भगवान् प्रेम के
भूखे हैं
कश्यपवंशी महामुनि देवल के पुत्र शांडिल्य त्याग, वैराग्य और तपस्या की मूर्ति थे। वे हर क्षण
भगवान् के ध्यान तथा धर्मशास्त्रों के अध्ययन में लगे रहते थे। उन्होंने गहन
अध्ययन व अनुभूतियों के बाद ब्रह्मसूत्र का प्रणयन किया । यह विलक्षण ग्रंथ
शांडिल्य भक्तिसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है ।
एक बार मथुराधिपति राजा वज्रबाहु महर्षि शांडिल्य के सत्संग के लिए पहुंचे।
उन्होंने महर्षि से प्रश्न किया, भगवान् मनुष्य के किन गुणों पर रीझते हैं ? महर्षि ने बताया , जो व्यक्ति भगवान् की कृपा प्राप्त करना चाहता है, उसे अभिमान और बड़प्पन की भावना त्यागकर परम
दयालु और विनम्र बन जाना चाहिए । दूसरे के दुःख से दुःखित होने वाले, दूसरे के सुख से सुखी होने वाले, असहाय की सहायता के लिए तत्पर रहने वाले पर ही
भगवान् अपनी कृपा करते हैं ।
एक बार ब्रज यात्रा के दौरान महर्षि शांडिल्य की महाराज परीक्षित से भेंट हो
गई । परीक्षित ने उनसे प्रश्न किया, भगवान् के साक्षात्कार के लिए क्या उपाय किए जाएँ?
___ महर्षि ने उत्तर दिया, शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान् प्रेम के भूखे हैं । मोह -
माया और राग - द्वेष त्यागकर जो भक्त हृदय को प्रेम रस में सराबोर कर लेता है, वह भगवान् का साक्षात्कार कर सकता है । अतः
तमाम दुर्गुणों को त्यागकर निष्काम प्रेम में डूबे रसिकजन को ही भागवत में भक्त
कहा गया है । प्रेम का महत्त्व सुनकर राजा परीक्षित भाव-विभोर होकर महर्षि
शांडिल्य के चरणों में झुक गए ।
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