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जब दुनीया आपकी शत्रु है, तो आप स्वयं के मित्र बने।


जब दुनीया आपकी शत्रु है, तो आप स्वयं के मित्र बने।   

       आपको इसका ज्ञान होगया है, कि यह दुनिया आपकी शत्रु है, तो आपको अपना मित्र बनना चाहिए भले ही दुनिया लाख कहें की आपको एक अच्छा आदमी दुनिया के लिए बनना चाहिए, आपको दुनिया के लिए अच्छा आदमी नहीं बनना है, आपको अपने लिए एक अच्छा आदमी बनना चाहिए।

      जब आप को यह ज्ञात हो जाता है, कि लोग चरित्रहिन बन रहें हैं, और वह चरीत्रहिनता में रुची ले रहें हैं तो आप लाख चाहकर भी उनको चरित्रवान  नहीं बना सकते हैं, लोगों को अपनी चरीत्रहिनता में जब कोई दोष नहीं दिख रहा है तो आप उनको यह नहीं समझा सकते हैं कि वह चरीत्रहिन है, उनको अपनी चरीत्र हीनता को रोकना चाहिए। यह तो उनकी बर्बादी का मार्ग उन्होने बना लिए है, और इस मार्ग पर निरंतर बड़े वेग से यात्रा कर रहें हैं, यह कोई एक आदमी नहीं है, यह तो एक बहुत बड़ा समुह है, जो इसका पक्षधर है, और इसको सही सिद्ध करता है। यहां एक बात जो ध्यान देने हैं कि वह आप को भी भ्रष्ट करने के लिए आपको उत्तेजित कर रहें हैं, वह चाहते हैं कि आप भी उनके साथ चरित्रहिन बन जाए, यहां पर आपको स्वयं को बचाना ही बहुत बड़ी बहादुरी का कार्य है, जहां पर एक बड़ा मानव समुह डुब रहा हो, वहां पर उनके बीच में रह कर यदि आप स्वयं को डुबनेे से बचा ले रहें हैं, तो यह आपकी बड़ी बहादुरी है। 

     आज हमारा समाज किस तरफ गति कर रहा है, इसका साक्षात प्रमाण हमें मिल रहा है, इस समाज को हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, हमारे समाज से ही ऐसे कुछ बहादूर लोगों को बाहर आना होगा, और इसके खिलाफ आवाज उठाना होगा, यदि उस समाज से कोई व्यक्ति बाहर निकल कर उसका बिरोध नहीं करता है, और आप उस समाज का बिरोध करते हैं, जिस समाज में अन्यायी और व्यभिचारी लोग रहते हैं तो वह आपके खिलाफ हो जाएगे। और आपको ही वह समाप्त करने का सडयन्त्र तैयार करने लगेंगे, इस स्थिति में आपके पास दो रास्ते हैं, पहला रास्ता जो बहुत अधिक खतरनाक है, जिसमें लोगों को जागरूक करने का है, जहां पर कोई इस विषय पर ध्यना नहीं देता है, दूसरा रास्ता आसान है, आप स्वयं को ऐसे लोगों से बचाइये, या फिर आप उस समाज को छोड़ कर कहीं और चले जाएं यदि आपके लिए यह संभव नहीं है, की आप उस स्थान को छोड़ सकते हैं, तो आपको उनके खीलाफ कुछ भी नहीं बोलना चहिए, और आपको, आपको वह सब जो हो रहा है, उसको नजर अंदाज करना चहिए। यह विषय तो बहुत ही दुःख और क्लेश को देने वाला है, और इज्जतदार सम्मानित व्यक्ति लिए यह असहनिय हैं, लेकिन आपको इस दुःख को सहना होगा, क्योंकि जहां स्थिति आपके विपरीत हैं, वहां पर कर ही क्या सकते हैं? सिवाय स्वयं की रक्षा के।

