बुरे लोगों पर रहम
संत अबू हसन कहा करते थे, " उसी फकीर का जीवन सार्थक है, जो अपने सत्संग और प्रवचन से लोगों को अच्छाई में लगाने में तत्पर रहता है । चूँकि फकीर समाज का दिया भोजन करता है, अत : उसे समाज को उपदेश देकर अपना कर्तव्यपालन करना चाहिए। " संत अबू हसन जहाँ भी जाते , लोग उनके दर्शन के लिए वहीं पहुँच जाते । वे उनकी समस्याओं का पता लगा लगाकर उनके निराकरण का उपाय बताते, उन्हें नशीले पदार्थों को त्यागने, किसी के साथ दुर्व्यवहार न करने तथा सादगी का जीवन जीने की प्रेरणा देते , वह प्रतिदिन कुछ समय दुःखी और रोगी की सेवा करने को कहते । एक दिन वे जंगल में नमाज अदा करने के बाद दोनों हाथों को फैलाकर कहने लगे, " ऐ खुदा! तू बुरे एवं दुर्व्यसनों से पीडित लोगों पर दया कर । अपना समय बुरे कर्मों में बरबाद करनेवालों को सद्बुद्धि दे कि वे अच्छे काम करने लगें । "
उनके
शिष्य ने जब यह सुना तो पूछा, " गुरुदेव ! फकीर
तो अच्छे लोगों के लिए दुआ माँगते हैं , आप बुरे लोगों के लिए
दुआ क्यों माँग रहे थे? " शिष्य की बात सुनकर अबू हसन
ने कहा, " अरे पगले! अच्छों को तो पहले ही खुदा की दुआ
लगी हुई है । तभी तो वे अच्छे हैं । असली दुआ की जरूरत उन्हें है, जो बुरे हैं । मैं इसीलिए हमेशा खुदा से बुरे लोगों पर रहम करने की
प्रार्थना करता हूँ । "
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