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सत्य के मार्ग पर चलो

 


सत्य के मार्ग पर चलो

एक नगर में एक संत पधारे । उनके उपदेशों का असर यह हुआ कि धीरे - धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी । इससे उसी नगर का एक पुराना धर्मोपदेशक विचलित हो गया - उसे लगने लगा कि अगर संत ज्यादा दिन नगर में रहे तो उसके पास सत्संग के लिए कोई नहीं आएगा । वह संत से जलने लगा और उनके विषय में अनाप शनाप बातें फैलाने लगा । संत के बारे में किया गया दुष्प्रचार एक दिन उनके एक नजदीकी शिष्य के कान में पड़ा । शिष्य ने संतजी को तत्काल इस बारे में बताया। उसने यह भी कहा कि नगर का पुराना धर्मोपदेशक आपके बारे में उलटी - सीधी बातें कर रहा है, इसलिए आपको इसका प्रतिवाद करना चाहिए । संत यह सुनकर मुसकराते हुए बोले, " जो लोग मेरे बारे में ऐसी बातें कर रहे हैं , उन्हें मैं क्यों भला- बुरा बोलूँ? क्या मेरे प्रतिवाद करने से मेरे विरुद्ध चल रहा दुष्प्रचार थम जाएगा ? यह कहकर उन्होंने शिष्य को यह कहानी सुनाई " एक हाथी जा रहा था । उसके पीछे कुत्ते भौंकने लगे । लेकिन हाथी अपनी ही मस्ती में चलता रहा । कुत्ते काफी देर तक भौंकते हुए हाथी के पीछे-पीछे चलते रहे , लेकिन आखिर थककर लौट गए । हाथी अगर कुत्तों को समझाने , डाँटने या चुप कराने लगे तो इसका मतलब यह है कि वह कुत्तों की बराबरी कर रहा है, वह अपनी गरिमा भूल गया है । हाथी की गरिमा अपने ढंग की है । इसलिए आप लोग मेरी बुराई सुनकर परेशान न हों और सत्य के मार्ग पर चलते रहें । " संत की बात सुनकर शिष्य के क्रोध का शमन हो गया ।

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