     एक आदमी को मैं जानता हूं, जो स्वयं एक साधु की तरह हैं, लेकिन उसका परिवार जो उसके रीस्तेदार कहे जाते हैं, वह सब व्यभिचारी हो चुके हैं, वह अपने परीवार को सुधार नहीं सकता है, तो वह किसी और क्या सुधार सकता है? यह साधारण सा प्रश्न उठता है, यह उसके लिए चुनौती है, वह कहता हैं, इनको समझा कर मैं हार चुका हूं, लेकिन यह लोग मेरे मना करने पर भी वहीं व्यभिचार का ही कार्य कर रहें हैं, मैं क्या कर सकता हूं, या तो मैं इनको मार दूं जान से, लेकिन यह कार्य भी उसके लिए आसान नहीं हैं, कोई कैसे अपने पिता और अपने भाई की पत्नी की हत्या कर सकता है, जो व्यभिचारी हो गए हैं, वह लोग उस आदमी के खीलाफ सडयंन्त्र और योजना बनाते हैं, की वह उनके साथ इसके लिए लड़ाई झगड़ा करें, जिससे वह उनके साथ उलझ जाए, और जो उसके जीवन में शांति है, और वह अपना कार्य आसानी से कर रहा है, उसका कार्य रूक जाए। और उसके जीवन में अवरोध उत्पन्न हो जाए, और वह उनके व्यभिचार में स्वयं संलिप्त हो जाए। 

    मैंने जो उस आदमी से कहा वही आप से कहता हूं, मैंने कहा तुम अपना कार्य करो, उनके जो करना हैं, करने दो वह तुम्हें अपने मार्ग से बीचलित करने के लिए यह सब कर रहें हैं, तुम्हें विचलित नहीं होना है, जो जैसा करता है, उसको उसके किए का फल अवश्य ही मिलता है, यब तुम समझते हो की तुम उनको नियन्त्रित नहींं कर सकते हो, तो उनके नियंत्रित करने का प्रयास करना ही बेकार है, वह लोग जैसा कर रहें हैं, वह स्वयं अपने ही जाल में फंस जाएगे, तुमको इंतजार करना है।    

     जिनको बुरा लगता है, की यह कार्य गलत है, तो उनको सामने आना चाहिए और जब कुछ लोग सामने आते हैं, और वह आपका साथ देते हैं, तो तुम्हें उनको नियंत्रित करने का कार्य करना चाहिए, यदि लोग ऐसा नहीं करते हैं, वह केवल तुम्हें इसके लिए भड़काते हैं, तो तुम्हें इसके लिए भड़कना नहीं चाहिए, यदि तुम अकेले ही उनको नियंत्रित करने का कार्य शुरु करते हो। तो वह तुम पर हाबी हो जाएगें, क्योंकि उनकी संख्या ज्यादा है, और तुम स्वयं अकेले हो, वह सब यहीं चाहते हैं, कि तुम अकेले ही अपने परिवार के साथ लड़ों और लड़ कर स्वयं को तबाह कर लो, इस तबाही से बचने के लिए तुम्हें संयम और संतुलित मन से कार्य करना होगा। 

     क्योंकि लोग जानते हैं, कि तुम बहुत जल्दी आवेश में आजे हो और आवेश में आकर तुम अपने पिता से लड़ाई करते हो, और सभी लोग तु्म्हारे पिता के साथ होते हैं, तुम अकेले पड़ जाते हो, और लोग तुमको ही हर बार गलत कहते हैं। यहीं कार्य तुम्हें बार बार करने से बचना चाहिए। रही बात हत्या करने की यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि हत्या करने के बाद तुम स्वयं अकेले फंसोगें और तुमको जेल हो जाएगी, तुम्हारा कोई भी साथ देने वाला नहीं मिलेगा, और तुम्हे जेल में सड़ना होगा, और तुम्हारी संपत्ती का उपभोग वहींं व्यभिचारी लोग करेंगे, जो संपत्ती आज आपके कब्जे में हैं, वह भी आपके हाथ से चली जाएगी। इसलिए किसी भी स्थिति में हत्या करने के उद्योग में तुम्हारा उतरना ठीक नहीं है। 

     तुम्हें उनको उनकी व्यभिचारिता को करने की स्वतंत्रता को स्विकारना होगा, यहीं आज के समाज का और संसार का सत्य है, तुम्हारा किसी प्रकार का बिरोध करना वह तुम्हारे लिए ही नुकसान दायक होगा।

