वीर्यरक्षा के बिना ब्रह्मज्ञान सम्भव नही
वीर्यरक्षा के बिना ब्रह्मज्ञान सम्भव नहीं
वीर्य ईश्वरीय उर्जा का अनंत स्रोत है| वीर्यवान सांड को बांधा भी नहीं जा सकता| दास (बैल) बनानेकेलिए किसान सांड़को वीर्यहीन करदेताहै| वीर्यहीन होते ही वह बैल बन कर किसान के लिए अन्न पैदा करता है, जिसे किसान स्वयं खा जाता है और बैल को भूसा खिलाता है| दास बनानेहेतु पैगम्बरोंने बलात्कार, खतना व कुमारी मरियम को मजहबसे जोड़दिया| वीर्यहीन व्यक्ति अपनी इन्द्रियों और शक्तिवान का दास ही बन सकता है, स्वतन्त्र नहीं रह सकता|
हम वीर्यहीन बनने के लिए तैयार नहीं हैं| विद्या, स्वतंत्रता और विवेक के लिए ईसाइयत और इस्लाम मजहबों में कोई स्थान नहीं है| कुरान २:३५ व बाइबल, उत्पत्ति २:१७| हम गायत्री मंत्र द्वारा ईश्वर से बुद्धि को सन्मार्ग पर ले जाने की प्रार्थना करते हैं| हमारी गीता मानव मात्र को उपासना की आजादी देती है| (गीता ७:२१), हम जेहोवा और अल्लाह के उपासना की दासता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं| अजान व नमाज को पूजा मानने के लिए तैयार नहीं हैं| मैं आतताई अल्लाह व जेहोवा को भगवान मानने के लिए तैयार नहीं हूँ और न अजान व नमाज को पूजा मानता हूँ|
हम बेटी (बाइबल, १, कोरिन्थिंस ७:३६) से विवाह कराने वाले ईसा व पुत्रवधू (कुरान, ३३:३७-३८) से निकाह कराने वाले अल्लाह और धरती के किसी नारी के बलात्कार के बदले स्वर्ग देने वाले (बाइबल, याशयाह १३:१६) व (कुरान २३:६) जेहोवा और अल्लाह को ईश्वर मामने के लिए तैयार नहीं हैं|
जड़ (निर्जीव) और चेतन परमाणु उर्जा
जिसे आज के वैज्ञानिक परमाणु कहते हैं| उसे हमारे पूर्वज ब्रह्म कहते थे| आज की परमाणु ऊर्जा विज्ञान निर्जीव परमाणु ऊर्जा विज्ञान है| जब कि हमारे पूर्वजों का विज्ञान जैविक परमाणुओं के भेदन पर आधारित था| हमारा ज्ञान और विज्ञान आज के जड़ परमाणु उर्जा से अत्यधिक विकसित था| आज की परमाणु उर्जा जड़ परमाणुओं के भेदन पर आश्रित है| लेकिन महाभारत काल में अश्वश्थामा के ब्रह्मास्त्र के संधान और लक्ष्य भेदन के प्रकरण से स्पष्ट होता है कि ब्रह्मास्त्र स्वचालित नहीं थे| एक बार छोड़ देने के बाद भी उनकी दिशा और लक्ष्य भेदन को नियंत्रित किया जा सकता था| इतना ही नहीं लक्ष्य पर वार कर ब्रह्मास्त्र छोड़ने वाले के पास वापस भी आ जाते थे| उनके मलबों को ठिकाने लगाने की समस्या नहीं थी| विकिरण से होने वाली हानि की समस्या नहीं थी|
भिखारियों और चोरों का जनक मैकाले!
जो उपलब्धि इस्लाम ई० स० ७१२ से ई० स० १८३५ तक अर्जित न कर सका, उससे अधिक ईसाइयत ने मात्र ई० स० १८३५ से ई० स० १९०५ के बीच अर्जित कर लिया| सोनिया वैदिक सनातन संस्कृति को मिटाने की दौड़ में सबसे आगे है| मात्र दसाध वर्षों की अवधि में सोनिया ने वैदिक सनातन संस्कृति की जड़ें ही नष्ट कर दी हैं| कुमारी माताओं को सम्मानित किया जा चुका है| लव जेहाद, बेटी व पुत्रवधू से विवाह, सहजीवन व समलैंगिक मैथुन, सगोत्रीय विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई है| बारमें दारूपीने वाली बालाओं कासम्मान हो रहा है! विवाह सम्बन्ध अब बेमानी हो चुके हैं| स्कूलों में यौन शिक्षा लागू हो गई है| अब सोनिया टाटा, बिड़ला, अम्बानी आदि को लूटने के लिए एफडीआई लागू कर चुकी है|
Dharmaraj (Deity of death) says to King Bhagirath- "Bhopal, who puts obstacles in the work of people going to the bath or worship, it is called Brahmagati, which is engaged in condemnation and praise and which is false. It is said in the speech, it is called Brahmahathara.
The one who approves of unrighteousness seems to be guilty of brahmata. Who puts others in jeopardy, cheats and stays in the show, it is called Brahmahathara.
Bhupate! Listen to the description of the sins which are unmanifest. They are all sinful and sinful to hell. There may be some way to remedy the sins of Brahma and other sins, but whoever knows Brahmin, who has known Brahma, hates such a great man, his sins are never saved.
Nareshwar! Those who are treacherous and ungrateful, they will never be saved. Those whose thoughts are in condemnation of the Vedas and those who condemn Bhagatkathvarta etc., their salvation is not available anywhere in the world and in hereafter.
Bhupate! Those who listen respectfully to the condemnation of great men, many insects of iron are being punched in the ears of such people. After that, the highly heated oil is filled in those holes of the ears. Then they fall into hell.
Those who blame others or cheat others, they have to eat the iron content of a thousand years. Their tongue is tormented by extremely horrible sensations and they live in a hell called Niruchavhas, which is very fierce, till half-life.
The sacrifice of reverence, the disappearance of religion, and the denunciation of the senses of men and the scriptures is said to be Mahatmukta.
Those who are ready to be bribe, bribery and arrogant in condemnation, they are said to be Mahapatiyak. Such people of Mahapati are living in an eternal age in every hell, and finally they are asses to seven births after coming to this Earth. After that, they are the body of the body full of wounds to sinful ten lives, then for a hundred years they have to be worm worm. Thereafter they are the serpent to twelve births. Rajan ! After this, they are deified animals for one thousand births. For the next hundred years, the zodiac (tree) etc. is born in the vagina. Then they get the body of Godha (Goh). Then, till seven lives, they are sinful people. After this, his ill-health is up to sixteen births. Then, for two lifetimes, they are poor, sick, and forever. This has to be hellfire again.
Rajan! Listen to the fruit of his sin, which gives false testimony. As long as the State of the Fourteen Indra ends, the entire torture continues to suffer. In this person, his sons and grandsons are also destroyed, and in this world, he enjoys Raksha and other hell respectively. "
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