संत का हीरा
किसी
जंगल में एक संत कुटिया बनाकर रहते थे । उसी जंगल में एक डाकू भी रहता था । जब
डाकू को पता चला कि संत के पास कीमती हीरा है तब उसने निश्चय किया कि मैं संत को
बिना कष्ट दिए हीरा प्राप्त करूँगा । इसके लिए उसने अनेक प्रयत्न किए, लेकिन वह असफल रहा । तब एक व्यक्ति ने डाकू को सलाह दी कि वह साधु का वेश
धारण करके संत के पास जाए । डाकू साधु के रूप में संत की कुटिया में गया और बोला,
" महात्माजी मुझे अपना शिष्य बना लें । " संत ने डाकू को
कुटिया में रहने का स्थान दे दिया । जब भी संत कुटिया से बाहर जाते, डाकू उनके सामान में हीरा ढूँढ़ने लगता; लेकिन कई
दिन के बाद भी उसे हीरा नहीं मिला । आखिर एक दिन उसने संत से कह ही दिया , "
महात्माजी मैं साधु नहीं हूँ । मैं तो केवल हीरा पाने के लिए साधु
बना था । " यह सुनकर संत मुसकराते हुए बोले , " लेकिन
हीरा नहीं मिला । भैया, मैं जब भी बाहर जाता था तो हीरे को
तुम्हारे बिस्तर के नीचेरख जाता था । तुम मेरा बिस्तर तो देखते थे, लेकिन अपना बिस्तर नहीं देखते थे । संसार के लोग भी भगवान् को बाहर
ढूँढ़ते हैं , जबकि भगवान् तो आंतरिक मन में विद्यमान हैं ।
"
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know