    जब हम किसी परिवार या किसी व्यक्ति या किसी समाज में फैलने वाले गलत कार्य को, उदाहरण के लिए चरीत्रहिनता अकेले नियंत्रित करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं, तो इसका मतलब है, की हम उसको बढ़ावा देने का करते हैं, जब यहीं कार्य एक बड़ा समुह करता है, तो गलत है, उस समुह को इस कार्य को रोकने के लिए बीरोध करना चाहिए, लेकिन जब एक बड़ा समुह इस कार्य को करता है, तो इस गलत अन्याय पूर्ण कार्य का ज्ञान होने पर भी कोई समझदार अकेला आदमी उनके खीलाफ बिद्रोह नहीं करेगा। ऐसा ही विद्रोह कार्य इसा मसीह ने किया वह मारे गए शुली पर चढ़ा कर, ऐसा कार्य महर्षि स्वामी दयानंद ने किया उस नन्हीबाई वेश्या के बिरोध में जिसने उदयपुर के राजा को अपने जाल में फंसा लिया था, जिसके विरोध में स्वामी दयानंद ने आवाज उठाई बदले में उनको जहर दे दिया गया, और वह मर गए। जिसके कारण उनका वेदों कार्य रूक गया। रजनीश ओशों को भी इसीलिए मार दिया, इसके लिए शरमद और मंशुर को भी हलाल कर दिया गया। हमारा सामाज ऐसे लोगों को बर्दास्त नहीं कर पाता है। उनको किसी ना किसी प्रकार के सडयन्त्र करके मार देता है। तुम भी वेदों की बात करते हो इसलिए तुम्हारे खिलाफ भी योजना बनाइ जा रही है। तुमको मारने की और तुमको क्रोधित करने की जिससे उनको एक बहाना मिल जाए, कि तुम पागल हो चुके हो, और तुम उनको परेशान करते हो, तुम उनको मारना चाहते हो, वह सब तुमको मार देंगे, और कहेंगे की तुम पागल हो चुके थे उल्टा सीधा अनाप सनाप  उनके खीलाफ समाज में दुश्प्रचार करते थे। भले ही तुम सत्य हो लेकिन तुम अपनी सत्यता को सिद्ध करने के लिए जिंदा ही नहीं रहोगे। इसलिए मेरे सुझाव यहीं है, की किसी भी शर्त पर आपकी प्रायोरिटि यह होनी चाहिए की आपको अपने दम पर इन वीरोधी समाज में जिन्दा रहना है, और आपको अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए।

   आपको समाज की दृष्टि में अच्छा नहीं बनना है, आपको समाज की दृष्टि में बुरा ही बनना है, क्योंकि समाज की दृष्टि में अच्छा बनने का मतलब है, कि आपको अपने व्यभिचारी पिता और अपने भाई की पत्नी की हत्या करनी होगी। जिसके बाद आपका जीवन किसी काम का नहीं होगा, आप एक हत्यारे होगें और जल की सलाखों के पीछे सड़ रहें होगें। 

  यदि आप इस गंदे व्यभिचार का सहयोग करने वाले समाज के लिए बुरे बनते हैं, अर्थात उनकी इच्छा के खीलाफ कार्य करते हैं, तो आप अपने कार्य को आसानी से कर सकते हैं, समाज यदि सही होता तो वह स्वयं इसका बिरोध करता, लेकिन वह आपसे कहता है, की आपके रीस्तेदार हैं, आपको उनको नियंत्रित करना चाहिए, यह समाज जो यह कहता है, कि ऐसा गलत कार्य हो रहा है, और यह कार्य सत्य है, इसको आप भी जानते है, लेकिन इस कार्य में वह आपकी किसी प्रकार से सहायता नहीं करता है, इसका मतलब सिधा सा है कि यह समाज आपके कंधे पर रह कर बंदुक को चला रहा है, और आपके वैदिक आंदोलन के बड़े कार्य को एक ऐसे निकृष्ट कार्य के साथ जोड़ देना चाहता है। जो कार्य किसी भी दृष्टि से समाज में जो श्रेष्ठ लोग हैं वहां ठीक नहीं समझा जाता है। 

