अनूठी मातृभक्ति
प्रेम
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अत्यंत धर्मपरायण तथा ईश्वरभक्त थे। एक
बार किसी पादरी ने उनकी सात्विकता, दयालुता और ईश्वरनिष्ठा देखकर कहा था , हमारे राष्ट्रपति तो संत हैं । राष्ट्रपति
जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन होते हुए भी लिंकन असहायों व रोगियों की अपने हाथों से
सेवा करने के लिए तत्पर हो जाते थे। एक बार वे राष्ट्रपति भवन में मिलने आए कुछ
लोगों की समस्याओं की जानकारी ले रहे थे । एक महिला जैसे ही उनके समक्ष पहुँची कि
उसे देखते ही लिंकन की आँखों से अश्रु निकल गए । उसने यह देखा, तो बोली, मिस्टर प्रेसिडेंट , आप अमेरिका के सबसे बड़े और सुखी व्यक्ति हैं । आपके चेहरे पर
अचानक आई उदासी व आँखों से निकले आँसुओं का कारण क्या है ?
राष्ट्रपति लिंकन ने सहज होते हुए कहा , मैं किशोर था , तभी माँ के साये से वंचित हो गया था । मेरी माँ धर्मपरायण महिला थीं । वे
मुझे गोद में बिठाकर कहा करती थीं कि हमेशा दुर्गुणों और दुर्व्यसनों से दूर रहना
। दूसरों की सेवा- सहायता करना कभी न भूलना । ईश्वर उसी पर कृपा करते हैं , जो दयालु और अच्छा इनसान होता है । मेरी माँ
ने मुझे अच्छे संस्कार दिए । मैं जो कुछ हूँ , उन्हीं की कृपा से हूँ । अब मैं जब भी किसी महिला को देखता हूँ , मुझे अपनी माँ याद आ जाती हैं । यदि आज मेरे
साथ माँ होती , तो मैं सबसे
सुखी व्यक्ति होता । कहते- कहते लिंकन फिर रो पड़े ।
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