करुणा भावना
त्रिजटा विभीषण की बेटी थी । रावण अपनी भतीजी त्रिजटा से बहुत प्रेम करता था
। जब उसने देवी सीता का अपहरण कर उन्हें अशोक वाटिका में रखा, तो उन पर निगाह रखने के लिए उसने वहाँ त्रिजटा
के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों की तैनाती की । त्रिजटा राक्षसकुल में पैदा होने के
बावजूद अपने पिता विभीषण के संस्कारों में पली थी । श्रीराम के गुणों का बखान
सुनकर वह समझ गई थी कि उसके ताऊ ने भयंकर अधर्म किया है । रावण ने राक्षसियों को
सीताजी को आतंकित करने के उद्देश्य से नियुक्त किया था, किंतु त्रिजटा एकांत में सीताजी के प्रति पूरी
सहानुभूति व श्रद्धा व्यक्त कर उन्हें सांत्वना देती ।
एक दिन पति के विरह से दुःखी सीताजी ने धैर्य त्यागते हुए त्रिजटा से कहा, मेरे लिए अग्नि का प्रबंध कर दो, ताकि मैं आत्मत्याग कर दुःखों से मुक्त हो
सकूँ । यह सुनते ही त्रिजटा ने कहा, माता, श्रीराम साधारण मानव नहीं हैं । वे शीघ्र ही आपको दुःखों से मुक्त करेंगे ।
संकट में धैर्य कदापि नहीं खोना चाहिए । त्रिजटा ने एक दिन रावण की दूती
राक्षसियों से कहा, मुझे सपने
में दिखाई दिया है कि जिसने भी सीताजी को कष्ट दिया, रामदूत उसे आग में झोंक रहे हैं । इस युक्ति से उसने राक्षसियों
को भयाक्रांत कर उन्हें शांत रहने पर विवश कर दिया । सीताजी ने त्रिजटा की
सहानुभूति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की । श्रीराम व हनुमान ने भी त्रिजटा को
भक्तहृदया बताकर प्रशंसा की ।
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