   आपके वैदिक आंदोलन का कार्य बहुत ही उम्दा और अव्वल दर्जे का है, यह कार्य करने वाले इस पृथ्वी पर बड़ी मुश्किल से कोई एकाक व्यक्ति कभी कभार सदियों को उत्पन्न होता है, और आपने इस कार्य को शुरु कर दिया है, तो लोग आपके इस कार्य को बन्द करने के लिए पहले आपके परिवार को अर्थात आपके पिता को अपने भरोषे में लेकर उसको यह कार्य करने के लिए उकसाया और उसको फंसा दिया, वह अब समाज की दृष्टि में आ चुका है, कि उसका गलत संबंध अपनी बहु के साथ है, और उसकी बहु बहुत लोगों के साथ कामक्रिड़ा करती है, आपके परिवार में पहले ऐसी औरत को पहुंचाया गया जो बदनाम थी अर्थात बदचलन थी और उसका भरपुर उपयोग किया गया। यह बहुत बड़ी योजना आपके खिलाफ बड़े लंबे समय से चल रही है, इसमें आपको भी फंसाने का कार्य हो रहा है, क्योंकि लोगों को आपके बारे में आपके पिता के दुश्चरित्र के बारे में ज्ञात था, जब वह सब लोग आपको चरीत्रहिन बनाने में असफल होगए, तो वह आपके पिता की कमजोरी को जान कर उसके इस कार्य में आगे बढ़ने के लिए उकसाया और वह बुरी तरह से उनकी जाल में फंस चुका है। 

    और उन्होंने यह मुद्दा बना कर आपके सामने प्रस्तुत किया की तु्म्हारे परीवार में ही भ्रष्ट चरित्र लोग हैं, पहले उनको सुधारो बाद में तुम किसी और को सुधारने का प्रयास करना, क्योंकि लोगों को यह बात पहले से हि पता थी की तुम्हारी पिता ही तुम्हारे सबसे बड़े बिरोधी है, वहीं तुम्हें परास्त कर सकता है, क्योंकि जब समाज में कोई तुम्हें सदाचार और सत्य के मार्ग से विचलित करने मेंं असमर्थ सिद्ध हुए, तो उन्होंने यह समझा की इसको इसके पिता ने पराजित कर दिया है, इसलिए ही यह उनसे दूर दूर भाग रहा है।

     यह तुम्हारी कहानी सत्य को खोजन की और असत्य के खीलाफ आंदोलन करने की तुम्हारे पिता के साथ ही शुरु होती है, तुम्हें अपने पिता में दोष दिखाई देते हैं, जिससे तुम उनके खीलाफ हो जाते हैं, तुम उनको समाप्त करना नहीं चाहते थे, लेकिन वह हमेशा तुम्हें समाप्त करना चाहता था, लेकिन जब तुम उसके जाल से बाहर निकल गये। वह तुम्हें समाप्त नहीं कर सके, और तुम उससे दूर चले गए लेकिन जिस समाज से तुम्हारा संबंध जुड़ा वह समाज तुम्हारे पिता से भी अधिक दुश्चरित्र निकला जिसके कारण उसने भी तुम्हें समाप्त करने का प्रयाश किया। लेकिन वह सब भी तुमसे हार गए, और तुम उनको भी हरा कर वापिस अपने पिता के पास आगे, क्योंकि यह तुम्हारा पिता उतना अधिक खतरनाक नहीं था, यह खतरनाक था, लेकिन दोयम दर्जे का था। 

     जो हमारे देश के सबसे खतरनाक लोग हैं, जब वह तुम्हें मारने में असफल हो गए तो वह फिर तुम्हें तुम्हारे लोगों के द्वारा ही समाप्त करने की योजना बनाई, और वह आज भी इसी योजना पर कार्य कर रहें हैं। इस प्रकार से तुम्हें मारने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है, समस्या सिर्फ तुम्हारा परिवार ही नहीं है, तुम्हारे लिए आज यह दुनिया ही तुम्हारा शत्रु बन चुकी है, इस तरह से यदि आपको इस दुनिया में रहना है, और आपको इस बात का ज्ञान हो चुका है, कि यह दुनिया गलत है, और इसको आप स्वयं अकेले सही नहीं बना सकते हैं, इसमें स्वयं की रक्षा ही सबसे बड़ा कार्य आपका है, आपको स्वयं को बचाना चाहिए। यही आज के लिए सबसे जरूरी कार्य है।    

