बालक गर्भ में आने के दिन से ही सीखना आरंभ करता है और पांच वर्ष की आयु तक अपनी मनोभूमि के निर्माण का लगभग  तीन चौथाई कार्य पूर्ण कर लेता है। इस अवधि में बच्चा बहुत संवेदनशील रहता है। ज्ञान-विज्ञान, लोक व्यवहार आदि की शिक्षा तो बाद में मिलती है पर स्वभाव, अहंकार, चरित्र, आस्थाएं आदि जिस आयु में सीखी जाती है वह गर्भ में प्रवेश करने वाले दिन से लेकर पांच वर्ष तक ही हैं।


     इसीलिए हमारे शास्त्रों ने गर्भाधान संस्कार को संस्कारों में पहला संस्कार माना है और गर्भ स्थापना की पूरी तैयारी का भी विधान किया है। पति-पत्नि दोनों को पहले से ही अपने दोष दुर्गुणों का परिष्कार करके आचरण, व्यवहार एवं संभाषण की समस्त गतिविधियां सुधार लेनी चाहिए। बाप का बीज और माता की जमीन दोनों का ही समान महत्व है संतान रूपी उपवन के निर्माण में। होनहार बच्चों की उत्पत्ति का मूल आधार यहीं से प्रारंभ होता है। अभिमन्यु का उदाहरण सर्वविदित ही है।


     बच्चे पैदा करना व्यक्तिगत क्रीडा-विनोद का विषय नहीं है। एक नए व्यक्ति के जन्म एवं उसके व्यक्तित्व को निर्मित करने का यह महान उत्तरदायित्व है। यदि हम इस कर्तव्य को भूलते हैं तो स्वयं उद्विग्न रहने वाले, परिवार को दुखी करने वाले और समाज में दुष्प्रवृत्तियां बढाने वाले राक्षसों को ही उत्पन्न करे़गे और अपने पाप से अपने और सबके लिए नरक का सृजन करेंगें ।


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 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️


   🌷 ओ३म् यो रेवान् यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्द्धनः । स नः सिषक्तु यस्तुरः।। ( यजुर्वेद ३\२९ )


   💐अर्थ  :-  जो इस संसार में धन है सो सब जगदीश्वर का ही है । मनुष्य लोग जैसी परमेश्वर की प्रार्थना करें, वैसा ही उनको पुरुषार्थ भी करना चाहिए । जैसे विद्या आदि धनवाला परमेश्वर है ऐसा विशेषण ईश्वर का कह वा सुनकर मनुष्य कृतकृत्य अर्थात् विद्या आदि धनवाला नहीं हो सकता, किन्तु अपने पुरुषार्थ से विद्या आदि धन की वृद्धि वा रक्षा निरन्तर करनी चाहिए जैसे परमेश्वर अविद्या आदि रोगों को दूर करनेवाला है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है कि आप भी अविद्या आदि रोगों को निरन्तर दूर करें । जैसे वह वस्तुओं को यथावत् जानता है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है की अपने सामर्थ्य के अनुसार सब पदार्थ-विद्याओं को यथावत् जानें जैसे वह सबकी पुष्टि को बढ़ाता है, वैसे मनुष्य को भी सबके पुष्टि आदि गुणों को निरन्तर बढ़ावें । जैसे वह अच्छे-अच्छे कार्यों को बनाने में शीघ्रता करता है, वैसे मनुष्य भी उत्तम-उत्तम कार्यों को त्वरा से करें और जैसे हम लोग उस परमेश्वर की उत्तम कर्मों के लिए प्रार्थना निरन्तर करते हैं, वैसे परमेश्वर भी हम सब मनुष्यों को उत्तम पुरुषार्थ से उत्तम-उत्तम गुण वा कर्मों के आचरण के साथ निरन्तर संयुक्त करें ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, शुक्ल पक्षे, दशम्यां

 तिथौ, 

  भरणी नक्षत्रे, गुरुवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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