    इसलिए ही कहता हूं कि जब दुनिया आपकी हत्या की योजना बनाने में व्यस्त हो तो आपको अपने जीवन बचाने की योजना पर कार्य करना चाहिए।ना की दुनीया से बदला लेने की, क्योंकि आप स्वयं अकेले किसी प्रकार से दुनीया से बदला नहीं ले सकते हैं, यदि दुनिया से बदला लेना है, तो एक रास्ता है, वह रास्ता है, सत्यमार्ग पर चलने वाले और सदाचार के मार्ग पर चलने वाले लोगों को अपने पक्ष में करके उनके साथ मिल कर एक नई दुनीया को बनाने का जिसमें सदाचारी संयमी सदाचारी ही हो, और उनको साथ लेकर इस भ्रष्ट दुनीया के लोगों के साथ एक भयानक संग्राम करना चाहिए। एक बड़ी और सुदृढ़ योजना के साथ जिसमें आपकी वीजय निश्चित हो, यह संभव हैं, आज तक जितने भी युद्ध इस पृथ्वी पर हुए हैं वह दो पक्षों में हुए हैं, और दोनों पक्षों जीत उसकी ही हुई हैं, जिसकी शक्ति अधिक थी, जो कमजोर पक्ष था वह भले ही सदाचारी सत्यवादी इमानदार थे वह हार गए इस लिए उनको इस दुनीया के इतीहास में कोई स्थान नहीं दिया जाता है, दुनीया में जो जीत जाता है, उसके पक्ष में ही इतीहास लिखा जाता है। इसलिए ओशो कहते हैं यहां सत्य की जीत नहीं होती है, यहां पर जो जीत जाता है, वही सत्य है। राम ने रावण को हराने के लिए जंगली आदिवासियों की सेना इसलिए तैयार की, जब रावण उनकी पत्नी को चुरा कर ले गया, तो उनको पता था की वह जिस समाज से वह स्वयं आते हैं वहां उनका साथ देने वाला कोई नहीं मिलेगा, और उल्टा लोग उनका मजाक उड़ाएगे, इसलिए वह अपने स्वयं के भाई अयोध्या के राजा भरत से भी उन्होंने सहायता के लिए नहीं कहा। यहां आपका साथ आपके अपने नहीं देेगे, जो पराए हैं, वह शायद आपकी सत्यता और सदाचार पर मुग्ध हो कर आपका साथ दे सकते हैं, ऐसे सदाचारी और सत्यप्रीय जनो की खोज करनी होगी। यदि वह मिल जाते हैं तो आपको संग्राम करना होगा। नहीं मिले तो आपको अपने लाश में ही अंदर अंदर अपने सत्य और सदाचार संयम के साथ मृत्यु की आगोश में शांति के साथ सो जाना होगा। क्योंकि यहीं आपकी नियती है। अभी भविष्य की गर्त में क्या छीपा है इसका अंदाज सटिक लगाना निश्चित नहीं हैं, एक तरफ आताताईयों की सेना तैयार है, दूसरी तरफ आपको युद्ध के मैदान से पलायन करना ही आपकी प्राण रक्षा का धर्म है। क्योंकि सत्यप्रिय सदाचारी संयमी और शक्तिशाली के साथ वह धनी भी हो, क्योंकि एक धनी समाज से निर्धन समाज किसी भी शर्त में युद्ध नहीं कर सकता है, यदि करता भी है तो वह ज्यादा समय तक उसके सामने स्वयं को उपस्तित नहीं रख पाएगा। क्योंकि जिस प्रकार से एक देश की शक्ति का अंदाजा आज उसी से लगाया जाता है, जिस प्रकार से उस देश की सेना की संख्या और उस देश की आयुधों की संख्या कितनी है, और कितने खतरनाक से खतरना हथियार जिस देश की सेना या देश में हैं उसके ही जीतने की अधिक उम्मिद जताई जाती है। 

     यहां संसार या दुनीया में हर बार आताताई और दुष्ट लोग ही जीतते आए हैं, इनको जीतना है, तो इनसे अधीक आताताई और दुष्ट प्रकृति के लोगों को अपने साथ करा होगा। यह निती कहती है।     

   मनोज पाण्डेय 

अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान वैदिक विद्यालय      

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